"हाथी" से "शेर" बनती देश की अर्थव्यवस्था...

Update: 2023-03-02 05:12 GMT

मध्यप्रदेश के वित्तमंत्री जगदीश देवड़ा को सलाम!बुधवार को विधानसभा में इस सरकार का आखिरी बजट पेश करते हुए उन्होंने एक ऐसे कड़वे सच को विधानसभा की कार्यवाही में दर्ज कराया,जिसे बोलने के लिए सच में 56 इंच का सीना चाहिए!ऐसा सच जिसे देख तो सब रहे हैं पर बोल कोई नही पा रहा!

वित्तमंत्री ने 2023 -24 के लिए जो बजट प्रस्तुत किया उसे पहली नजर में "मनमोहना" की संज्ञा दी जा सकती है।लेकिन अपने भाषण में आर्थिक परिदृश्य का जिक्र करते हुए उन्होंने जो कहा वह उससे भी ज्यादा उल्लेखनीय है।उन्होंने कहा - दशकों से भारत की तुलना गजराज से की जाती रही है।जिसमें शक्ति तो बहुत है पर चाल बहुत धीमी है।मुझे यह कहते हुए गौरव हो रहा है कि भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में अब भारत ने शेर की तरह दहाड़ते हुए वैश्विक परिदृश्य पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है।जहां दुनियां की मुख्य अर्थव्यवस्थाएं मंदी से जूझ रही हैं वहीं हमारा देश दुनियां की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी बन चुका है।

सामान्य तौर पर इस भाषण का यही अर्थ है कि पहले हमारी अर्थव्यवस्था हाथी की तरह थी। अब शेर की तरह हो गई है।हालांकि अर्थव्यवस्था की तुलना जंगली जानवरों से करने का आमतौर पर रिवाज नही है।लेकिन फिर भी यदि भारतीय समाज के संदर्भ में यदि देखें तो यह समझ आता है कि वित्तमंत्री एक बहुत ही कड़वा सच बोल गए हैं।

पहले हाथी की बात!सब जानते हैं कि भारत में हाथी सबसे ज्यादा सम्मानित और उपयोगी पशु है।बीते जमाने में हाथी पालना सम्मान और गौरव की बात होती थी।उससे बहुत से काम लिए जाते रहे हैं।यह अलग बात है कि आज के युग में हाथी की जगह मशीनों ने ले ली है।लेकिन आज भी दुर्गम इलाकों में हाथियों की सेवाएं आदमी ले रहा है।

हाथी को लेकर देश में कई कहावतें प्रचलित हैं!मसलन हाथी कितना भी कमजोर क्यों न हो जाए, भैंसे से तो भारी ही रहेगा।कहा यह भी जाता है कि जिंदा हाथी लाख का तो मरा हाथी सवा लाख का। आजकल तो हाथी के संदर्भ में अक्सर लोग कह देते हैं - हाथी पालना सबके बूते के बात नही है।

वैसे हाथी घास फूस और फल आदि खाकर मस्त रहता है!ज्यादातर खुश रहता है!आमतौर पर एक हाथी की जिंदगी आदमी के बराबर ही होती है। वैसे हाथी 80-90 साल तक जी लेता है।

शेर की बात करें तो उसके नाम से ही आदमी डर जाता है।जंगल में खुले में रहने वाला शेर लगभग 10 से 12 साल तक जीता है।अगर सर्कस या चिड़ियाघर में है तो उसकी उम्र 20 साल तक पहुंच जाती है।

शेर और आदमी का रिश्ता हमेशा तनावपूर्ण ही रहा है।जंगल में रह कर सिर्फ मांस खाने वाले शेर को लेकर भी कई कहावतें कही जाती हैं।मसलन शेर की सवारी सबके बस की बात नही है।शेर का बुढ़ापे में जो हश्र होता उसकी मिसाल हर जगह दी जाती है।

हां भारत में सिर्फ दुर्गा देवी ही ऐसी हैं जिन्हें शेर पर सवार बताया जाता है!वरना तो शेर का नाम सुनकर ही लोग सहम जाते हैं। एक बात जरूर है कि लोग अक्सर शेर की तुलना अपने बच्चों से करते हुए कहते हैं - शेर का बच्चा है भाई।

स्वभाव की बात छोड़िए !हाथी और शेर की उम्र ही नहीं वजन में भी बहुत फर्क होता है।हाथी औसतन 75 से 90 क्विंटल तक का होता है।जबकि शेर का वजन दो से ढाई क्विंटल ही होता है।

हाथी पर आज भी बच्चे से बूढ़े तक शौक से सवारी करते हैं।जबकि शेर के नाम से ही डरते हैं।

ऐसे में वित्तमंत्री जगदीश देवड़ा ने हाथी और शेर की तुलना करके इशारे इशारे में देश की असली आर्थिक तस्वीर बता दी है।हाथी धीरे चलता है लेकिन बहुत दूर तक जाता है।जबकि शेर कहां से कहां चला यह आजतक कोई नही बता पाया!

पहले भारत हाथी की तरह चल रहा था।खरामा खरामा आगे बढ़ रहा था! हर दृष्टि से मजबूत था वह!शायद हाथियों की वजह से ही अंग्रेजों ने स्लो एंड स्टर्डी विंस द रेस कहावत कही होगी।

जबसे उसने शेर की तरह दहाड़ना शुरू किया है तबसे जो कुछ हुआ है वह पूरा देश देख रहा है।सरकारी संपत्ति बिक रही है।80 करोड़ लोग दो जून के खाने के लिए सरकार पर निर्भर हैं!भगवान के लिए अलीशान महल बन रहे हैं लेकिन लाखों स्कूल बिना इमारत चल रहे हैं।सबसे मजेदार बात तो यह है कि शेर की दहाड़ के बीच ड्रैगन हमारे घर में घुस रहा है।उधर कुछ लोग बैंकों का अरबों रुपया लेकर घर से भाग रहे हैं।बेरोजगारी बढ़ रही है।नौकरियां जा रही हैं।

आज हालत यह है कि अर्थव्यवस्था हाथी से शेर की तरह होती जा रही है! एक बड़ा वर्ग इसके दायरे से ही बाहर हुआ जा रहा है। आम आदमी का जीवन दूभर हो गया है।दहाड़ के नीचे उसकी कराह की ओर किसी का ध्यान नहीं है। दिल्ली से भोपाल तक दावे तो अरबों के हो रहे हैं पर असलियत में गिनती हजारों तक भी नहीं पहुंच रही है।शेर बस दहाड़े जा रहा है!

घास फूस खाने वाले हाथी और अक्सर गाय मार के खाने के शौकीन शेर में अंतर साफ दिख रहा है।शेर का संबंध हमेशा भय से रहा है।उसे हमेशा पहला खतरा अपने कुनबे से रहता है।

जगदीश देवड़ा ने अनजाने में ही बड़ा सच बोल दिया है।उनकी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी। वैसे यह शिवराज की इस सरकार और वित्तमंत्री की हैसियत से देवड़ा का आखिरी बजट था।अगले बजट में कौन भाषण पढ़ेगा यह तो राम जाने!इस बजट की एक खास बात और भी बताई गई।जितना सरकार का बजट है लगभग उतना ही उस पर कर्ज भी है।

पर इतना तय है कि अपना एमपी है गज्जब! है कि नहीं!है किसी बीजेपी शासित राज्य के वित्त मंत्री में इतना दम कि हाथी और शेर को बराबरी पर खड़ा कर सके।

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