महिला आरक्षण बिल पर बात करते हुए महुआ मोइत्रा ने पढ़ी 80 साल पुरानी कैफी आजमी की नज्म 'औरत'

लोकसभा में महिला आरक्षण पर बात करते हुए महुआ मोइत्रा ने 80 साल पुरानी कैफी आजमी की नज्म ‘औरत’ पढ़ी। जिसकी खूब चर्चा हो रही है।

Update: 2023-09-20 13:05 GMT

संसद के विशेष सत्र में बुधवार को लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पर बहस हुई। इस दौरान मशहूर गीतकार और शायर कैफी आजमी का भी जिक्र आया। कई फिल्मों के गीत लिखने वाले कैफी की नज्म औरत का जिक्र टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने किया। अपना भाषण शुरू करते हुए महुआ ने कहा कि करीब 80 साल पहले कैफी आजमी ने ये नज्म लिखी थी।

कैफी आजमी की नज्म औरत-

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

क़ल्ब-ए-माहौल में लर्ज़ां शरर-ए-जंग हैं आज

हौसले वक़्त के और ज़ीस्त के यक-रंग हैं आज

आबगीनों में तपां वलवला-ए-संग हैं आज

हुस्न और इश्क़ हम-आवाज़ ओ हम-आहंग हैं आज

जिस में जलता हू उसी आग में जलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे।

तेरे क़दमों में है फ़िरदौस-ए-तमद्दुन की बहार

तेरी नज़रों पे है तहज़ीब ओ तरक़्क़ी का मदार

तेरी आग़ोश है गहवारा-ए-नफ़्स-ओ-किरदार

ता-ब-कै गिर्द तेरे वहम ओ तअय्युन का हिसार

कौंद कर मज्लिस-ए-ख़ल्वत से निकलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे।

तू कि बे-जान खिलौनों से बहल जाती है

तपती सांसों की हरारत से पिघल जाती है

पांव जिस राह में रखती है फिसल जाती है

बन के सीमाब हर इक ज़र्फ़ में ढल जाती है

ज़ीस्त के आहनी सांचे में भी ढलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे।

ज़िंदगी जेहद में है सब्र के क़ाबू में नहीं

नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आंसू में नहीं

उड़ने खुलने में है निकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं

जन्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं

उस की आज़ाद रविश पर भी मचलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे।

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