खौफ़, मातम और चीत्कारों की चहुंओर जानलेवा कोविड़ की गूंज, जनता को अपने हाल पर मरने को छोड़ रही सरकार, बंद करो आँकडों की बाज़ीगरी
प्रदेश के मामा बाहर आईये, देखिए कि ध्रुवीकरण की राजनीति से आपके भाई और बहन,भांजे और भांजीओ की जिंदगी बद से बद्दतर कैसे हो गई है... आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन?
[राजवर्धन शांडिल्य] | सरकार कोविड मरीजों के आँकड़ों की बाजीगरी कर रही है। यह बात मैं दावे से इसलिए कह सकता हूँ क्योंकि मै अपनो को बहुत करीब से इस संक्रमण काल मे मरते और इस दुनिया को अलविदा कहते देखा है पीछले इन 12 महिने मे और वह भी लापरवाही की इलाज और अव्यवस्थाओ के अभाव में, उन परिवार वालो से कोई पूछे तो सही कि उन्होने कैसे अपने पिता को यह कहते हुए कि मुझे घर ले चल बेटी ये लोग ना तो खाना-पानी देते है, न दवाई और ना ही देखने आते है। इससे तो अच्छा होगा कि मै अपनी आखरी सांस तुमलोगो के बीच मे रहते हुए लू। अस्पताल मे उस बिमार व्यक्ति के हाथ बांध कर इलाज करते देख जब उसकी बेटी ने अपने पिता के असमय इस दुनिया से चले जाने की दास्तान को जब मुझे सुनाया तो यकीन मानिये जैसे मै सन सा रह गया था।
अपने पति के बिछडने और उसकी बिरह की वेदना अगर कोई समझ सकता है तो जाकर उस विधवा की आंखो को पढे और समझे कि वो औरत आज भी यकीन नही कर पाती है कि अब इस दुनिया मे उसका पति नह रह। वह कभी उन तस्वीर से बात करती है तो कभी उन गुजरे लम्हा को याद कर सिसक उठती है और अपनी बिरह की बेदना को आंखो के आई उन आंसुओ के पलंग के हिस्से मे मानो समा सी जाती है। वक्त ने अपने माथे पर कलंक न लेते हुए असमय उस इंसान को काल के गाल मे धकेल दिया जहां से आजतक कोई वापस न आ सका है। उनके निधन के बाद जो रिपोर्ट आती है उसमें उन्हें नेगेटिव बताया जाता है। वे चाहते तो सामान्य रुप से अपने परिजन का अंतिम संस्कार कर सकते थे लेकिन इसमें कई लोगों के संक्रमित होने का खतरा हो सकता था यह सोच लिहाजा उन्होने कोविड गाइडलाइन से ही अंतिम संस्कार करने का फैसला किया।
इस बारे में एक जिम्मेदार से बात करने पर पता चला कि मृत्युदर घटाने और मरीजों की तादात घटाने के लिए ऐसा ही किया जा रहा है। सरकार के आँकडों में यह केस दर्ज नहीं है। यह तो महज एक मौत और एक मरीज का आँकडा है। ऐसे न जाने कितने लोग हैं जो घर-घर बीमार पड़े हैं या उनकी मौत के बाद उन्हें निगेटिव करार दिया जा रहा है। इससे संक्रमण का खतरा तेजी से बढ़ रहा हैं। सरकार का न अस्पतालों पर कोई अंकुश है और न ही इलाज पर, न जरूरी दवाओं की कालाबाजारी पर न उनकी बेतहाशा बढ़ती दरों पर। रैमडेक या रेमडिसिवर इंजेक्शन मनमाने दाम पर बिक रहा है। उसकी कालाबाजारी हो रही है। परेशान परिजन अपनों की जान बचाने के लिए दया की भीख माँग रहे हैं या अनाप-शनाप पैसा भर रहे हैं। अस्पतालों में बेड खाली नहीं है। डॉक्टर्स के पास कोई एक समान लाइन ऑफ ट्रीटमेंट नहीं है। मरीज की बगैर तासीर और उम्र देखे उसे टोसी जैसे 40-40 हजार रुपए की कीमत वाले हैवी इंजेक्शन लगाए जा रहे हैं। कई मरीजों की हालत तो इस इंजेक्शन के बाद इतनी ज्यादा बिगड़ रही है कि वे ठीक होने के बजाय सीधे मौर के मुंह मे ही जा रहे हैं। एंबुलेंस उपलब्ध नहीं है।
कोविड के नाम पर एंबुलेंस वाले सिरे से नकार रहे हैं। यह घोर अमानवीयता है। शिवराज जी आप वीसी में कलेक्टर्स की इसलिए तारीफ़ कर रहे हैं कि मास्क लगाने का अभियान अच्छा चलाया। राजस्व के रुप में 68 लाख रुपए वसूल लिए। अच्छी बात है, मास्क लगाने की मुहिम जागरुकता का अच्छा तरीका है। आप भी इन दिनों मास्क लगवाने के लिए ज़मीन पर उतर रहे हैं यह भी अच्छी बात है। लेकिन अस्पतालों में जो भयावहता, चीख-पुकार, बेबस, टूटते परिजनों और मरीजों का हाल भी तो जान लीजिए। कैसे इलाज के नाम पर लाखों रुपए की लूट मची हुई है।
भोपाल मे आपके करीबी व शुभचिंतक के चिरायु अस्पताल का एक ऑडियो क्लीप सोशल मीडया पर बहुत तेजी से बायलर हो रहा है जिसमे यह सुनने को मिल रहा है कि कैसे उस औरत ने अपना घर बेच कर अपने पति के इलाज के लिए रूपये 12,00000/ (बारह लाख) खर्च कर चुकी है जिसके बाद डाक्टरो ने उसे नही बचा सके बावजूद उस औरत से अस्पताल प्रबंधन 700000/ (सात लाख) रूपये की और मांग करते नजर आ रहे है। कुछ मिलाकर मै यह कहना चाहता हूँ कि कोविड-19 यानी कोरोनकाल महामारी में चिकित्सा के नाम पर अस्पताल और दवाखाने वाले मौत का सौदा कर रहे हैं। क्या सरकार इतनी कंगाल हो गई है कि जनता को कोई राहत नहीं दे पा रही। जनता को अपने हाल पर मरने को छोड़ दिया है। प्रधानमंत्री के सपनों की आयुष्यमान योजना भी निजी अस्पतालों में कमाई का गौरखधंधा बन चुकी है। कार्डधारियों को पकड़-पकड़ कर तलाशा जा रहा है। पूरी रकम चट की जा रही है। कोरोना के इस त्रासद वक्त में अंधेर नगरी नगरी चौपट राजा जैसी कहावत साबित हो रही है।
देश नगर राज्य ने कोरोनकाल को लगभग 9 से 10 माह का दंश झेलने के बाद पीछले चार माह से कोरोना इस देश से अचानक गायब हो गया था तो ठीक वही 25 मार्च 2021 से आँकडों का यही तमाशा कुछ चंद टिकाऊ और बिकाऊ जयचंद ठेकेदारो के हवाले से आंकडों का फर्जी सिलसिला चल पडा है। यह कोरोना बंगाल, असम और मध्य प्रदेश के दमोह मे क्यो नही है? वह वक्त दूर नहीं जब लाशों का ढ़ेर लग जाएगा और फिर टिकाऊ-बिकाऊ जो आँकडे परोसे जाएँगे, यकीनन उनकी बुनियाद झूठ पर ही टिकी होगी। शिवराज जी आप अपनी बॉडी लेंग्वेज और मुख-मुद्रा से संवेदनशील मुख्यमंत्री लगते हैं। कई मोर्चों पर आपकी संवेदनशीलता दिखाई भी देते हैं लेकिन इस बार कोविड महामारी की ताज़ा लहर में आपकी वो धार दिखाई नहीं दे रही। बीते कुछ महीनों से आप एक्शन मोड वाली भूमिका में दिखाई जरुर दे रहे हैं लेकिन उसका असर आपकी नौकरशाही में दिखाई नहीं दे रहा है। भले ही अफसर अपने नंबर बढा रहे हों लेकिन हकीकत कहीं कुछ और ही है। एक गोपनीय टीम लगाइये और पता करिये की कैसे अस्पताल और दवाखाने वाले कालाबाजारी कर रहे है, अस्पतालों में क्या मारा-मारी चल रही है, डॉक्टर्स क्यों महंगे-मंहगे इंजेक्शन लगा रहे हैं, ऑक्सीजन है या नहीं, अपने कलेजे के टूकडों का इलाज कराने के नाम पर लोग कंगाल हो रहे हैं। अपने प्रदेश का हाल कलेक्टर्स से नहीं आम जनता से जानिए। हकीकत पता चल जाएगी।
प्रदेश के मामा बाहर आईये, देखिए कि ध्रुवीकरण की राजनीति से आपके भाई और बहन,भांजे और भांजीओ की जिंदगी बद से बद्दतर कैसे हो गई है... आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन?