कोरोना वायरस के चलते बदल गई जिंदगी की सबसे बड़ी तीन बातें, सोची भी नहीं थी किसी ने!
तो आइए आप भी मेरे साथ शामिल हो जाइए इस संकट की घड़ी में मुस्कुराने के लिए
आलोक सिंह
कोरोना संकट से देश की इकोनॉमी को कितने लाख करोड़ का नुकसान होगा या दिहाड़ी मजदूरों का रोजी रोटी छीनने से लेकर किसकी कैसी हालत हो गई है इसकी चर्चा सभी तरफ हो रही है। इससे हर तरफ डर और पीड़ा का माहौल है। मैं आज इससे हटके आप सभी को कोरोना संकट के बीच जिंदगी के कुछ हल्के-फुल्के क्षण से अवगत करना चाहता हूं जो शायद आपके चेहरे पर मुस्कान लाने में मदद करे। तो आइए आप भी मेरे साथ शामिल हो जाइए इस संकट की घड़ी में मुस्कुराने के लिए...
रिश्ते फिर से हुए जवान
कोरोना संकट और लॉक डाउन ने एक बार हम सभी के रिश्ते को जवान कर दिया है। हम ढूढ़ कर अपने चाहने वाले को फोन कर रहे हैं, गप्पे मार रहे हैं। क्या यह आप भागमभाग भरी लाइफ में कर पाते थे? घर के अंदर भी एक बार फिर से रिश्तों में गर्माहट आ गई है। बताओ-बताओ यह किसने किया।
सहनशीलता बढ़ी
मेट्रो सिटी में ट्रैफिक जाम में कुछ सेकेंड लोग इंतजार नहीं करने वाले घंटों दुकान पर सामान लेने के लिए लाइन में बिना किसी शोरशराबे के खड़े हैँ। कहीं कोई आपसी तनाव की स्थिति नहीं हुई है। यानी, कोरोना ने लोगों को सहनशीलता का पाठ भी पढ़ाया है।
मदद को बढ़े हाथ
शायद लंबे अर्से के बाद पहली बार हुआ कि मदद करने के लिए इतने हाथ एक साथ आगे आएं। यह एक बार फिर समाजिक समरसता को मजबूत किया है। यह हौसला भी दिया है कि हम इस वक्त से जीत जाएंगे।
बदला लाइफ स्टाइल
कोराने से हम सभी के लाइफ स्टाइल को पूरी तरह बदल दिया है। कई अच्छी चीजें जीवन शैली में शामिल हो गई है जैसे साफ-सफाई, घर के काम में हाथ बटाना, बच्चों के लिए हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की बनकर बच्चों का मनोरंजन करना आदि।
खुद को जानने का वक्त
कोरोना ने शायद पहली बार इतना समय दिया है कि आप खुद को अच्छी तरह जान पाएं। यह आपको आगे की जिंदगी को बेहतर बनाने में जरूर मदद करेगा। वहीं, आप एक सुलझे इंसान बनकर निकलेंगे।
उबड़-खाबड़ है दुनिया
90 के दशक के बाद पैदा हुए युवाओं को पहली बार युवाओं को लगा है कि यह देश और पूरी दुनिया सिर्फ चककिली ही नहीं बल्कि उबड़-खाबड़ है। पहली बार उनको पता चला है कि इस चमकिली दुनिया के पीछे कितना काला स्याह है।
एक एक दाने की अहमियत
कोरोना ने हर किसी को पैसे और खाने की अहमियत लंबे समय के बाद समझाया है। आजादी के समय जिस तरह लोग पाकिस्तान से अपने सिर पर गठरी बांध कर निकल चुके हैं भारत, ठीक उसी तरह लाखों मजदूर बिहार, यूपी लौट रहे हैं। एक रोटी पैसे से अधिक कीमती होता है शायद मौजूदा स्मार्टफोन पीढ़ी को पहली बार समझ में आया है।