एमपी में मंत्रियों की संख्या पर सुप्रीम कोर्ट ने शिवराज सिंह चौहान से मांगा जवाब
इसके बाद शिवराज सिंह चौहान ने 23 मार्च को राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी और 21 अप्रैल को उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में पांच कैबिनेट मंत्रियों को शामिल किया था।
संजय रोकड़े
मध्यप्रदेश में राजनीतिक उठापठक खत्म होने का नाम ही नही ले रही है। कथिततौर भाजपा ने कांग्रेेसी विधायकों की खरीद फरोख्त करके कमलनाथ सरकार को गिराकर अपनी सरकार बनाई, इसके बाद से कुछ न कुछ चल ही रहा है।
पहले तो लंबे समय तक मंत्रिमंड़ल का गठन नही हो पाया जब तमाम विरोध के बाद मंत्रिमंड़ल का गठन हो भी गया तो विभागों का बटवारा नही हो पाया। विभागों के बटवारे को लेकर भाजपा में ही जम कर खीचातानी होने लगी।
हालाकि तमाम जद्दोजहद के बाद विभागों का विभाजन होने के बाद लग रहा था कि सब कुछ शांतिपूर्वक चलने लगेगा लेकिन ऐसा नही हुआ और अब फिर एक नया बखेड़ा खड़ा हो गया है।
अब यह नया बखेड़ा प्रदेश में मंत्रियों की संख्या को लेकर खड़ा हुआ है। मध्य प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने संविधान के अनुच्छेद 164 (1ए) का हवाला देते हुए एक याचिका दायर करते हुए कहा है कि राज्य में इसका मंत्रियों की संख्या को लेकर उल्लंन हुआ है।
प्रजापति ने अपनी याचिका में कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 164 (1ए) के मुताबिक किसी राज्य में मंत्रिपरिषद में कुल मंत्रियों की संख्या मुख्यमंत्री समेत उस राज्य के विधानसभा सदस्यों की कुल संख्या के15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती है। वे कहते है कि प्रदेश में इसका सरासर उल्लंघन हुआ है।
काबिलेगौर हो कि मुख्यमंत्री चौहान ने दो जुलाई को अपने मंत्रिमंडल का बड़ा विस्तार किया था और 28 नए सदस्यों को इसमें शामिल किया था जिनमें से एक दर्जन पूर्व कांग्रेसी विधायक थे, जिनके विद्रोह की वजह से प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिरी थी।
इसके बाद शिवराज सिंह चौहान ने 23 मार्च को राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी और 21 अप्रैल को उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में पांच कैबिनेट मंत्रियों को शामिल किया था।
इस मामले में नया मोड़ ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रजापति की याचिका पर संज्ञान लिया है। शिवराज सिंह के नेतृत्व वाली प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा 28 मंत्रियों की नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस नेता की उस आपत्ति पर संज्ञान लिया कि यह संविधान के तहत तय मंत्रियों की अधिकतम सीमा का उल्लंघन है।
इसको लेकर सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना एवं वी. रामासुब्रमणियन की पीठ ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और उनकी सरकार को नोटिस जारी कर विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एनपी प्रजापति की याचिका पर उनका जवाब मांगा है।
इस केश में प्रजापति की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, विवेक तनखा और अधिवक्ता वरुण तनखा तथा सुमीर सोढ़ी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि मध्यप्रदेश मंत्रिमंडल में 28 मंत्रियों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 164 (1ए) का स्पष्ट उल्लंघन है। पीठ ने कहा कि वह नोटिस जारी कर रही है और इस मामले की सुनवाई करेगी।
राज्य की गोटेगांव विधानसभा सीट से विधायक प्रजापति ने अपनी याचिका में एक वैधानिक सवाल उठाया है कि क्या मंत्रिपरिषद के कुल सदस्यों की अधिकतम सीमा विधानसभा में सीटों की कुल संख्या से तय होगी या विधानसभा में सदस्यों की मौजूदा संख्या से।
प्रजापति ने याचिका में कहा है कि हालाकि मौजूदा मामलों में फिलहाल प्रदेश विधानसभा में सिर्फ 206 सदस्य हैं, प्रतिवादी (राज्यपाल, शिवराज सिंह चौहान और मध्य प्रदेश सरकार) सरकार मंत्रिपरिषद में 30.9/31 सदस्यों से ज्यादा की नियुक्ति नहीं कर सकते है।
अगर सीटों की संख्या निर्णायक होगी तो 15 प्रतिशत के हिसाब से मंत्रिपरिषद में अधिकतम सीमा 34. 5 होगी। अगर यह विधानसभा के मौजूदा सदस्यों की संख्या के अधिकतम 15 प्रतिशत से निर्धारित होगी तो मंत्रिपरिषद में अधिकतम 30.9/31 सदस्य हो सकते हैं।
प्रजापति ने कहा कि निर्विवाद स्थिति है कि दो विधायकों के निधन और 22 विधायकों के विधानसभा से इस्तीफा देने के बाद विधानसभा में अभी 206 सदस्य हैं और 24 सीटें खाली हैं जिन पर नए सिरे से चुनाव होगा। लेकिन 28 मंत्रियों की नियुक्ति के साथ ही मंत्रिपरिषद के कुल सदस्यों की संख्या मुख्यमंत्री समेत 34 हो गई है।
दरअसल, प्रदेश में ये हालात क्यूं निर्मित हुए तो इसकी कहानी ये है कि राज्यसभा टिकट न मिलने से नाराज होकर 10 मार्च को सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद सिंधिया ने 11 मार्च को भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी।
ठीक इसके बाद 22 कांग्रेस विधायकों के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के कारण ही बीते 20 मार्च को प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिर गई थी, तब से ही ये उठापठक जारी है।