मध्यप्रदेश की सियासी पिच पर अब लेगी गेंद स्विस टर्न, जानकर हैरान मत होना अंदर की ये बात

हाँ , इतना जरूर होगा कि दिग्विजय सिंह की भूमिका में बदलाव आएगा और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भी बदले जाएंगे। सिंधिया अब लंबे समय के लिए अप्रासंगिक हो जाएंगे।चाहे वो कहीं रहें।"

Update: 2020-03-11 11:46 GMT

उत्कर्ष सिन्हा 

कहते हैं कि सियासत की पिच कब मिजाज बदल ले और फिर आसान बल्लेबाजी वाली पिच पर भी गेंद खतरनाक तरीके से स्विंग करने लगे, ये कोई नहीं जनता। मध्यप्रदेश की सियासी पिच पर भी फिलहाल हर बाल अनोखे तरीके से स्विंग कर रही है।

टीम भाजपा ने यहां भी वही किया जो कुछ महीनों पहले कर्नाटक में किया था। जब कोई गेंदबाज अपनी किसी खास गेंद पर विकेट पाने लगता है तो मौके पर उसे आजमाता जरूर है, तो भाजपा ने ठीक वही गेंद डाली जिस पर कर्नाटक में उसे विकेट मिला था। लेकिन हर बल्लेबाज एक जैसा नहीं होता। मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार "आपरेशन कमल" में फांसी तो जरूर दिखाई दे रही है मगर हथियार डालने को अभी भी तैयार नहीं है ।

लंबे समय तक कांग्रेस में रहने के बाद सिंधिया घराने के इकलौते बचे कांग्रेसी ज्योतिरादित्य भी भाजपा में शामिल हो गए , खबरों की दुनिया में होली के दिन आई इस खबर ने भूचाल जरूर ला दिया, लेकिन जिन लोगों की निगाह पूरे घटना क्रम पर थी उनके लिए ये कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। इस घटना में खास बात सिर्फ ये थी कि ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस से इस्तीफा देने के लिए अपने पिता माधव राव सिंधिया का जन्मदिन चुना ।

अब ज्योतिरादित्य भाजपा के सिपाही हैं और पार्टी ने उन्हे राज्यसभा का वो टिकट भी दे दिया है जिसके चलते वे कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से खफा थे। ज्योतिरादित्य ने करीब एक महीने पहले से ही बागी तेवर दिखने शुरू कर दिए थे और मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी इन बागी तेवरों की लगातार उपेक्षा ही की।

सिंधिया का गुस्सा कमलनाथ से ज्यादा दिग्विजय सिंह पर था । 10 जनपथ के सूत्रों का कहना है कि सोनिया ने सिंधिया को राज्यसभा के साथ मध्यप्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने की बात मान ली थी मगर सिंधिया इसके अलावा एक तीसरी शर्त पर भी अड़े थे। वे दिग्विजय सिंह को राज्यसभा में न भेजे जाने की जिद पर अड़े रहे और वहीं से उनके और कांग्रेस के रास्ते जुदा हो गए।

विधायकों के इस्तीफे और उन्हे अलग जगह ले जाने की खबर अब पुरानी हो चुकी है तो इस पर चर्चा करने की जरूरत नहीं। वैसे भी हालिया दिनों में विधायकों को सामूहिक रूप से काही अलग करीब करीब बंधक बना कर ले जाना नया राजनीतिक रिवाज हो गया है।

सवाल अब यह है कि आगे क्या होगा? कमलनाथ खुद को निश्चिंत दिखाते हुए -सरकार को कोई खतरा नहीं- का बयान दे रहे हैं और दिग्विजय सिंह अपने पोते का जन्मदिन मना रहे हैं।

कर्नाटक पहुंच चुके 19 कांग्रेसी विधायकों में से 10 अब कांग्रेस नेता डी के शिवकुमार के फार्म हाउस पर हैं । भाजपा के 104 विधायक फिलहाल गुरग्राम के रिसार्ट में पहुंच चुके हैं। देश भर के टीवी चैनल इस बात पर बहस कर रहे हैं कि कमल नाथ कि सरकार बचेगी या नहीं ? बचेगी तो किस गणित से ?

सीधी गणित तो यही कहती है कि कमलनाथ सरकार फिलहाल अल्पमत में है । लेकिन राजनीति में हर बात सीधी होती कहाँ है ?

छतीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार आवेश तिवारी की माने तो कमलनाथ की सरकार को कोई खतरा नहीं होने वाला। आवेश तिवारी कहते हैं – " सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद से परिस्थितियाँ तेजी से बदलेंगी । सिंधिया ने खुद के समर्थक विधायको को आत्मा की आवाज सुनने को कहा है। उनसे कह दिया है कि आप बीजेपी में आये तो बेहतर है लेकिन कांग्रेस में बने रहे तो मेरी नाराजगी नही है।"

आवेश का मानना है कि "अब बीजेपी में भी बड़े इस्तीफे होंगे और कांग्रेस की सरकार नही गिरेगी। हाँ , इतना जरूर होगा कि दिग्विजय सिंह की भूमिका में बदलाव आएगा और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भी बदले जाएंगे। सिंधिया अब लंबे समय के लिए अप्रासंगिक हो जाएंगे।चाहे वो कहीं रहें।"

आवेश तिवारी की बात आम बहस से अलग भले ही है मगर इसके भी ठोस आधार है । फिलहाल सिंधिया के समर्थक कांग्रेस छोड़ रहे हैं और मध्यप्रदेश के राज्यपाल लाल जी टंडन भी 12 मार्च तक भोपाल से बाहर लखनऊ में छुट्टियाँ मना रहे हैं । इसलिए कमलनाथ के पास अभी पर्याप्त समय है।

भाजपा के विधायकों को भी दूसरे राज्यों में ले जाने की घटना भी यह संकेत दे रही है कि अपने विधायकों के पाल बदल लेने के मामले में भाजपा भी निश्चिंत नहीं है । कर्नाटक पहुंचे 10 बागी विधायकों की घर वापसी भी अलग संकेत दे रही है। सिंधिया समर्थकों के इस्तीफे के बाद विधान सभा में बहुमत का आंकड़ा फिलहाल 105 का हो गया है। भाजपा के पास 107 विधायक हैं और 10 बागियों की वापसी के बाद कमल नाथ के पास भी अब 104 की संख्या हो चुकी है। मामला अब नजदीकी हो चुका है।

कर्नाटक मे मामले में कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर के सत्ताधारी गठबंधन में ही मनमुटाव था इसलिए डैमेज कंट्रोल नहीं हो सका , लेकिन मध्यप्रदेश के हालात अलग है। इसलिए ऊंट किस करवट बैठेगा इसका अंदाजा लगाने से बेहतर है ऊंट के बैठ जाने का इंतजार करना।

वैसे भी सियासत और क्रिकेट दोनों ही अनिश्चितता के खेल हैं जिसमे फैसला अंतिम क्षण में ही होता रहा है।

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