सोच होगी सुन्दर तो जीवन होगा सुन्दर
अत:, अतिशय चर्चा या नकारात्मकता से बचें; इनसे दिमाग़ ख़राब होता है।
किसी का व्यक्तित्व उसकी सोच से बनता है। किसी की ख़ुशहाली में उसकी सोच का बड़ा योगदान होता है। जैसी सोच होती है उसी प्रकार के लोगों से नज़दीकियाँ भी बनती हैं। परन्तु सोच बनना या बिगड़ना एक दिन का खेल नहीं है। वह वर्षों के अनुभव, शिक्षा व संगति का परिणाम होता है। हमारी सोच पर हमारा ध्यान होना चाहिए। नकारात्मक सोच को सदैव सकारात्मक सोच से काटते रहना चाहिए।
आज कल चारों तरफ़ कोरोना, पॉज़िटिव, निगेटिव चल रहा है। जिसको सुनो वही बस कोरोना, रोग, वायरस वग़ैरह की ही बात कर रहा है। जागरूकता फैलाने के लिए चर्चा ज़रूर करनी चाहिए; पर "अति सर्वत्र वर्जयेत्"। यानि अति किसी भी चीज़ की हो संकट ही पैदा करती है। अत:, अतिशय चर्चा या नकारात्मकता से बचें; इनसे दिमाग़ ख़राब होता है।
बीच बीच में सोशल मीडिया / ह्वाट्सऐप, टीवी / अख़बार से विराम लेते रहें, ध्यान हटाते रहें। कुछ रचनात्मक कार्यों में दिमाग़ को लगाएँ। रोज़ कम से कम 6 से 8 घण्टों की पूरी नींद लीजिए, दिमाग़ अच्छा रहेगा। दिमाग़ अच्छा रहेगा तो दिल भी अच्छा रहेगा। दिल और दिमाग़ अच्छे रहेंगे तो तन्दुरुस्ती भी बिल्कुल दुरूस्त रहेगी, और फिर दुनिया बेहद ख़ूबसूरत नज़र आने लगेगी।
किसी ने कितना सही कहा है, "जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि।"
लेखक आईपीएस अधिकारी है.