कुएं में 11 मौतों के बाद उठे सवाल!
जैसा कि हमेशा होता है मुख्यमंत्री कंट्रोल रूम से उठकर लालपठार गांव तक नही पहुंचे।बचाव कार्य प्रशासन पर छोड़ वे भाजपा अध्यक्ष जय प्रकाश नड्डा से मिलने दिल्ली चले गए।
भोपाल।मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का अपना जिला कहे जाने वाले विदिशा में एक कुएं में 11 मौतों के बाद सरकार वह सब कुछ कर रही है जो किसी हादसे के बाद रस्म अदायगी के तहत किया जाता है।कमोवेश ऐसा ही हाल विपक्ष का है।लेकिन मूल सवालों पर न कोई बात कर रहा है और न कोई सवाल उठा रहा है।
उल्लेखनीय है कि विदिशा जिले के गंजबासौदा क्षेत्र के लाल पठार गांव में एक कुँए के ढह जाने से 11 लोग मारे गए थे।बड़ी संख्या में लोग घायल हुए थे।हादसा गुरुवार को हुआ था।करीब दो सौ घरों वाले इस गांव में एक बच्चा कुएं में गिर गया था।उसे देखने गांव के लोग कुएं के आसपास इकट्ठे हुए।दवाब में कुएं की दीवारें धसक गयीं।जिसकी बजह से किनारे खड़े लोग मलबे के साथ नीचे कुएं में जा गिरे।उनके नीचे वे लोग भी दब गए जो बच्चे को बचाने कुएं में उतरे थे।
जिस समय यह घटना हुई उस समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह विदिशा में ही थे।वे अपनी दत्तक पुत्रियों का विवाह करवा रहे थे। सरकारी सूचना के मुताविक उन्होंने विवाह स्थल पर ही कंट्रोल रूम बनाया।बचाव कार्य की निगरानी की।पूरी ताकत झोंक दी।मौतों पर दुख भी व्यक्त किया।मरने वाले लोगों के परिजनों को मुआवजा देने का भी ऐलान किया।घटना पर दुखी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी हुए।उन्होंने भी ट्वीट करके अपना दुख जाहिर कर दिया।
जैसा कि हमेशा होता है मुख्यमंत्री कंट्रोल रूम से उठकर लालपठार गांव तक नही पहुंचे।बचाव कार्य प्रशासन पर छोड़ वे भाजपा अध्यक्ष जय प्रकाश नड्डा से मिलने दिल्ली चले गए।
प्रशासन अपना काम मुस्तैदी से कर रहा है।उसने कुएं से लाशें निकालने के लिए उसे ही खत्म कर दिया। इसके साथ ही पूरे जिले के जर्जर कुओं का सर्वे कराने का भी ऐलान कलेक्टर साहब ने कर दिया है।साथ ही इस घटना की जांच की भी घोषणा कर दी है।जांच के बिंदु भी तय कर दिए गए हैं।जिले के एडीएम अब यह पता लगाएंगे कि 11लोगों की जान लेने वाले कुएं को सरकार के किस विभाग ने,किस योजना के तहत बनबाया था।कुएं के रखरखाव की जिम्मेदारी किसकी थी।क्या कुआं लोगों के उपयोग के लिए सुरक्षित था।अगर नही था तो उसकी मरम्मत क्यों नही कराई गई।कुएं को लोगों के लिए बंद क्यों नही किया गया।और..हादसा कैसे हुआ।कौन जिम्मेदार है।आदि.. आदि!
जैसा कि हमेशा होता आया है। जांच होगी।रिपोर्ट बनेगी।गांव का पटवारी या सचिव दोषी बता दिए जाएंगे।उसके बाद फ़ाइल बंद हो जाएगी।
इस घटना पर विपक्ष की भूमिका भी ऐसी ही रही है।प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने अपनी टीम गांव में भेजी।खुद को बड़ा नेता बनाने के लिए हरसम्भव उपाय कर रहे कांग्रेस नेता ने मुख्यमंत्री को कटघरे में खड़ा किया।मारे गए लोगों के परिजनों को 50-50 लाख का मुआवजा और एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की मांग की। मीडिया के सामने कुछ और आरोप लगाए।गांव में घूमें और लौट आये।
उधर 11 लोगों की मौत के बाद विदिशा के कलेक्टर साहब नींद से जाग गए हैं।साथ ही जनप्रतिनिधियों की भी तंद्रा भंग हुई है।शनिवार को गांव में सरकारी ट्यूबवेल खुदना शुरू हो गया था।विधायक जी ने भी अपनी निधि से 5 हैंडपम्प स्वीकृत कर दिए हैं।उम्मीद की जानी चाहिए कि हैंडपम्प लग भी जाएंगे!सब कुछ सामान्य हो जाएगा।
लेकिन सवाल यह है कि वास्तव में इस दुर्घटना के लिए जिम्मेदार कौन है। करीब 200 परिवारों वाले इस गांव में पीने के पानी की आपूर्ति उसी कुएं से होती थी जो 11 लोगों की जान लेने के बाद नेस्तनाबूद कर दिया गया है।अकेले लाल पठार में ही नही आसपास के अन्य गांवों में भी पीने के पानी के स्रोत इकलौते कुएं ही हैं।सैकड़ों परिवारों के बीच एक कुआं।
ऐसे और भी कई गांव विदिशा जिले में होंगे।प्रदेश में तो इनकी संख्या बहुत ज्यादा हो सकती है।
बात विदिशा जिले की है तो सवाल यह भी है कि आखिर जब विदिशा की यह हालत है तो अन्य जिलों के क्या हो रहा होगा।सवाल इसलिए क्योंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का यह दावा है कि विदिशा उनके दिल के सबसे करीब है। होना भी चाहिये क्योंकि पहली बार बुधनी से विधानसभा चुनाव जीतने वाले शिवराज सिंह चौहान को विदिशा ने 1991 में संसद में पहुंचाया था।वे अटलविहारी बाजपेयी द्वारा खाली की गई सीट पर उपचुनाव लड़े और जीते थे। उसके बाद मुख्यमंत्री बनने तक,(2005 तक) वे लोकसभा में विदिशा का प्रतिनिधित्व करते रहे।उनके बाद हुए उपचुनाव में उनके करीबी रामपाल सिंह सांसद बने।फिर स्वर्गीय सुषमा स्वराज ने विदिशा का प्रतिनिधित्व किया!वर्तमान सांसद रमाकांत भार्गव भी शिवराज की ही पसंद हैं।
अब सवाल यह है कि करीब 13 साल तक सांसद और 15 साल से भी ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहने वाला व्यक्ति क्या एक जिले को भी "आदर्श" नही बना सकता। हर साल विदिशा में तमाम कार्यक्रम करने वाला "आदर्श नेता" क्या जिले में सबसे मूल जरूरत पेयजल की जमीनी हकीकत का आंकलन नही करा पाया।जिले के हर गांव में घूमने का दावा करने वाले "लोकप्रिय" नेता ने कभी इस समस्या पर नजर डाली भी थी या नहीं। विदिशा में अपनी खेती,बागवानी और पशुपालन का बखान करने वाले मुखिया ने कभी लोगों पर ध्यान दिया भी था या फिर अपने ही विकास तक केंद्रित होकर रह गए थे।
सवाल बहुत हैं।जिनके जवाब कभी नहीं मिलेंगे।क्योंकि हमारे देश में नेता सिर्फ दुख व्यक्त करने,आंसू बहाने,आरोप लगाने और खुद को मजबूत करने के लिए ही जाने जाते हैं!उनकी कोई जवाबदेही नही होती है।शायद कभी होगी भी नही!लोग चाहे कुएं में दब कर मरें या इलाज न मिलने की बजह से,अस्पताल के बाहर!इसके लिए भगवान के अलाबा कोई जिम्मेदार नही !!