पंचक में बन गया शिव 'राजÓ का पंचनामा, सिंधिया बढ़े दो कदम मुख्यमंत्री पद की ओर

पंचक में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को शपथ लेना भारी पड़ गया है। कल पहली बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डाजी सिंधिया के निवास पर चर्चा के लिए पहुंचे थे और वे भी खाली हाथ ही वापस लौटे।

Update: 2020-07-10 10:54 GMT

नवनीत शुक्ला 

पंचक में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को शपथ लेना भारी पड़ गया है। कल पहली बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डाजी सिंधिया के निवास पर चर्चा के लिए पहुंचे थे और वे भी खाली हाथ ही वापस लौटे। जहां शिवराज यश-अपयश के बीच क्रिकेट की भाषा में विपरीत परिस्थिति में भी पिच पर डटे रहने के लिए हाथ-पांव मार रहे है तो वहीं दोनों एम्पायर सहित उनके लगभग सभी फिल्डर मैदान छोड़कर हट चुके है। इस बीच उन्होंने खुद यह कहा था कि उन्होंने पंचक में मजबूरी में शपथ ली।

हालांकि पंचक तो उस समय से ही यानि 2014 से ही लग गया था जब उन्होंने दिल्ली की कई सड़कों पर बड़े-बड़े होर्डिंग भावी प्रधानमंत्री के रूप में दिखा दिए थे। उसी समय से उनकी राशि में राहू-केतू का प्रवेश हो गया था। इस बीच उनके गृह (योग) भी दिल्ली में कमजोर पड़ते गए। परिणाम अचानक गुरु की दशा बदलते ही ज्योति ग्रहण अपने ग्रहों के साथ उनकी राशि में प्रवेश कर गया। हालांकि कोई भी राजनेता अपने पिछले राजनेता की दुर्दशा से सबक लेता है, परंतु सत्ता की जल्दी में शिवराज ने कमलनाथ से सबक नहीं लिया। उन्होंने भी पंचक में ही शपथ ली थी।

इधर जो लोग सिंधिया के माथे पर मध्यप्रदेश में भाजपा की दुर्दशा का ठिकरा फोड़ रहे है उन्हें भी यह समझ लेना चाहिए कि समझौता यह हुआ था कि एक राज्यसभा के साथ मंत्री बनाना और मध्यप्रदेश में उनके विधायकों में से एक को उप मुख्यमंत्री बनाना और चाहे गए मंत्रालय शामिल थे। भाजपा इस समझौते से पीछे हट रही है। यानि सिंधिया के सिर पर चढ़कर सत्ता में वापस काबिज होने के लिए शिवराज का सपना अब पूरा नहीं होगा। मध्यप्रदेश से उनकी रवानगी की कहानी लिखी जा चुकी है। अब मध्यप्रदेश में सिंधिया भाजपा की नई कहानी लिखने जा रहे है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि तीन दिन तक दिल्ली में घर-घर तूती बजाने के बाद वे

पिच पर डटे रहो रन बने न बने...

अपने चाहे गए मंत्रालय नहीं ले पाए। खाली हाथ उन्हें भोपाल बेरंग लौटना पड़ा है। कुल मिलाकर मंत्रालयों की कहानी इस कदर उलझ गई है कि फिलहाल इसमें कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा है। सिंधिया भी अब किसी से मिलने को तैयार नहीं है। 13 साल तक भाजपा के सबसे ताकतवर नेता के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले शिवराज जो टाइगर के रूप में अपनी बात कहने का दावा करते थे दिल्ली बैठे नेताओं ने उन्हें भीगी बिल्ली की तरह करके छोड़ दिया है। अब वे केवल कठपुतली के अलावा कुछ नहीं बचे है। दूसरी ओर उनकी कमजोरी के यह भी संकेत दिख रहे है कि वे अपने तमाम प्रयास के बाद भी 5 खास सिपहसालारों को मंत्री नहीं बना पाए। अब भाजपा गुटों से निकलकर चिथड़ों में बंटने की स्थिति में आ गई है। कोई आश्चर्य की बात नहीं कि गुटों के झगड़े आने वाले समय में सत्ता की लालच के चलते सड़कों पर दिखाई देने लगेंगे।

भंवर दादा ने जाल बुनना शुरू किया...

बदनावर चुनाव में करारी हार नहीं भूले भंवर दादा ने अब आर.के. स्टूडियो के खिलाफ पूरी ताकत से मोर्चा खोल दिया है। शेखावत दादा ने भोपाल में आर के सामने यह दावा कर दिया है कि उन्होंने तमाम चिट्ठे निकालना शुरू कर दिए हैं। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मेरे पास इतनी जानकारी आ गई है, जो दिल्ली से भोपाल तक जब बंटेगी, तब। मुझे नहीं मालूम कहां-कहां से फटेगी। इसे लेकर उनके जासूसों ने कई विभागों में सूचना के अधिकार के तहत पत्र भी लगाना प्रारंभ कर दिए हैं। अब यह तो समय ही बताएगा। हालांकि यह भी तय है कि 365 दिन पृथ्वी उसी स्थान से वापस घूमना शुरू करती है, जहां से चली थी। इसलिए समय का खेल निराला है और वैसे भी इन दिनों निराला हनुमान ही चारों दिशा से दिख रहे हैं। 

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