शाम में संभोग करना क्यों गलत है? क्या होते हैं बुरे नतीजे?
सवाल यह है कि शाम में संभोग करना गलत क्यों है? इसके क्या गलत नतीजे निकलते हैं और क्यों?
शाम के वक्त को गौधूलि वेला कहते हैं। यह वह वेला है जब गायें चराकर बाल श्रीकृष्ण घर लौटा करते थे। गायों की धूलि आसमान में उड़ा करती थी। संभवत: इसी वजह से शाम के वक्त को गौधूलि वेला कहते हैं। इस वक्त माता यशोदा अपने पुत्र बाल श्रीकृष्ण का इंतज़ार करती थी। पहुंचने पर प्यार करती थी। खाने को मक्खन, लड्डू और मनपसंद चीजें दिया करती थीं। तकरीबन वैसे ही जैसे शाम होने पर हम भगवान की पूजा करते हैं, उन्हें याद करते हैं और फल-फूल चढ़ाया करते हैं।
यह तो हुई आस्था की बात। मगर, सवाल यह है कि शाम में संभोग करना गलत क्यों है? इसके क्या गलत नतीजे निकलते हैं और क्यों?
एक बार की बात है कश्यप ऋषि के पास उनकी पत्नी दिति संतान की कामना के साथ शाम के वक्त आयी। उन्होंने शाम को संभोग करने को गलत बताया। पत्नी जिद कर बैठी। जिद के आगे कश्यप ऋषि ने बात मान ली। बाद में स्नान किया और फिर पूजा-पाठ में लग गये। इस दौरान कश्यप ऋषि अशांत दिख रहे थे। पत्नी ने अशांत हाव-भाव का कारण पूछा। पति ने पहले टाला। मगर, जब पुन: जिद कर बैठी तो पति कश्यप ऋषि बोले कि जो काम गलत समय पर किया जाता है उसके नतीजे भी गलत ही आते हैं।
पत्नी दिति का कौतूहल और बढ़ गया। उन्होंने विस्तार से समझाने को कहा। कश्यप ऋषि ने कहा कि संतान तो होंगे और जुड़वें होंगे। मगर, ये दुष्ट ही नहीं महादुष्ट होंगे। एक का नाम हिरणाक्ष होगा तो दूसरे का हिरण्यकश्यपु।
दिति चिंतित हो गयी। अपनी भूल को माना। प्रायश्चित का भाव जताया। तब ऋषि कश्यप ने उपाय बताया कि दोनों बेटे भले ही राक्षस हों मगर पोता विष्णु भक्ति होगा और उसका नाम प्रह्लाद होगा।
दिति को बात समझ में आ गयी थी कि गलत समय पर सही काम भी गलत नतीजा देता है। दोनों पुत्रों को उसने 100 साल तक अपने पेट में रखा। जब दोनों का जन्म हुआ तो जन्म लेते ही वे अपने विशाल रूप में आ गये। जन्म लेते साथ देखा कि सागर जैसा विशाल कोई है जो उन्हें टक्कर दे सकता है। दोनों ने सागर को ललकारा। सागर ने बताया कि युद्ध करना है तो उससे युद्ध करो जो मेरी तलहटी रह रहे पृथ्वी को लेने जो आने वाला है। उन्हें लेने स्वयं भगवान विष्णु आने वाले थे। आगे की कथा आपको पता है। दोनों राक्षसों का किस प्रकार अंत हो जाता है।