मध्य प्रदेश कांग्रेस में अब तेजी से राजनीतिक समीकरण बदलने वाले हैं। इसकी शुरुआत हो चुकी है। कमलनाथ सरकार के एक मंत्री उमंग सिंघार ने जिस तरह से प्रदेश की राजनीति के दिग्गज दिग्विजय सिंह के ऊपर सीधा हमला किया है, उससे साफ लगने लगा है कि अब प्रदेश में दिग्विजय सिंह का दबदबा कम करने की शुरुआत हो चुकी है।
दरअसल जबसे कमलनाथ सरकार बनी है, सरकार पर दिग्विजय सिंह के प्रभाव में काम करने के आरोप लगते रहे हैं। मामला चाहे प्रदेश के मुख्य सचिव का हो या पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति का या उससे नीचे कई सर्वोच्च पदों पर नियुक्ति का, यह माना जाता रहा है कि इन सभी पदों पर दिग्विजय सिंह के कभी न कभी खास रहे अधिकारी ही पदस्थ हुए हैं ।
जाहिर सी बात है कि जब पदस्थापना में दिग्विजय की महती भूमिका होगी तो अधिकारी कमलनाथ और दिग्विजय में से दिग्विजय की बात को ही महत्व देंगे। कमलनाथ के सलाहकारों ने उन्हे सलाह दी है कि ऐसी स्थिति में सरकार के साथ जो भी अच्छा हो रहा है उसका क्रेडिट कमलनाथ को मिलने के बजाय सारी बुराई कमलनाथ के पल्ले की आ रही है। 40 साल से ज्यादा की बेदाग राजनीति का सफर पूरा कर चुके कमलनाथ अपने मुख्यमंत्रीत्व काल में कोई ऐसा दाग लेना नहीं चाहते जो उनके लिए मुसीबत का सबब बने। ऐसी स्थिति में उनके सामने एक बड़ी चुनौती यह भी है कि वह सरकार को स्थिर कैसे रखें।
सूत्रों की माने तो ज्योतिरादित्य सिंधिया का पूरे प्रदेश के अंदर जो ग्लैमर और प्रभाव है अब कमलनाथ उसका उपयोग करना चाहते हैं। सिंधिया समर्थक भी मानते हैं कि यदि सिंधिया कोई बड़ी जिम्मेदारी संभाल के सरकार का साथ दें तो सरकार को 5 साल चलने से कोई नहीं रोक सकता है। ऐसे हालात में लगता है कि अब जल्द सिंधिया और कमलनाथ की जुगलबंदी एक बार फिर प्रदेश में दिखाई देगी। दिग्विजय सिंह के ऊपर लगाए गए गंभीर आरोपों के बावजूद दिग्विजय समर्थक किसी मंत्री या विधायक का उनके पक्ष में खुलकर न बोलना इस बात का भी संकेत है कि कि विधायकों के लिए सियासी निष्ठा से ज्यादा वर्तमान में विधायक की कुर्सी बचाना ज्यादा महत्वपूर्ण है और कोई भी अभी जल्द चुनाव के मैदान में जाने को तैयार नहीं।