पंचायत चुनाव को जीतने के लिए, प्रत्याशी अखिर करोड़ों रूपया क्यों खर्च करते हैं ?

पंचायत चुनाव एक आन्दोलन है, और इसे आन्दोलन की तरह ही लड़ें।

Update: 2022-05-31 03:06 GMT

एड. आराधना भार्गव

पंचायत चुनाव में आज से नाम निर्देशन पत्रों का वितरण शुरू हो जायेगा। पंचायत चुनाव में खर्च की जानकारी देने का प्रावधान नही है। जिला जनपद सदस्यों से लेकर पंच पद के प्रत्याशी चुनाव प्रचार, झण्ड़े, बैनर, रैली, मतदाताओं और समर्थकों पर दिल खोलकर खर्च कर सकते है। प्रत्याशियों को इस संबंध में कलेक्टर और निर्वाचन अधिकारियों को लेखा-जोखा भी नही देना पड़ेगा। सरपंच से लेकर जिला पंचायत के चुनाव अब महत्वपूर्ण हो गये हैं। जिला पंचायत के सदस्य के क्षेत्र में विधायकों से कम प्रभाव नही होता इसके अलावा उनके क्षेत्र में विकास कार्य के लिए राशि भी विधायकों के बराबर दी जाती है, इससे यह चुनाव ग्राम पंचायतों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं पंचायत चुनाव को जीतने के लिए प्रत्याशी अखिर करोड़ों रूपया क्यों खर्च करते हैं ? इस बार पंचायतों के चुनाव तीन चरणों में सम्पन्न होने है और नामांकन पत्र एक साथ भरे जा रहे हैं। मतदाता अलग अलग तारीखों में अपने मतों का उपयोग करेंगे इस प्रकार प्रत्याशी को दूसरे और तीसरे चरण में जमकर पैसा खर्च करने तथा मतदाताओं को रिझाने का पूरा अवसर मिलेगा। स्पष्ट है कि गांव के राजकोष पर पूँजीपति का ही कब्जा होगा।

मामा बालेश्वर हमेशा कहा करते थे कि राजनीति में चुनाव एक जनआन्दोलन है, चुनाव के द्वारा हमें जन समस्याओं को आगे लाना चाहिए। पंचायत चुनाव में जन समस्याओं के मुद्दे नदारत दिखाई देते हैं। गांव में चुनाव के समय जो मुद्दे उठाये जाते हंै, वह कम्पनीयों या पूंजीपतियों को लाभ पहुँचाने वाले मुद्दे दिखाई देते हैं क्योंकि उनके लोग गांव के बीच में पहुँचकर ग्रामवासियों के माध्यम से अपनी मांग रखवाते है, मुख्यतौर पर चुनाव के समय सड़क एवं गांव में मंदिर बनाने के लिए पैसों की मांग करते ग्रामवासी दिखाई देते हैं। पंचायत के चुनाव में स्कूल, आंगनवाड़ी केन्द्र, अस्पताल, साफ जल, (फ्लोराईड मुक्त) पीने के पानी, खनिज सम्पदाओं की सुरक्षा, जल जंगल जमीन को बचाने जैसी मांग कहीं दिखाई नही देती। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता तथा कोटवार, स्वास्थ्य कर्मी तथा शिक्षक के मानदेय बढ़ाने एवं उनकी योग्यता को लेकर कभी चुनाव में आवाज नही उठाई जाती। पंचायत के चुनाव में भ्रष्टाचार कभी मुद्दा नही बनता। शिशुओं की मौत और गर्भवती महिलाओं के दम तोड़ने पर तो पंचायत में मुद्द ही नही बनता। ग्रामीण संसाधनों की लूट और पूँजीपति को छूट ही तो कारण है दिल खोलकर पंचायत प्रतिनिधि का पैसा खर्च करना। वित्त आयोग के पैसे पर निगरानी पंचायत चुनाव में नदारत दिखाई देती है। पांचवी अनुसूची के क्षेत्र में पैसा कानून लागू कराने की मांग चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों की घोषणा पत्र में शामिल नही होता। विकास के नाम पर जंगल काटे जाने और काटे गये वृक्षों के एवज में झाड़ी लगा देना चुनावी मुद्दा नही बनता। ग्राम पंचायत, आर्थिक तौर पर कैसे मजबूत होंगी, कुटीर उद्यौग को बढ़ावा देने, किसानों के लिए ग्रामीण क्षेत्र में ही बीज बैंक, गोबर खाद, सार्वजनिक ईधन गौबर गैस के माध्यम से तथा बिजली के क्षेत्र में सौर्य ऊर्जा के माध्यम से कैसे स्वालम्बी बने इसका कोई ब्लुप्रिंट पंचायत चुनाव में दिखाई नही देता। पार्षद तथा नगर निगम के चुनाव में स्मार्ट सिटी का उल्लेख होता तो दिखाई देता है परन्तु स्मार्ट गांव बनाने का कोई ब्लुप्रिन्ट प्रत्याशियों द्वारा भी तैयार नही किया जाता। ग्राम पंचायत के चुनाव में युवक एवं युवतियों को ग्राम में ही रोजगार उपलब्ध कराये जाऐं ताकि ग्रामवासियों का ग्राम से शहर की ओर पलायन ना करना पड़े ऐसा कोई घोषणा पत्र पंचायत चुनाव में दिखाई नही देता।

अगर हम अपने पिछले 75 सालों का आंकलन करें, तो हम पायेंगे कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कर देने वालों की संख्या में लगातार ईजाफा हुआ है। ग्राम पंचायतों में बजट भी बहुत आया है, क्या कारण है कि गांव का विकास नही हो पाया ? गांव मे कच्चा माल तो उपलब्ध हैं, जंगल है, खेत है, नादिया हैं। स्टार्टअप योजना के नाम पर खरबों रूपये उड़ा दिये गये परन्तु विकास ने गांव की तरफ मुख नही किया। स्टार्टअप योजना में योगदान देने वाले युवाओं को नौकरी से निकालने का काम बल्कि कर दिया गया।

गांव का विकास पर्याप्त बजट होने के पश्चात् भी क्यों नही हो पाया ? तो उत्तर मिलेगा भ्रष्टाचार, पंचायत चुनाव में प्रत्याशीयो ंद्वारा दिल खोलकर पानी की तरह पैसा बहाया जायेगा और उस पैसे का लेखा जोखा को देखने की आवश्यकता कलेक्टर एवं निवार्चन आयोग को नही होगी, इसका मतलब ही स्पष्ट है कि सरकार की मंशा है पंचायत में चुनकर आओं और जमकर भ्रष्टाचार करो। पीडब्ल्यूडी के कार्य पालन यंत्री आनंद राणे पर आय से ज्यादा सम्पत्ती का मामला सामने आया, लोकायुक्त ने जिस अफसर को दोषी पाया उसे बचाने के लिए मंत्री गोपाल भार्गव भार्गव ने पूरी ताकत लगा दी। जनता की मेहनत की कमाई पर गांव के राजकोष पर भ्रष्टाचारी जनप्रतिनिधियों की गिद्ध निगाहें लगी हुई हैं इसे समझना होगा।

आईये हम सब मिलकर हमारे गांव को सम्पन्न पंचायत बनाने के लिए जनता के हक में संघर्ष करने वाले व्यक्ति को चुनकर लायें जो हमारी खेती को बचा सके। गांव का पानी पूंजीपति के हाथ में ना जाकर खेतों में पहुँचे, हर गांव मे ंबाजार हो किसान को अपना माल बेचने के लिए मंण्डीयों एवं दलालों के चक्कर ना काटना पड़े, व्यापारी गांव के बाजार से ही दूध, दही, मही, मक्खन, घी, गुड,़ शक्कर, दाल चावल गेंहू, सब्जी खरीदकर ले जावे। गांव में किसानों के लिए बाजार उपलब्ध कराने वाले प्रतिनिधि को ही हम चुनकर लायें। गांव में ही शासकीय स्कूल तथा काॅलेज की व्यवस्था हो ताकि गांव के युवक युवति खेती एवं घर के काम में हाथ बटाकर गांव में ही पढ़ाई कर सकें। सौर्य ऊर्जा एवं पवन ऊर्जा के माध्यम से बिजली के मामले में गांव स्वालम्बी हो और गांव में प्रत्येक युवक एवं युवति को रोजगार उपलब्ध हो सके इसकी योजना बनाने वाले पंच सरपंच जनपद तथा जिला पंचायत के सदस्यों को चुनकर लायें। ग्रांम पंचायत के चुनाव मे पैसा खर्च करने वाले उम्मीद्वार का जिस दिन गांव में बहिष्कार होगा उस दिन यह देश फिर से सोने की चिड़िया हो जायेगा, दूध और दही की नादियां गांव में दिखाई देगीं।

हम भारत के लोग भारत के संविधान को अंगीकृत अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं तभी साकार होगा जब हम भारत के संविधान के अनुरूप पंचायतों के चुनाव सम्पन्न करायेगे।

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