Vat Savitri Vrat: वट सावित्री व्रत के दिन करें यह आरती, मिलेगा अखंड सौभाग्य का आशीष

Update: 2022-05-30 03:24 GMT

Vat Savitri Vrat: कब रखा जाएगा वट सावित्री व्रत और क्या है शुभ मुहूर्त और पूजा की विधि?

हिंदू धर्म में हर महीने कई व्रत और त्यौहार मनाए जाते हैं। इन्हीं में से एक है वट सावित्री व्रत। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन सावित्री ने बरगद के वृक्ष के नीचे अपने पति सत्यवान के प्राण बचाए थे। वट, बरगद को कहा जाता है, इसलिए यह दिन वट सावित्री व्रत या वट अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा की जाती है।

मान्यता है कि यदि सुहागिन महिलाएं इस दिन व्रत रख कर विधि-विधान से पूजन करें, तो उनके पति पर आयी मुसीबतें टल जाती हैं और उन्हें दीर्घायु होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस साल वट सावित्री का व्रत 30 मई, 2022 दिन सोमवार को रखा जाएगा। इसी दिन सोमवती अमावस्या और शनि जयंती भी है। तो आइए जानते हैं वट सावित्री व्रत का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में...

शुभ मुहूर्त

वट अमावस्या तिथि 29 मई, 2022 दिन रविवार को दोपहर 2 बजकर 54 मिनट से शुरु होगी और इस तिथि का समापन 30 मई, 2022 दिन सोमवार को शाम 4 बजकर 59 मिनट पर होगा। लेकिन उदया तिथि के हिसाब से यह व्रत 30 मई, 2022 को रखा जाएगा।

पूजा विधि

सुबह स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद व्रत का संकल्प लें। इसके बाद सोलह श्रृंगार कर सत्यवान, सावित्री और यमराज की तस्वीर रख कर वट वृक्ष और तस्वीरों को जल, पुष्प, अक्षत, रोली, धूप, दीप, भीगे हुए काले चने और मिष्ठान अर्पित करें। बरगद के वृक्ष में सात बार सूत लपेटते हुए परिक्रमा करें। इसके बाद उस वृक्ष के नीचे बैठ कर वट सावित्री व्रत कथा पढ़ें या सुनें। इसके बाद यमराज से अपने पति की सारी विपदाएं दूर करने और उन्हें लंबा जीवन प्रदान करने की कामना करें।

व्रत का महत्त्व

वट सावित्री का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए ख़ास माना जाता है। इस व्रत को रख कर सुहागिन महिलाएं सावित्री की भांति अपने पति के जीवन की रक्षा करने और उनके साथ सुखद वैवाहिक जीवन जीने की कामना करती हैं। मान्यता है कि व्रत के प्रभाव से उनके जीवन में सुख-समृद्धि आती है और नि:संतान दंपति को संतान की प्राप्ति होती है।

Vat Savitri Vrat: जरूर करें यह आरती 

अखंड सौभाग्य देने वाला वट सावित्री व्रत 30 मई,2022 दिन सोमवार को रखा जाएगा। इस दिन वट वृक्ष, सावित्री और सत्यवान की पूजा की जाती है। इस दिन सुहागिन महिलाएं, वट वृक्ष में कच्चा सूत लपेट कर परिक्रमा करती हैं। पूजा के समय वट सावित्री व्रत कथा सुनी जाती है। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, पुत्र और सुखी जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं। पूजा का समापन वट सावित्री व्रत की आरती से करना चाहिए। आरती के लिए कपूर या फिर घी के दीपक का उपयोग कर सकते हैं।

वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इस बार वट सावित्री व्रत के दिन सोमवती अमावस्या का संयोग बन रहा है और साथ ही शनि जंयती भी मनाई जाएगी। 30 वर्षों के बाद ऐसा शुभ संयोग बना है कि ज्येष्ठ अमावस्या को सोमवती अमावस्या, वट सावित्री व्रत और शनि जयंती एक साथ आए हैं।

वट सावित्री व्रत की आरती

अश्वपती पुसता झाला। नारद सागंताती तयाला||

अल्पायुषी सत्यवंत | सावित्री ने कां प्रणीला||

आणखी वर वरी बाले | मनी निश्चय जो केला ||

आरती वडराजा | दयावंत यमदूजा ||

सत्यवंत ही सावित्री।
 भावे करीन मी पूजा।
आरती वडराजा......


ज्येष्ठमास त्रयोदशी।
करिती पूजन वडाशी ।।
त्रिरात व्रत करूनीया।
जिंकी तू सत्यवंताशी।
आरती वडराजा.....

स्वर्गावारी जाऊनिया।
अग्निखांब कचलीला।।
धर्मराजा उचकला।
हत्या घालिल जीवाला।
येश्र गे पतिव्रते।
पती नेई गे आपुला।।
आरती वडराजा.....

जाऊनिया यमापाशी।
मागतसे आपुला पती।
चारी वर देऊनिया।
दयावंता द्यावा पती।
आरती वडराजा......

पतिव्रते तुझी कीर्ती।
ऐकुनि ज्या नारी।।
तुझे व्रत आचरती।
तुझी भुवने पावती।।
आरती वडराजा......

पतिव्रते तुझी स्तुती।
त्रिभुवनी ज्या करिती।।
स्वर्गी पुष्पवृष्टी करूनिया।
आणिलासी आपुला पती।।
अभय देऊनिया।
पतिव्रते तारी त्यासी।।
आरती वडराजा.......

वट सावित्री व्रत 2022 शुभ मुहूर्त
ज्येष्ठ अमावस्या तिथि की शुरूआत:- 29 मई, दिन रविवार, दोपहर 02 बजकर 54 मिनट से
ज्येष्ठ अमावस्या तिथि की समाप्ति:- 30 मई, सोमवार, शाम 04 बजकर 59 मिनट पर
पूजा का शुभ महूर्त: सुबह 07 बजकर 12 मिनट के बाद से......

 वट सावित्री व्रत

अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए सुहागिन महिलाएं वट सावित्री व्रत रखती हैं. इस साल यह 10 जून को मनाया जाएगा. ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि वट सावित्री व्रत रखा जाता है. हिंदू धर्म वट सावित्री व्रत खासा महत्व है. इस महिलाएं सोलाह श्रृंगार करके बरगद के पेड़ की पूजा करती है. अखंड सौभाग्य के साथ-साथ संतान प्राप्ति दृष्टि से भी यह व्रत बहुत शुभ फलदायी होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो पत्नी इस व्रत को सच्ची निष्ठा से रखती है उसे न सिर्फ पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि उसके पति पर आई सभी परेशानियां भी दूर हो जाती हैं.

वट सावित्री व्रत का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सावित्री अपने पति के प्राणों को यमराज से छुड़ाकर ले आई थीं. ऐसे में इस व्रत का महिलाओं के बीच विशेष महत्व बताया जाता है. इस दिन वट (बरगद) के पेड़ का पूजन किया जाता है. इस दिन सुहागिनें वट वृक्ष का पूजन कर इसकी परिक्रमा लगाती हैं. महिलाएं सूत के धागे से वट वृक्ष को बांधकर इसके सात चक्‍कर लगाती हैं. इस व्रत को स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं.

माता सावित्री और सत्यवान की पूजा करते हुए वृक्ष की जड़ में पानी दें. पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें. जल से वटवृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करें. बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें. भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर अपनी सास के पैर छूकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें. पूजा समाप्ति पर ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल, बांस के पात्र में रखकर दान करें. इस व्रत में सावित्री-सत्यवान की पुण्य कथा को सुनना न भूलें. यह कथा पूजा करते समय दूसरों को भी सुनाएं.

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