नेताजी सुभाष चंद्र बोस की रहस्यमय हुई मौत का खुलेगा राज, सरकार इस बात से हुई सहमत
नेता जी सुभाष चंद्र बोस की गुमशुदगी का रहस्य सुलझाने के लिए भारत सरकार अब तक तीन आयोगों का गठन कर चुकी है लेकिन....
नई दिल्ली। अन्याय के खिलाफ सीना तानकर खड़े होने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ था. जो जीवन उन्होंने जिया वो आज भी भारतीय इतिहास में दर्ज है, लेकिन उनकी मौत को लेकर आज भी सवाल उठते हैं तो मौत का राज अभी तक राज ही बना है और इस पर से पर्दा उठाने के लिए किसी भी सरकार ने गंभीर काम नहीं किया।
लेकिन नेताजी के पौत्र सोमनाथ बोस का कहना है कि जब से केन्द्र में मोदी सरकार आई है, वह इस पर काम कर रही है गोरखपुर आये सोमनाथ बोस ने कहा कि नेताजी की मौत के राज से पर्दा उठाने की मांग हमने केन्द्र सरकार से की थी पीएम मोदी ने सकारात्मक कदम उठाये हैं. जल्द ही सच्चाई सामने आ जाएगी। सोमनाथ ने कहा कि हमारी 5 मांगों में से नेताजी के जन्मदिन को भव्यता से मनाने सहित 3 मांगों को मान लिया गया है।
1- गुमनामी बाबा के सुभाष चंद्र बोस होने के चर्चाओं पर उन्होंने कहा कि कोई भी ऐसा व्यक्ति कभी नेता जी नहीं हो सकता, जो गुमनामी में रहना चाहता हो।
2 - नेताजी ने मुखर होकर हमेशा अपनी बात रखी थी. निडरता के साथ नेतृत्व क्षमता थी तो किसी गुमनामी बाबा को नेताजी मान लेना गलत है।
3 - सोमनाथ बोस ने कहा कि गुमनामी बाबा अगर नेता जी होते तो वो सामने से बोलते कि मै हूं सुभाष चंद्र बोस. साथ ही कहा कि इसकी जांच के लिए चार बार हमारे परिवार के डीएनए का मिलान भी किया गया. लेकिन हर बार डीएनए टेस्ट फेल हुआ।
सोमनाथ ने कहा कि नेता जी ने आजाद हिन्द फौज को इसलिए बनाया था कि गरीब, असहायों और दुर्बल की मदद की जा सके. हमारा देश सनातन है. दूसरे धर्मों के लोग हमारी शरण में आते हैं तो उनकी रक्षा करना हमारा संस्कार और कर्तव्य है. सीएए, एनपीआर पर हो रहे विरोध पर कहा कि सरकार को बात करके पूरे मसले का लोकतांत्रिक हल निकालना चाहिए. मोदी सरकार सोच-समझकर ही CAA लाई होगी।
नेता जी सुभाष चंद्र बोस की गुमशुदगी का रहस्य सुलझाने के लिए भारत सरकार अब तक तीन आयोगों का गठन कर चुकी है
इन तीनों आयोगों की रिपोर्ट सामने आने के बाद भी नेता जी की मौत को लेकर अंतिम निष्कर्ष जैसा कुछ भी हासिल नहीं हो सका है. नेता जी की मौत का पता लगाने के लिए सबसे पहले 1956 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने शाहनवाज खान के नेतृत्व में एक जांच समिति का गठन किया था. इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में विमान हादसे की बात को सच बताते हुए कहा कि नेताजी की मौत 18 अगस्त 1945 को ही हुई थी. लेकिन इस समिति में बतौर सदस्य शामिल रहे नेताजी के भाई सुरेश चंद्र बोस ने इस रिपोर्ट को नकारते हुए तब आरोप लगाया था कि सरकार कथित विमान हादसे को जानबूझ कर सच बताना चाहती है.
इसके बाद सरकार ने सन 1970 में न्यायमूर्ति जीडी खोसला की अध्यक्षता में एक और आयोग बनाया. इस आयोग ने अपने पूर्ववर्ती आयोग की राह पर चलते हुए विमान दुर्घटना वाली बात पर ही अपनी मुहर लगाई. लेकिन इसके बाद 1999 में उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मनोज मुखर्जी की अध्यक्षता वाले एक सदस्यीय आयोग ने इन दोनों समितियों के उलट रिपोर्ट देते हुए विमान हादसे वाले तर्क को ही खारिज कर दिया।
2006 में सामने आई मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट में नेताजी की मौत की पुष्टि तो की गई थी, लेकिन आयोग के मुताबिक इसका कारण कुछ और था, जिसकी अलग से जांच किए जाने की जरूरत है. मुखर्जी आयोग की इस रिपोर्ट को तत्कालीन केंद्र सरकार ने खारिज कर दिया था.
जानें क्यों है मौत पर विवाद
तथ्यों के मुताबिक 18 अगस्त, 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मंचुरिया जा रहे थे और इसी हवाई सफर के बाद वो लापता हो गए. हालांकि, जापान की एक संस्था ने उसी साल 23 अगस्त को ये खबर जारी किया कि नेताजी का विमान ताइवान में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसके कारण उनकी मौत हो गई. लेकिन इसके कुछ दिन बाद खुद जापान सरकार ने इस बात की पुष्टि की थी कि 18 अगस्त, 1945 को ताइवान में कोई विमान हादसा नहीं हुआ था. इसलिए आज भी नेताजी की मौत का रहस्य खुल नहीं पाया है. ये खबरें भी आती रहीं कि उन्हें रूस के सैनिकों ने गिरफ्तार कर लिया और वहीं की जेल में उन्होंने अंतिम सांस ली थी.