....अगर दिए गए वादों को वो निभाती तो मैं "CM" पद पर दिखाई नहीं देता- उद्धव ठाकरे
मैं आज भी कहता हूं। शिवसेना महाराष्ट्र के भूमिपुत्रों के न्याय और अधिकार के लिए लड़ने के लिए जन्मी है। मराठियों के लिए जन्मी है। उसके बाद देश के हिंदुओं पर संकट आ रहा है, ऐसा शिवसेनाप्रमुख को आभास हुआ तब शिवसेनाप्रमुख ने हिंदुत्व को अंगीकार किया।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के मुखपत्र सामना को इंटरव्यू दिया है और उसमें उन्होंने बीजेपी पर जमकर निशाना साधा है। उद्धव ठाकरे ने कहा है कि किसी को टिप्पणी करनी है तो खुशी से करे। मैं अब परवाह नहीं करता। पार्टी में फूट डालकर लाए गए लोग तुम्हें चलते हैं फिर उस पार्टी के साथ हाथ मिलाया तो क्या फर्क पड़ता है?
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र की राजनीति के भूकंप का झटका दिल्ली तक लगा और देश को नई दिशा मिली। परदे के पीछे और सामने निश्चित तौर पर क्या हुआ? इस पर उद्धव ठाकरे ने बेबाकी से कहा, राजनीतिक शतरंज पर कौन सा प्यादा कैसे हटाया जाता है। उन्होंने कहा कि मैंने क्या मांगा था भाजपा से? जो तय था वही न! मैंने उनसे चांद-तारे मांगे थे क्या?उद्धव ठाकरे ने कहा, भाजपा अगर दिए गए वादों को निभाती तो मैं मुख्यमंत्री पद पर दिखाई नहीं देता। कोई शिवसैनिक वहां पर विराजमान हुआ होता।
आपने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली यह बड़ा झटका था, ऐसा नहीं लगता क्या। इसपर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने कहा, 'मुख्यमंत्री पद को स्वीकारना न ही मेरे लिए झटका था और न ही मेरा सपना था। अत्यंत ईमानदारी से मैं ये कबूल करता हूं कि मैं शिवसेना प्रमुख का एक स्वप्न- फिर उसमें 'सामना' का योगदान होगा, शिवसेना का सफर होगा और मुझ तक सीमित कहें तो मैं मतलब स्वयं उद्धव द्वारा उनके पिता मतलब बालासाहेब को दिया गया वचन! इस वचनपूर्ति के लिए किसी भी स्तर तक जाने की मेरी तैयारी थी। उससे भी आगे जाकर एक बात मैं स्पष्ट करता हूं कि मेरा मुख्यमंत्री पद वचनपूर्ति नहीं बल्कि वचनपूर्ति की दिशा में उठाया गया एक कदम है। उस कदम को उस दिशा की ओर बढ़ाने के लिए मैंने मन से किसी भी स्तर तक जाने का तय किया था। अपने पिता को दिए गए वचन को पूरा करना ही है और मैं वो करूंगा ही।'
मैं आज भी कहता हूं। शिवसेना महाराष्ट्र के भूमिपुत्रों के न्याय और अधिकार के लिए लड़ने के लिए जन्मी है। मराठियों के लिए जन्मी है। उसके बाद देश के हिंदुओं पर संकट आ रहा है, ऐसा शिवसेनाप्रमुख को आभास हुआ तब शिवसेनाप्रमुख ने हिंदुत्व को अंगीकार किया। वर्ष १९८७ के उपचुनाव शायद पहले चुनाव होंगे जो शिवसेना ने हिंदुत्व के मुद्दे पर सिर्फ लड़ा ही नहीं बल्कि जीता भी होगा। बाद में भाजपा साथ आ गई। उसके बाद जो कुछ भी हुआ…फिर रथयात्रा होगी…आदि-आदि करते हुए दो समविचारी पार्टियां एक साथ आर्इं। हिंदुत्व के मुद्दे पर एकत्र हुए, उसमें हमारे हिंदुत्व में वचन देना और वचन का पालन करना, इसका अपार महत्व है। यदि वचन तोड़ा जाता होगा तो मैं हिंदुत्व स्वीकार करने को तैयार नहीं। हम हिंदुत्व पर कायम हैं और रहेंगे! उसमें कोई जोड़-तोड़ नहीं है!