शिवराज को अपने ही सरकारी स्वास्थ्य तंत्र पर भरोसा क्यों नही?

निजी अस्पताल में भर्ती होना चिकित्सा माफियाओं को प्रश्रय देने की पहल तो नही!

Update: 2020-07-25 16:27 GMT

संजय रोकड़े 

मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान एक मात्र ऐसे सीएम रहे है जिनके नाम लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का खिताब है। वे प्रदेश में अब तक सबसे अधिक समय के सीएम है। ये किसी भी सीएम के लिए बड़े गर्व और फर्क की बात हो सकती है। इसे उनका सौभाग्य ही कहा जा सकता है।

पर दुखद और आश्र्चय की बात तो ये है कि जब उसी राज्य का मुख्यमंत्री किसी बिमारी से ग्रसित हो जाए तो, उसके ही राज में एक भी ऐसा सरकारी अस्पताल नही जिसमें वह खुद का उपचार करवा सके। किसी मुख्यमंत्री के लिए इससे बड़ी और शर्मनाक औश्र हास्यास्पद बात क्या हो सकती है कि इतने लंबे समय तक राज करने के बाद भी वो अदद एक ऐसा सरकारी अस्पताल नही बना पाया जिस पे वह भरोसा करके खुद का ईलाज करवा सके। हां ये सच है। मध्यप्रदेश में गांव देहात की बात तो छोड़ो प्रदेश की राजधानी भोपाल में भी एक मात्र ऐसा सरकारी अस्पताल नही है जिसमें सीएम आंख मुंद कर अपना ही ईलाज बेहिचक करवा पाए।

मध्य प्रदेश में बढ़ते कोरोना केस के बीच एक बड़ी खबर सामने आई है। अब प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। इस बात की जानकारी खुद शिवराज ने ट्वीट करके दी है। सीएम ने ट्वीट में लिखा है कि मेरे प्रिय प्रदेशवासियों, मुझे कोविड-19 के लक्षण आ रहे थे। टेस्ट के बाद मेरी रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। मेरी सभी साथियों से अपील है कि जो भी मेरे संपर्क में आए हैं, वह अपना कोरोना टेस्ट करवा लें। मेरे निकट संपर्क वाले लोग क्वारंटाइन में चले जाएं।

इसके साथ ही शिवराज ने आगे लिखा कि मैं कोरोना गाइड लाइन का पूरा पालन कर रहा हूं। डॉक्टर की सलाह से खुद को क्वारंटाइन करूंगा और इलाज कराऊंगा। कोरोना के मरीज को जिद नहीं करना चाहिए कि हम होम क्वारंटीन ही रहेंगे या अस्पताल नहीं जाएंगे। हमें डॉक्टर्स के निर्देश का पालन करना चाहिये।

मेरी प्रदेश की जनता से अपील है कि सावधानी रखें, जरा सी असावधानी कोरोना को निमंत्रण देती है। शिवराज ने एक और ट्वीट में कहा कि मुझे डॉक्टर्स ने अस्पताल में भर्ती होने की सलाह दी है। मैं कोविड़ डेडिकेटेड चिरायु अस्पताल में भर्ती होने जा रहा हूं।

शिवराज की बेहयायी यही है कि वे प्रदेश की जनता को बड़े ही फर्क से कह रहे है कि मैं डेडिकेटेड चिरायु अस्पताल में भर्ती होने जा रहा हूं। अब आप कहेगें कि कोविड़ डेडिकेटेड अस्पताल में भर्ती होना कौन सी बेहयाया है। हां, बेहयायी ये है कि वे अपने इतने लंबे कार्यकाल में भी एक भी ऐसा सरकारी अस्पताल नही बनवा पाए जिसमें वे निडऱ होकर अपना ईलाज करवा सके।

जिस तरह से उनने एक नीजि अस्पताल में खुद को उपचार के लिए महफूज पाया वह उनके लिए डूब मरने वाली जैसी ही बात है। या तो फिर उनने इस नाते साफतौर पर स्वीकार कर लिया है कि मेरे राज में प्रदेश की स्वास्थ्य तंत्र इतना खराब है कि प्रदेश के गांव देहात तो छोड़ो राजधानी में भी ऐसा कोई सरकारी अस्पताल नही है जिसमें मैं स्वंय अपना ईलाज नही सकूं।

फिर सवाल उठता है कि वे किस मुंह से प्रदेशवासियों को कोरोना के उपचार के लिए निडऱ होकर सराकरी अस्पतालों में ईलाज करवाने की सलाह दे रहे है। जब उनको अपने ही सरकारी स्वास्थ्य तंत्र पर विश्वास नही रहा तो फिर जनता को मौत के मुंह में धकेलने का क्या हक है।

दरअसल शिवराज सिंह चौहान को चाहिए था कि प्रदेश में बढते कोरोना के मरीजों को मद्देनजर रखते हुए खुद के लिए या अपने सरकारी वीआईपी अमले के लिए प्रदेश की राजधानी में एक ऐसा कोई कोरोना डेडिक़ेटेड आकस्मिक अत्याधुनिक सरकारी अस्पताल तैयार करवाते जिसमें तमाम सुविधाएं होती और निडऱ होकर उपचार करवाया जाता। इससे संदेश यह भी जाता कि प्रदेश के सीएम प्रायवेट स्वास्थ्य माफियाओं को तरजीह नही देते है।

वे अपने ही सरकारी तंत्र पर भरोसा करते है। वैसे तो भोपाल में एम्स जैसा एहमियत रखने वाला अस्पताल भी था फिर भी चिरायू क्यों। शिवराज का यह फैसला क्या इस बात की ओर इंगित नही करता है कि भोपाल का एम्स भी अपने सीएम के ईलाज के लायक नही है। यहां के एम्स में भी किसी वीआईपी का विश्वास के साथ उपचार नही किया जा सकता है।

सवाल तो ये भी तारी है कि क्या वाकई प्रदेश में सराकरी स्वास्थ्य तंत्र इतना खराब या लचर हो चुका है कि एक सीएम अपने सरकारी अस्पतालों में ईलाज करवाने तक को तरस जाएं। या फिर वे जान बुझकर नीजि अस्पतालों के मालिकों को जनता को लुटने के लिए प्रेरित कर रहे है। शिवराज का सीएम के रूप में एक नीजि अस्पताल में भर्ती होना कहीं इस बात का परिचायक तो नही कि वे स्वास्थ्य क्षेत्र धंधेबाजों व माफियाओं को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से प्रश्रय दे रहे हो। गर ऐसा नही है तो फिर शिवराज को एक मुख्यमंत्री के नाते अपने प्रदेशवासियों को ये बताना होगा कि आखिर वे सरकारी अस्पताल में उपचार के लिए भर्ती क्यों नही हुए।

लेखक के अपने निजी विचार है 

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