शंकराचार्य स्वामी स्वरूपान्द जी महाराज का राममंदिर में योगदान
जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज द्वारा शुभ मुहुर्त में मंदिर कार्य प्रारंभ करने का सुझाव देने पर उन्हें राम विरोधी कहने वाले लोेगों को जानना होगा कि उन्होने 1989 में अयोध्या में रामलला के दर्शन करके वास्तु और मंदिर स्थापत्य के साक्ष्य एकत्रित किये थे।
दिग्विजय सिंह
अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के भूमि पूजन के साथ ही मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया। हर धर्म को मानने वाले लोगों को इसकी प्रसन्नता है। अफसोस सिर्फ इस बात का है कि भूमि पूजन 5 अगस्त को अशुभ मुहूर्त में किया गया। इस दिन दक्षिणायन भाद्रपद मास की द्वितीया तिथि थी। शास्त्रों में भाद्रपद मास में गृृह एवं मंदिर निर्माण कार्य प्रारंभ करने को निषेध माना गया है। सनातन परंपराओं और धर्म का मूल आधार वेद है तथा वेदों के अनुसार किये गये कार्य यज्ञ कहे जाते है जो पूर्णतया कालगणना पर आधारित है। काल गणना और कालखण्ड विशेष के शुभ अशुभ का ज्ञान ज्योतिष शास्त्र से होता है जिसे वेदांग कहा गया है।
दशकों तक कानूनी प्रक्रियाओं में उलझे रहे इस मामले का अन्ततः सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद सुखद अन्त हो गया था। हर भारतवासी चाहता है कि अयोध्या में भगवान श्री राम का भव्य मंदिर बने लेकिन भाजपा ने जन-जन की आस्था के प्रतीक भगवान श्री राम को भी राजनीति में झोंक दिया है। मैं बताना चाहूॅगा कि 1948 में स्वामी करपात्री जी महाराज ने अखिल भारतीय रामराज्य परिषद बनाई थी, जिसका प्रथम अध्यक्ष उन्होने स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज को बनाया। उन्होने 1952 में पहले आम चुनाव के अपने घोषणा पत्र में स्पष्ट किया था कि यदि भारत में परिषद की सरकार बनती है तो अयोध्या में राम मंदिर सहित पुरातन मंदिरों के पुनरूद्धार का कार्य किया जायेगा। उनके द्वारा 1983 से निरंतर संत समाज और सनातन धर्म के लोगों को जागृत किया जाता रहा। स्वामी स्वरूपानंद जी के निरंतर प्रयासों से भारतीय जनमानस में प्रस्फुटित धार्मिक भावनाओं के अनुरूप तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गाॅधी ने कोर्ट के आदेश के बाद मंदिर का शिलान्यास करवाया था। अपने कार्यकाल में श्री राजीव गाॅधी ने भगवान राम के जीवन पर केन्द्रित धार्मिक सीरियल रामायण को दूरदर्शन पर प्रसारण किये जाने की अनुमति दी थी। देश का हर सनातनधर्मी और अन्य धर्म के लोग भी चाहते थे कि अयोध्या में मंदिर निर्माण हो लेकिन मामला न्यायालय में था इसलिये तत्समय कोई निर्णय नही लिया जा सकता था। सभी पक्ष न्यायालयीन आदेश को शिरोधार्य करने की बात करते थे।
जब 1985 के लोकसभा चुनाव में भाजपा केवल दो सीटों तक सिमट कर रह गई तब भाजपा, आर.एस.एस., विश्व हिन्दू परिषद और बजरंगदल ने इस मामले को 1989 से राजनीतिक रंग देना प्रारंभ कर दिया। भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने 1990 में सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा प्रारंभ कर दी। हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को उभारकर राजनीतिक लाभ हासिल करने का खेल यहीं से प्रारंभ हुआ था। चूॅकि भाजपा की उत्पत्ति आर.एस.एस. से ही हुई है इसलिये वह सदैव संघ के निर्देशों का पालन करती रही है। यहाॅ यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि आर.एस.एस. का लक्ष्य सदैव अपनी राजनीतिक इकाई भाजपा के माध्यम से सत्ता हासिल करना रहा है। वह ऐसे किसी भी मुद्दे को सुलझाने का पक्षधर नही रहा जो उसके लिये दीर्घकाल तक वोट बैंक का साधन हो। इस बात की पुष्टि वरिष्ठ पत्रकार और अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिये बने ''अयोध्या विकास ट्रस्ट'' के संयोजक शीतला सिंह की पुस्तक ''अयोध्या-रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का सच'' नामक किताब से होती है।
वर्ष 1987 में इस विवाद को राजीव गाॅधी के समय हल करने के लिये सर्वसम्मति से एक फार्मूला तय किया गया था जिसके तहत विदेशी तकनीक का इस्तेमाल करके बाबरी मस्जिद को कोई नुकसान पहुॅंचाये बिना अपने स्थान से हटाकर अन्यत्र स्थापित किया जाना था तथा मस्जिद के स्थान पर राम चबूतरे का निर्माण होना था। इस फार्मूले पर चर्चा के दौरान विश्व हिन्दू परिषद के तत्कालीन महामंत्री अशोक सिंघल सहमत हो गये थे। जब आर.एस.एस. के सरसंघचालक बाला साहब देवसर को इसकी जानकारी मिली तो उन्होने अशोक सिंघल को दिल्ली स्थित आर.एस.एस. के मुख्यालय में आयोजित बैठक में बुलाया। शीतला सिंह की किताब के पृष्ठ क्रमांक 110 पर उल्लेखित है *-''झंडेवालान में एक बैठक हुई थी जिसमें संघ प्रमुख बाला साहब देवरस भी उपस्थित थे। उन्होने सबसे पहले अशोक सिंघल को तलब करके पूछा कि तुम इतने पुराने स्वयंसेवक हो, तुमने इस योजना का समर्थन कैसे कर दिया? सिंहल ने कहा कि हमारा आंदोलन तो राम मंदिर के लिये ही था। यदि वह स्वीकार होता है तो स्वागत तो करना ही चाहिये। इस पर देवरस जी उन पर बिफर गये और कहा कि तुम्हारी अक्ल घास चरने चली गई है। इस देश में 800 राम मंदिर विद्यमान है, यदि एक और बन जाये तो 801 वाॅं होगा। लेकिन यह आंदोलन जनता के बीच लोकप्रिय हो रहा है। उसका समर्थन बढ़ रहा है, जिसके बल पर हम राजनीतिक रूप से दिल्ली में सरकार बनाने की स्थिति तक पहुॅंचते। तुमने इस प्रस्ताव का स्वागत करके आंदोलन की पीठ में छुरा भोंका है। यह प्रस्ताव स्वीकार नही होगा।''*
राम मंदिर करोड़ों भारतीयों और भारत से बाहर रहने वाले सनातन धर्मियों की आस्था का विषय है। राम मंदिर के निर्माण को लेकर सभी खुश है किन्तु भाजपा द्वारा मंदिर निर्माण को अपना निजी एजेंडा बनाना और आस्था को राजनीति में मिलाकर भगवान राम के नाम को बेचना कदापि स्वीकार्य नही हो सकता। जिस तरह से भाजपा और संघ द्वारा शुभ मुहुर्त को लेकर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज द्वारा प्रश्न करने पर उन्हे राम और राममंदिर विरोधी बताया जा रहा है, वे यह नही जानते कि 1989 में निर्मोही अखाड़े के कुछ प्रतिनिधि पूज्य शंकराचार्य जी से मिले थे और उन्होने कहा था कि अखाड़े से अब इस समस्या का समाधान नही हो पा रहा है। ज्योतिष्पीठाधीश्वर होने के कारण अयोध्या आपके क्षेत्राधिकार में आता है इसलिये आप विवाद को सुलझाइये। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री नरसिहंराव जी की पहल पर सभी शंकराचार्यों से चर्चा कर के एक रामालय ट्रस्ट बनाया गया। जगद्गुरू शंकराचार्य जी महाराज जब रामालय ट्रस्ट के सदस्य बने तब मैं मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री था और मैने उनके प्रयासों को न सिर्फ काफी करीब से देखा बल्कि उन्होंने इस विषय में मुझे सहयोग करने के लिये जो भी आदेश दिया मैने उसका पालन किया।
जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज द्वारा शुभ मुहुर्त में मंदिर कार्य प्रारंभ करने का सुझाव देने पर उन्हें राम विरोधी कहने वाले लोेगों को जानना होगा कि उन्होने 1989 में अयोध्या में रामलला के दर्शन करके वास्तु और मंदिर स्थापत्य के साक्ष्य एकत्रित किये थे। उन्होंने ही रामालय ट्रस्ट के उपाध्यक्ष स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज के माध्यम से न्यायालय में मंदिर के साक्ष्य प्रस्तुत किये थे। उनके इस प्रयास के लिये न्यायालय ने अपने अंतिम आदेश में रामालय ट्रस्ट और अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज को धन्यवाद दिया। जबकि इस विवाद में न्यायालय के फैसले में विश्व हिन्दू परिषद और आर.एस.एस. का नाम एक बार भी नही आया क्योकि वे इस मामले में पक्षकार ही नही थे।
जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज ने राममंदिर के अपने संकल्प को पूरा करने के लिये लंबी लड़ाई लड़ी और जेल की यातनाएं भोगी हैं। उन्होने भगवान राम के नाम पर विश्व हिन्दू परिषद या अन्य संगठनों की तरह कभी चंदा एकत्रित नही किया। जबकि यह सर्वविदित है कि विहिप, आर.एस.एस. और बजरंगदल के लोगों ने 1989 में देशभर में घर-घर में जाकर चंदा लिया जिसका कोई हिसाब नहीं है। एक 98 वर्षीय वयोवृद्ध धर्माचार्य और दो पीठों के पीठाधीश्वर की उपेक्षा करना, उन्हें या किसी भी शंकराचार्य को आमंत्रित नही करना और मंदिर निर्माण को संघ भाजपा का एजेंडा बनाना इस देश के करोड़ों धर्मप्रेमियों और प्रभू श्रीराम में आस्था रखने वाले सनातनधर्मियों का अपमान है। आज हिंदुस्तान में महाराज श्री धर्म के पर्याय है, मैं उनके प्राकट्य दिवस के अवसर पर उनके चरणों मे नमन करता हूँ तथा प्रभु श्रीराम से प्रार्थना करता हूॅ कि वे धर्म का धंधा करने वाले लोगों के पापों को क्षमा करें और मंदिर निर्माण के कार्य को निर्विघ्न संपन्न करें।
( लेखक दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री है और इस समय राज्यसभा सांसद है)