शिवराज के " मष्तिष्क मंथन" से क्या "अमृत" निकलेगा ?
इस दौरान उनकी तमाम कोशिशों के बाद भी प्रदेश की जमकर बदनामी भी हुई।बड़ी चुनौतियों से उनका सामना अभी भी चल रहा है।
अरुण दीक्षित
भोपाल। कोरोना काल के दौरान भोपाल में बड़े भाजपा नेताओं की "चाय बैठकों" से उड़ी धूल के बैठ जाने के बाद मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अचानक फॉर्म में आ गए हैं। पिछले सप्ताह नए भाजपाई ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ लम्बी बैठक करके उन्होंने पचमढ़ी में अपनी धर्मपत्नी का जन्मदिन मनाया।दो दिन की इस छुट्टी के बाद वे नई "ऊर्जा" के साथ काम में जुट गए हैं।
इसकी शुरुआत उन्होंने अपने मंत्रियों से की है।यह सब जानते हैं कि शिवराज को जब चौथी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली थी हमेशा की तरह मंत्रियों की सूची भी मिली थी।हालांकि इस सूची में उनकी पसंद के भी नाम थे लेकिन पहली नजर में यह मंत्रिमंडल भगवान शिव की बारात की याद दिलाता है।करीब सवा साल में जो हालात रहे हैं वह सबकी नजर में हैं।शिवराज के गद्दी पाते ही कोरोना सामने आ खड़ा हुआ।वे खुद कोरोना का शिकार हुए।अस्पताल में रहे।आज तक वे कोरोना से जूझ रहे हैं।
इस दौरान उनकी तमाम कोशिशों के बाद भी प्रदेश की जमकर बदनामी भी हुई।बड़ी चुनौतियों से उनका सामना अभी भी चल रहा है।
इन सबके बीच सोमबार को शिवराज ने अपने मंत्रियों का दिमाग झकझोरा!उसे हिलाया और मथा।इसमें अमृत कितना निकलेगा यह तो वक्त बताएगा लेकिन इतना साफ है शिवराज अब फ्रंट फुट पर खेलना चाहते हैं।
मंत्रियों का दिमाग मथने के लिए शिवराज सैकड़ो करोड़ की लागत से बने नए मंत्रालय भवन में नही बैठे।वे भोपाल से करीब 45 किलोमीटर दूर सीहोर जिले में बने एक निजी रिसोर्ट में अपने मंत्रियों को ले गए।रोचक बात यह है कि इस मष्तिष्क मंथन के मौके पर मंत्रियों के हर काम में टांग अड़ाने वाले बाबुओं को दूर रखा गया।शिवराज ने अपने मंत्रियों से आमने सामने बात की।अपनी कही।लेकिन उनकी कितनी सुनी यह नही मालूम।
यह जरूर पता चला है कि अपने मंत्रियों के बीच शिवराज कई भूमिकाओं में नजर आए।मुखिया के नाते उन्होंने मंत्रियों को यह तो बताया ही कि वे उनसे क्या चाहते हैं।उनकी सरकार क्या क्या करना चाहती है।क्या नई योजनाएं है।
साथ ही उन्होंने मंत्रियों को उपदेशों के जरिये गूढ़ ज्ञान भी दिया!उन्होंने मंत्रियों को समझाया कि वे अपने अधिकारों का अहंकार न करें।मष्तिष्क मंथन से छन कर बाहर आई सूचनाओं के मुताविक शिवराज ने अपने मंत्रियों को प्रेरक कहानियां भी सुनाई।सार्वजनिक मंचों पर अक्सर भजन गाने वाले शिवराज ने मंत्रियों को महाभारत के यक्ष और युधिष्ठिर संवाद का जिक्र करते हुए उन्हें यह समझाया कि वे अपने अधिकार का अहंकार न करें! युधिष्ठिर के भाइयों की तरह व्यवहार न करें।बल्कि युधिष्ठिर की तरह धर्म समझ कर अपने कर्तव्यों का पालन करें।अब यह तो मंत्री जाने कि उन्हें शिवराज में युधिष्ठिर दिखे कि नहीं!
बताते हैं कि शिवराज ने मंत्रियों को एक कहानी व्यक्तिगत दृष्टिकोण को लेकर भी सुनाई।उन्होंने बताया कि तीन व्यक्ति सड़क के किनारे पत्थर तोड़ रहे थे।वहां से एक सन्त गुजरे ! उन्होंने तीनो से सवाल किया कि पत्थर क्यों तोड़ रहे हो। तीनों ने अलग अलग उत्तर दिए।एक बोला परिवार पालने के लिए मजदूरी कर रहा हूँ।दूसरा बोला देख नही रहे हो पत्थर तोड़ रहा हूँ।तीसरे ने कहा कि यह पत्थर मंदिर में लगने वाले हैं।मेरा सौभाग्य है कि मुझे ये पत्थर तोड़ने का मौका मिला है।
उन्होंने मंत्रियों से कहा कि हमें अलग अलग सोच के साथ नही बल्कि मिलकर काम में जुटना है। जिसको जो जिम्मेदारी मिली है उसे वह तय समय में पूरा करे।कोरोना की तीसरी लहर की चुनौती सामने है।सब को मिल कर काम करना है।
पता यह भी चला है कि शिवराज ने अपने मंत्रियों को यह भी बताया कि आने वाले दिनों में उनकी सरकार क्या क्या करने वाली है।वे हर महीने एक लाख रोजगार पैदा करेंगे।नए पद भरेंगे।रुके कामों को पूरा करेंगे! आदि.. आदि..!
माना जा रहा है कि इस मष्तिष्क मंथन के जरिये शिवराज अपने मंत्रियों को कई संदेश एक साथ देना चाहते थे।पहला कि आप कितनी भी उछल कूद कर लो आपका नेता तो मैं ही हूँ।फिलहाल दिल्ली का विश्वास मुझमें है।इसलिए आपके मन्सूबे पूरे नही होने वाले।
दूसरा यह कि किसी के भी संपर्क कितने भी ऊंचे गहरे भले ही हों पर मध्यप्रदेश में वही फैसला होगा जो मैं चाहूंगा।यहां यह बताना भी उचित होगा कि पिछली कैबिनट बैठक में दो वरिष्ठ मंत्रियों ने एक विवादित ठेकेदार को फायदा पहुंचाने की कोशिश का विरोध किया था।लेकिन शिवराज ने मौन रहकर उनका विरोध दरकिनार कर दिया था।फैसला बहुमत के आधार पर हुआ था।
सिंधिया के साथ भाजपा में आये मंत्रियों को भी शिवराज ने इशारे इशारे में समझा दिया है।सरकार भले ही उनकी बजह से बनी हो पर अब वे भाजपा में हैं और उन्हें उसी दायरे में रहना होगा।
फिलहाल मंथन हो गया है।इसमें से निकले अमृत का लाभ किसे मिलेगा यह शिवराज ही जानें।वे अमृत कलश अपने पास रखेंगे या उस जनता को उसमें हिस्सेदार बनाएंगे जिसके नाम पर यह मंथन हुआ है।जहाँ तक मंत्रियों की बात है वे तो अपना हिस्सा ले ही लेंगे।उन्हें कौन रोक पायेगा।कोरोना काल में पूरे प्रदेश की जनता ने मंत्रियों को अपने "अमृत कुंभ" लबालब भरते देखा ही है।
यह शिवराज भी अच्छी तरह जानते हैं।लेकिन फिर भी उपदेश देने में क्या हर्ज है!