निगम मंडलों में सिंधिया समर्थकों का बढ़ा दबदबा, धोखेबाज ज्योतिरादित्य सिंधिया के आगे झुकी शिवराज सरकार
क्या सिंधिया के सामने कठपुतली बन गई शिवराज सरकार?
विजया पाठक
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बतौर मुख्यमंत्री चौथी पारी शुरू होने के साथ ही निगम मंडल में नियुक्तियों को लेकर लगातार कयास लगाए जा रहे थे। आखिरकार शिवराज सरकार ने इन सभी कयासों पर पिछले दिनों रोक लगा दी और प्रदेश के कई प्रमुख विभागों में निगम मंडलों में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के नामों की घोषणा कर दी। इन नामों की घोषणा के साथ ही एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के बीच खुसफुसाहट का सिलसिला शुरू हो गया है। क्योंकि निगम मंडलों की नियुक्तियों में भी कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और बिग्रेड के समर्थकों का पलड़ा भारी रहा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निगम मंडलों के अध्यक्षों व उपाध्यक्षों में भी सबसे ज्यादा सिंधिया समर्थित नेताओं को प्रमुखता दी गई है। इन नियुक्तियों से एक बार फिर यह साबित हो गया है कि लगभग 19 महीने पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामने वाले सिंधिया के निर्णय के आगे पूरी प्रदेश भाजपा सहित मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद भी नतमस्तक हैं।
सिंधिया का दबदबा रहा कायम
आप सभी को ध्यान होगा कि जिस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा का दामन थामा था और प्रदेश में शिवराज सरकार बनी थी। उस समय मंत्रीमंडल के पोर्टफोलियो बंटवारे में भी सिंधिया ने जबरदस्त हस्तक्षेप किया था। यही वजह थी कि शिवराज सिंह चौहान को सिंधिया कोटे से मंत्री बनाए गए विधायकों को प्रमुख पोर्टफोलियो देना पड़ा। हालांकि उस समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस निर्णय़ का काफी विरोध भी हुआ था लेकिन पार्टी आलाकमान से लेकर खुद मुख्यमंत्री ने भी इस बात को स्वीकार किया और सिंधिया समर्थक विधायकों को उनके मर्जी अनुसार पोर्टफोलियो वितरित किया गया। इसी तरह एक बार फिर निगम मंडल अध्यक्षों की नियुक्तियों में भी उन्हीं का पलड़ा भारी रहा और सिंधिया खेमे के पांच प्रतिनिधियों को निगम मंडलों में स्थान दिया गया। खास बात यह है कि यह वहीं प्रतिनिधि हैं जो उपचुनावों में हार गए लेकिन शिवराज सरकार को न चाहते हुए भी उन्हें वरिष्ठतम स्थान देना पड़ा। इनमें इमरती देवी, गिर्राज दंडोतिया, जसवंत जाटव, मुन्ना लाल गोयल और रघुराज कंसाना शामिल हैं।
आखिर ऐसी क्या मजबूरी है बताएं शिवराज?
जिस तरह से राज्य में निगम मंडलों में अध्यक्षों की नियुक्तियां की गई हैं ऐसे में शिवराज सिंह चौहान को यह बताना होगा कि आखिर प्रदेश सरकार की ऐसी क्या मजबूरी है कि उन्होंने हारे हुए विधायकों को निगम मंडलों में स्थान दिया, लेकिन वर्षों से भाजपा की सेवा करते आ रहे अपने ही जीते विधायकों व कार्यकर्ताओं को इस योग्य भी नहीं समझा कि उन्हें निगम मंडलों में नियुक्ति दी जा सके। अगर इसी तरह चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब धोखेबाज ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रदेश की राजनीति में वर्चस्व का डंका बजने लगेगा।
भाजपा में शुरू होगी अंर्तकलह
भारतीय जनता पार्टी के इस फैसले से कहीं न कहीं उन नेताओं और कार्यकर्ताओं को बड़ा झटका पहुंचा है जो वर्षों से इस कयास में जुटे हुए थे कि इस बार उन्हें निगम मंडलों में स्थान मिलना तय है। लेकिन सिंधिया के हस्तक्षेप के कारण भाजपा कार्यकर्ताओं का यह सपना अधूरा रह गया और अब उन्हें इन पदों को पाने के लिए अगले कुछ सालों का फिर इंतजार करना पड़ेगा। राजीनितक विशलेषकों की मानें तो शिवराज सरकार के इस फैसले से कहीं न कहीं भाजपा नेताओं के बीच अंर्तकलह शुरू हो जाएगी। इस अंर्तकलह का परिणाम आगामी विधानसभा चुनाव और नगरीय निकाय के चुनावों में भाजपा को भुगतना पड़ सकता है जो कि चिंताजनक और विचारणीय है।
पूर्व सीएम कमलनाथ से सीखना चाहिए शिवराज सरकार को
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कांग्रेस सरकार के समय कुछ निगम मंडलों में नियुक्तियां कर दी थी। उन नियुक्तियों में कमलनाथ ने जनता के बीच कार्यकर्ताओं की सक्रियता और पार्टी के प्रति समर्पण के आधार पर ही निगम मंडलों में नियुक्तियां दी थी। यही वजह थी कि उस समय सिंधिया समर्थकों को उन्होंने कोई उचित स्थान नहीं दिया था, जिससे झल्लाये सिंधिया ने अपने चरित्र अनुरूप कमलनाथ को धोखा दिया और कांग्रेस छोड़ भाजपा को ज्वॉइन कर लिया। हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कमलनाथ से यह बात सीखना होगा कि जुगाड़ को प्राथमिकता देने के बजाय कार्यकर्ताओं के समर्पण को प्राथमिकता देनी चाहिए।