मध्यप्रदेश में सत्ता से सात कदम दूर भाजपा ने फिर दोहराई वही गलती, लोकसभा चुनाव में झटका लगना तय

मप्र में भाजपा सत्ता से सिर्फ सात सीट पीछे है। विधानसभा चुनाव के दौरान जिन सीटों पर भाजपा ने बुजुर्ग नेताओं के टिकट काटे थे, उनमें से ज्यादातर सीट कांग्रेस के पास हैं।

Update: 2019-04-09 06:27 GMT

भारतीय जनता पार्टी में इन दिनों टिकट चयन को लेकर अंदरूनी तौर पर खींचतान और मंथन चल रहा है। पार्टी हाईकमान बुजुर्ग नेताओंं को परफॉर्मेंस और उम्र का हवाला देकर इस बार लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं देकर घर बैठाने में जुटा है। जबकि बुजुर्गों को घर बैठाने का खामियाजा मप्र में चार महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी भुगत चुकी है। मप्र भाजपा ने विधानसभा चुनाव के दौरान जितने उम्रदराज नेताओं के टिकट काटे थे, उतनी ही सीटों से सरकार बनाने से पीछे रह गई। लोकसभा चुनाव में भी पार्टी हाईकमान अभी आधा दर्जन से ज्यादा बुजुर्ग नेताओं को घर बैठा चुकी है।

खास बात यह है कि भाजपा हाईकमान ने लोकसभा चुनाव में उम्र का हवाला देकर जिन नेताओं के टिकट काटे हैं, उनमें से ज्यादातर पार्टी के स्तंभ पुरूष, पार्टी को खड़ा करने वाले हैं। भाजपा हाईकमान अभी तक लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोश, कलराज मिश्र, उमा भारती, सुषमा स्वराज समेत अन्य दिग्गज नेताओं के नाम पर कैंची चला चुका है। इंदौर सांसद सुमित्रा महाजन का भी लगभग टिकट कटना तय है। इस बार लोकसभा चुनाव से बाहर होने के बाद इन नेताओं को घर बैठाने की तैयारी है। वरिष्ठ नेताओं के टिकट काटने के पीछे पार्टी हाईकमान वही तर्क (चुनाव में उनके अनुभवोंं का लाभ लिया जाएगा, वे हमारे वरिष्ठ नेता हैं) दे रहा है जो विधानसभा चुनाव के दौरान वयोवद्ध नेताओं के टिकट काटकर मप्र भाजपा ने दिए थे।

उल्लेखनीय है कि मप्र भाजपा ने विधानसभा चुनाव के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर का टिकट काटा था। प्रदेश नेतृत्व गौर की बहू कृष्णा को भी टिकट देने के पक्ष में नहीं था, लेकिन ऐनवक्त पर गौर के मुखर होने पर उनकी बहू को टिकट दिया गया था। पूर्व मंत्री सरताज सिंह, कुसुम मेहदेले, रामकृष्ण कुसमारिया को भी उम्र का हवाला देकर टिकट नहीं दिया गया है। खास बात यह है कि शिवराज सरकार के तीसरे कार्यकाल में प्रदेश नेतृत्व ने गौर और सरताज को हाईकमान के गाइडलाइन बताकर उम्र का हवाला देकर मंत्रिमंडल से बाहर किया था, लेकिन बाद में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने प्रदेश नेतृत्व की यह करकर पोल खोली थी कि उम्र की कोई गाइडलाइन दिल्ली से तय नहीं की गई। मप्र में भाजपा सत्ता से सिर्फ सात सीट पीछे है। विधानसभा चुनाव के दौरान जिन सीटों पर भाजपा ने बुजुर्ग नेताओं के टिकट काटे थे, उनमें से ज्यादातर सीट कांग्रेस के पास हैं।

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