कमलनाथ को "डराना" चाहती है भाजपा ?
लेकिन अब जिस तरह मुख्यमंत्री और बीजेपी ने उनके खिलाफ मुहिम शुरू की है उससे ऐसा लग रहा है कि अब उन्हें सीधे सीधे धमकाया जा रहा है।
इस साल के अंत में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के लिए बीजेपी काफी समय से चुनावी मोड में चल रही है।लेकिन अब वह अपने चुनाव अभियान की विधिवत शुरुआत मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले से करने जा रही है।इस अभियान की तैयारी के सिलसिले में छिंदवाड़ा गए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिस तरह की भाषा बोली है उससे लग रहा है कि सत्तारूढ़ दल और सरकार दोनों ही कांग्रेस और उसके प्रदेश के मुखिया कमलनाथ को धमका रहे हैं।हालांकि अभी तक मध्यप्रदेश इस तरह की राजनीति से बचा रहा था।राजनीतिक विरोध के बाद भी इस तरह की भाषा का इस्तेमाल नहीं देखा गया था।लेकिन ऐसा लग रहा है कि देश की राजनीति पर पड़ोसी देशों का असर बढ़ रहा है।
यह सब जानते हैं कि 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था।कांग्रेस के लिए यह जीत संजीवनी की तरह मानी गई थी। लेकिन तब कमलनाथ के नेतृत्व में बनी सरकार 15 महीने में ही गिरा दी गई थी।ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेसी विधायक बीजेपी में चले गए थे।इस वजह से हारे हुए शिवराज फिर से मुख्यमंत्री बन गए थे।उस दलबद्ल को कांग्रेस आज भी खरीदफरोख्त कहती है।
पिछली हार की वजह से बीजेपी इस बार खासी आक्रामक है। हर स्तर को युद्ध स्तर बना कर वह काम कर रही है। साम दाम दण्ड भेद सब उसकी रणनीति का हिस्सा हैं।
उधर कांग्रेस में हर स्तर पर असमंजस का आलम है।केंद्रीय नेतृत्व हो या फिर राज्यों का,आपसी अविश्वास और बिखराव साफ दिख रहा है।इसके बावजूद मध्यप्रदेश में कांग्रेस बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है।इसीलिए बीजेपी परेशान नजर आ रही है।
जहां तक कमलनाथ की बात है वे 2018 में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बनने के बाद से ही निशाने पर रहे हैं।मुख्यमंत्री बनने के बाद केंद्र सरकार की तिरछी नजर उन पर रही थी।तब उनके सहयोगियों और रिश्तेदारों को केंद्रीय एजेंसियों ने निशाने पर लिया था।सरकार गिर जाने के बाद भी वे निशाने से बाहर नहीं हुए।
लेकिन अब जिस तरह मुख्यमंत्री और बीजेपी ने उनके खिलाफ मुहिम शुरू की है उससे ऐसा लग रहा है कि अब उन्हें सीधे सीधे धमकाया जा रहा है।
प्रदेश में चुनावी अभियान को शुरू करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 25 मार्च को मध्यप्रदेश आ रहे हैं।वे इस अभियान की शुरुआत छिंदवाड़ा से करेंगे।इस कार्यक्रम की तैयारी का जायजा लेने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पिछले सप्ताह छिंदवाड़ा गए थे।उन्होंने वहां सार्वजनिक मंच से कहा - कमलनाथ और कांग्रेस को गड्ढे में गाड़ना है।कमलनाथ के राजनीतिक अस्तित्व का अंत करना है।
यह भाषा दर्शाती है कि बीजेपी का असली उद्देश्य क्या है!
बीजेपी की वर्तमान आक्रामक शैली के जनक अमित शाह 25 मार्च को छिंदवाड़ा में रहेगें।वे पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलेंगे।जनसभा करेंगे!इस दौरे का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है - गृहमंत्री का आदिवासी आस्था स्थल पर जाना और आदिवासी संतों के साथ भोजन करना।जानकारी के मुताबिक शाह हर्राई ब्लाक में बटला खापा गांव में स्थित अचल कुंड जायेंगे।अचल कुंड उस क्षेत्र के गोंड आदिवासियों का बड़ा आस्था केंद्र है।वहां वे आदिवासी धर्मगुरुओं के साथ भोजन और सत्संग करेंगे।
यूं तो गृहमंत्री का दौरा एक सामान्य बात है।लेकिन इसका उद्देश्य बहुत खास है।दरअसल पिछले विधानसभा में बीजेपी को आदिवासी इलाकों में हार का सामना करना पड़ा था।छिंदवाड़ा और इसके आसपास के जिले आदिवासी बहुल हैं।इन इलाकों में कमलनाथ का अच्छा प्रभाव है।बीजेपी उनके चार दशक के प्रभाव को खत्म करना चाहती है।अगर वह इस काम में सफल हो जाती है तो सत्ता में बने रहने की उसकी राह आसान हो जायेगी।
यही वजह है कि आमतौर पर विनम्र माने जाने वाले शिवराज सिंह कमलनाथ को गड्ढे में गाड़ने और उनका राजनीतिक अंत करने की बात कह रहे हैं।उन्हें घेरने के लिए चक्रव्यूह रचा जा रहा है।बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को भी इस बात का अहसास है कि मध्यप्रदेश में कमलनाथ के रहते उसका सफर आसान नहीं रहने वाला है।इसलिए उन पर चौतरफा हमले की तैयारी की गई है।
एक तथ्य यह भी है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में छिंदवाड़ा की सभी सीटें कांग्रेस ने जीती थीं।यही नहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से मात्र छिंदवाड़ा की सीट बीजेपी जीत नही पाई थी।तब कांग्रेस के टिकट पर लड़े ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अपनी परंपरागत सीट गुना से चुनाव हार गए थे।
ऐसे में यदि बीजेपी छिंदवाड़ा और उसके आसपास के जिलों में अपने पांव जमा लेती है तो उसकी राह बहुत आसान हो जाएगी।
संघ भी इस काम में उसकी मदद कर रहा है।खुद संघ प्रमुख इस इलाके पर नजर रखे हुए हैं।आने वाले दिनों में उस पूरे अंचल में संघ कई अभियान चलाएगा।
वैसे आदिवासियों को रिझाने के लिए उसकी मुहिम काफी समय से चल रही है।विरसा मुंडा और टंट्या भील जैसे आदिवासी नायकों को वह लगातार याद कर रही है।राष्ट्रपति की कुर्सी पर "आदिवासी" को बैठाना इसी मुहिम का हिस्सा था।इसका प्रचार भी लगातार किया जा रहा है।मध्यप्रदेश में "पेसा" कानून लागू करने के पीछे भी यही उद्देश्य था।
पर अब मुख्यमंत्री पूर्व मुख्यमंत्री के लिए जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं,वह अच्छा संकेत नही है।मध्यप्रदेश में अभी तक इस तरह की राजनीति नही देखी गई थी।
हालांकि कमलनाथ ने मुख्यमंत्री के इस बयान का जवाब अपने ढंग से दिया है!लेकिन यह भी साफ है कि जिस कांग्रेस के वे मुखिया हैं,उसमें कितना बिखराव है।केंद्रीय नेतृत्व लगभग वेअसर है।राज्य के नेता अपनी अपनी ढपली बजा रहे हैं।इसका असर साफ दिखाई दे रहा है।
देखना यह है कि कमलनाथ दोनों मोर्चों पर कैसे निपटते हैं।अगर वे बीजेपी की आक्रामक रणनीति के आगे झुके तो उनके साथ साथ कांग्रेस के लिए भी घातक होगा।लेकिन एक बात साफ है कि बीजेपी उन्हें हर तरफ से घेरेगी!चाहे वह उनकी राजनीति का केंद्र छिंदवाड़ा हो या फिर उनका कारोबार!सब पर हमला तय है।