लगातार आ रहे सर्वे ने सरकार की स्थिति बताई बेहद नाजुक, शिवराज के करीबी अफसरों में दिल्ली भागने की मची होड
Shivraj's close officers compete to run away to Delhi
अभिषेक दुबे
भोपाल। विधानसभा चुनाव से पांच महीने पहले आ रहे सर्वे ने सरकार की स्थिति बेहद नाजुक बताई है। सर्वे देखकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी अफसरों ने उनसे दूरी बनानी शुरू कर दी है। वे अकेले पड़ने लगे हैं। उनके सबसे करीबी अफसर उनका साथ छोड़कर दिल्ली जाना शुरू हो गए हैं। साथ ही कुछ करीबी अफसरों ने पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से गोपनीय तौर पर मुलाकात की है। इसके अलावा सीधी कांड में भी मुख्यमंत्री शिवराज अकेले पड़ते नजर आ रहे हैं। उन्हें इस मामले में न तो संगठन का साथ मिला है और न सरकार का। इसी तरह इस पूरे मामले में केन्द्र से भी उन्हें किसी का साथ नहीं मिला है। इस मामले के पीड़ित आदिवासी के भले ही उन्होंने पैर धुला दिए हों लेकिन किसी बड़े नेता ने उनके इस कदम की तारीफ नहीं की है।
यह करीबी अफसर दिल्ली जाने की तैयारी में
दीप्ती गौड़ मुखर्जी – अब तक प्रमुख सचिव कार्मिक की जिम्मेदारी संभाल रहीं। पिछले तीन सालों में आईएएस अफसरों की सबसे ज्यादा सीआर खराब हुईं। खासकर युवा अफसरों की। अच्छी पोस्टिंग नहीं मिलने से दुखी अफसरों ने जब दिल्ली डेप्युटेशन पर जाने की तैयारी की तो उन्हें एनओसी ही नहीं दी गई। इस मामले में मुखर्जी की ओर से किसी भी अफसर की कोई मदद नहीं गई। इससे अफसरों में काफी नाराजगी है। अब चुनाव से ऐनवक्त पहले दिल्ली डेप्युटेशन पर जाने की चर्चा है। अचानक इनके विभाग में सचिव बनाकर जीवी रश्मि की पदस्थापना की गई है। ऐसी चर्चा है कि मुखर्जी के जाने के बाद रश्मि ही विभाग की जिम्मेदारी संभालती रहेंगी।
दीपाली रस्तोगी – महिला एवं बाल विकास विभाग और कमर्शियल टैक्स विभाग जैसे सबसे महत्वपूर्ण विभाग इनके ही पास हैं। इनके विभाग में किसी का हस्तक्षेप नहीं रहा। इनके विभाग के मंत्री जगदीश देवड़ा ने तो कई बार शिकायत कर दी कि मैडम मेरा फोन नहीं उठाती हैं। उसके बावजूद यह अपनी मर्जी से काम करती रहीं। अब दिल्ली जाने की तैयारी कर रहीं हैं।
मनीष रस्तोगी – चीफ सेक्रट्री के बाद सबसे पॉवरफुल पोस्ट मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव की जिम्मेदार संभाल रहें हैं। युवा आईएएस अफसर नेहा मारव्या से लेकर कई केबिनेट मंत्रियों ने इनके खिलाफ दुर्व्यवाहर की शिकायत की। इसके बावजूद मुख्यमंत्री के चहेते अफसरों में शामिल हैं। पांच साल तक राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव रहे। सबसे ज्यादा जमीन घोटाले इनके ही कार्यकाल में हुए। मुख्यमंत्री की कोर टीम में शामिल अफसरों से अब इनकी पटरी नहीं बैठ रही है। अचानक राजस्व विभाग से रस्तोगी को हटा दिया गया है।
आईपीएस अफसरों की ऐसी दुर्दशा पहली बार
मुख्यमंत्री शिवराज के पिछले तीन साल के कार्यकाल में आईपीएस अफसरों की जो दुर्दशा हुई है वो मध्यप्रदेश के इतिहास में कभी नहीं हुई। फिलहाल किसी भी आईपीएस अफसर का सरकार में कोई हस्तक्षेप नहीं है। उदाहरण के तौर पर किसी भी आईपीएस को नहीं पता होता है कि निवाड़ी जैसे छोटे से जिले के एसपी को जबलपुर जैसे बड़े और अतिसंवेदनशील जिले का एसपी बना दिया जाएगा। इसी तरह जबलपुर में अच्छा कार्यकाल के बावजूद रतलाम जैसा छोटा जिला दे दिया जाएगा। अब तक मुख्यमंत्री का ओएसडी सीधी भर्ती का कोई सीनियरआईपीएस अफसर होता था। लेकिन पहली बार डीआईजी रैंक के प्रमोटी अफसर को मुख्यमंत्री का ओएसडी बनाया गया है। एएसपी और डीएसपी रैंक के योग्य अफसर पिछले तीन साल से पोस्टिंग के लिए तरस रहे हैं लेकिन इनके लिए कहने वाला कोई अफसर मुख्यमंत्री की टीम में नहीं है। इस कार्यकाल में कोई बड़ी तबादला सूची भी जारी नहीं की गई है। भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ी-बड़ी बातें करने वाले मुख्यमंत्री अचानक प्रदेश ईमानदार अफसरों में शुमार आईपीएस अफसर कैलाश मकवाना को लोकायुक्त संगठन से छह महीने के छोटे से कार्यकाल में हटाकर पुलिस हाउसिंग कॉर्पोशन में पदस्थ कर देते हैं। इसी तरह ओएसडी के तौर पर पुलिस अफसरों के लिए बेहतरीन तरीके से जिम्मेदारी संभाल रहे एडीजी रैंक के अफसर योगेश चौधरी को हटाकर लोकायुक्त संगठन में पदस्थ कर दिया गया। एक सीनियर आईपीएस अफसर कहते हैं कि ऐसी दुर्दशा आईपीएस अफसरों की प्रदेश के इतिहास में कभी नहीं हुई। अब हमारी समस्या का समाधान तो दूर मुख्यमंत्री मिलने तक के लिए तैयार नहीं है। ऐसी स्थिति सरकार के लिए ठीक नहीं है।
चीफ सेक्रेट्री को डबल एक्सटेंशन
चीफ सेक्रेट्री इकबाल सिंह बैंस मुख्यमंत्री के सबसे करीबी अफसरों में शामिल हैं। प्रदेश के इतिहास में पहली बार मुख्यमंत्री ने किसी चीफ सेक्रेट्री को डबल एक्सटेंशन दिलाया है। जबकि भाजपा नेता मंत्री से लेकर आईएएस अफसरों का एक बड़ा वर्ग उनकी कार्यप्रणाली से बेहद नाराज है। सरकार के ही एक मंत्री कहते हैं कि हमारे मुख्यमंत्री हमसे ज्यादा उन्हीं बैंस पर भरोसा करते हैं जिन्हें पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय ने अपने कार्यकाल में भोपाल कलेक्टर समेत कई अहम पदों से नवाजा था। भाजपा सरकार के मंत्री बताते हैं कि केबिनेट की बैठक में मुख्यमंत्री से ज्यादा तो चीफ सेक्रेट्री बोलते हैं।
दो करीबी अफसरों की नहीं होने दी वापसी
प्रदेश में 2018 में जैसे ही कांग्रेस की सरकार आई थी शिवराज सिंह के कार्यकाल में शामिल रहे उनके बेहद करीबी आईएएस अफसर विवेक अग्रवाल और हरिरंजन राव दिल्ली डेप्युटेशन पर चले गए थे। लेकिन सूत्र बताते हैं कि भाजपा की सरकार वापस आने के बाद यह दोनों अफसर प्रदेश वापसी चाहते थे। लेकिन मुख्यमंत्री की मौजूदा टीम में शामिल एक बड़े अफसर ने इन दोनों की वापसी नहीं होने दी। जबकि अग्रवाल और राव बेहद योग्य अफसरों में गिने जाते हैं। यह दोनों की प्रदेश वापसी होती तो सरकार की स्थिति शायद इतनी खराब नहीं होती जितनी अभी हुई है। अग्रवाल केन्द्र में फायनेंस विभाग में महत्वपूर्ण पद पर हैं तो राव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कोर टीम में शामिल हैं। उनके पास पीएमओ में एडिशनल सेक्रेट्री की जिम्मेदारी है।