क्या मध्यप्रदेश उपचुनाव वाकई 12 मंत्री हार रहे है?

मध्यप्रदेश उपचुनाव में बीजेपी कांग्रेस में मची रस्साकस्सी

Update: 2020-10-29 08:16 GMT

28 स्थानों पर हो रहे उपचुनाव में अंदर ही अंदर कुछ अलग ही खिचड़ी पक रही है। यदि यह खिचड़ी पक गई तो भाजपा में जाने के बाद भी ज्योति बाबू लगभग खाली हाथ ही रहेंगे। अभी मंत्रिमंडल में केवल एक मंत्री पद की जगह ही खाली है, जबकि मंत्रिमंडल के बड़े भाग पर ज्योति बाबू के नकुल-सहदेव जमे हुए हैं। यदि यह सभी चुनावी मैदान में जीत गए तो भाजपा चुनाव जीतने के बाद भी खाली हाथ ही रहेगी। इसलिए नई रणनीति के तहत ज्योति बाबू के दस से अधिक मंत्री हार रहे हैं। इधर अपने खास सेनापति पेलवान को बचाने के लिए ज्योति बाबू को सांवेर में तीन बार दौरा करना पड़ा है, वहीं मुख्यमंत्री भी यहां गलियों की खाक छान चुके हैं।

जितने मंत्री ज्योति बाबू के कम होंगे, उतने भाजपा के बढ़ेंगे। इसीलिए भाजपा के कई दिग्गज इस समय केवल मुंह दिखाई की रस्म में लगे हुए हैं। पहले भी ज्योति बाबू पेलवान को उपमुख्यमंत्री बनाने के लिए अड़े थे और इस चुनाव के बाद भी पेलवान को उपमुख्यमंत्री बनाने पर ही अड़ेंगे। यह हम नहीं, भाजपा के ही संगठन के लोग कह रहे हैं। इस समय ज्योति बाबू के चौदह मंत्री बने हुए हैं, जबकि कुछ और इस्तीफे होने के बाद उन्हें भी मंत्री बनाने का वादा किया गया है। ऐसे में यदि मध्यप्रदेश में मंत्रियों की बहार आती रही तो भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं के पास में सिवाय थाली बजाने के कोई काम नहीं रहेगा। कुल मिलाकर कुछ ऐसा मामला हो जाएगा कि नाच-कूद रही हैं बांदरियां और खीर खाएंगे मदारी।

ठाकुरों के बीच नहीं हो पाई ठाकुरों की चर्चा...

दो दिन पहले राजपूत समाज को साधने के लिए इंदौर के ब्रिलियंट कन्वेंशन में एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। सम्मेलन पूरी तरह राजनीतिक लाभ के लिए आयोजित था। समाज को लेकर इसमें न तो वैचारिक बहस हुई और न ही समाज के युवाओं को नौकरियों के लिए आरक्षण की बात हुई। इस सम्मेलन में मुख्यमंत्री भी पहुंचे थे। उन्होंने मंच से ही दो टूक कह दिया था कि आपने बुलाया है तो मैं आया हूं। इस दौरान यहां पर कुछ नाटक भी शुरू हो गए थे। दो युवाओं को अपनी बात कहने के लिए मंच पर नहीं जाने दिया और उन्हें बाथरूम में बंद कर दिया गया। वहीं एक और युवक को मंच के सामने से पुलिस उठाकर ले गई। मुख्यमंत्रीजी पद्मावत पर अटके रहे और युवा आरक्षण और नौकरी पर। मामले की नजाकत देखते हुए कार्यक्रम से निकलने में ही मुख्यमंत्री ने भी बेहतरी समझी। दूसरी ओर इस कार्यक्रम के आयोजक परदे के पीछे उषा ठाकुर और मुकेश राजावत रहे। राजपूत समाज की शिकायत है कि दोनों का ही समाज में कोई वर्चस्व नहीं है। न ही समाज को लेकर आज तक इन्होंने कोई बात कही है। इसीलिए दोनों के इस सम्मेलन से समाज की मुख्य धारा दूर रही, जबकि चार विधानसभाओं में राजपूत समाज अभी भी निर्णायक स्थिति में बना हुआ है।

मानना पड़ेगा कंकर बना के छोड़ेंगे...

एक बात तो मानना पड़ेगी हमारे लटके-झटकेदार सांसद को सलाह कौन दे रहा है। ऐसे गुरुओं का सम्मान होना चाहिए। पिछले दिनों इन्हीं गुरु के कहने से उन्होंने अलग सिंध प्रांत की मांग लोकसभा में भी उठा दी थी। साथ ही सिंधी समाज के लिए वे और भी बहुत कुछ करना चाहते हैं, इसके लिए कई सवाल उन्होंने तोप की तरह दाग दिए थे। जब इस मामले में जमकर हल्ला मचा तो उन्होंने मौन धर्म अपना लिया। अब तीन महीने बाद एक बार फिर जब उनसे पूछा गया कि सिंधी राज्य बनाने की सलाह किसने दी तो उन्होंने कहा कि मैंने पाकिस्तान में सिंधियों के लिए अलग से प्रांत बनाने की बात कही थी। अब भिया को कौन समझाए, पाकिस्तान में सिंध प्रांत पहले से ही बना हुआ है और वहां के सिंधियों को जिस गति से भगाया जा रहा है और वे अपनी जान बचाकर भारत आ रहे हैं, उसके बाद भारत में ही पाकिस्तानियों का सिंधी प्रांत जरूर बनने की संभावना बन जाएगी और इसका सेम्पल देखना हो तो जेलरोड के मोबाइल मार्केट और सियागंज के दो बाजारों में देखा जा सकता है।

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