करीब 20 साल से मुजफ्फरपुर की लहठी पहनकर तीज करती थीं सुषमा स्वराज
छोटी कल्याणी की जलेबी था बहुत पसंद ,यहां के विकास के लिए हमेशा रहती थी चिंतित। उनके यहां मुजफ्फरपुर का कोई भी चला जाए तो बिना अन्न या जल ग्रहण कराए आने नहीं देतीं।
पटना (शिवानंद गिरि)
सुषमा स्वराज अब हमारे बीच भले ही नही हो लेकिन बिहार से उनका लगाव की चर्चा लोगों के जेहन में काफी है जो इनदिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। मुज़फ़्फ़रपुर हो या सिवान ,पटना हो या पूर्णिया सभी जगह के लोग अपनी अपनी यादों को आज साझा कर रहें हैं।यदि मुज़फ़्फ़रपुर की बात की जय तो वह भले ही इस जिले की बेटी नहीं थीं, लेकिन उनका सम्मान इससे कहीं कम नहीं था। वह यहां की लहठी पहनकर तीज का व्रत करती थीं। यहां की जलेबी पसंद थी। उनके यहां मुजफ्फरपुर का कोई भी चला जाए तो बिना अन्न या जल ग्रहण कराए नहीं आने देतीं। यहां के विकास की चिंता करती थीं।
अपनी यादों को ताज करते हुए भाजपा की पूर्व राष्ट्रीय सचिव डॉ. तारण राय कहती हैं कि वह हर तीज में लाल व हरे रंग की लहठी सुषमा स्वराज को भेजती रहीं। उसी को पहनकर वो तीज व्रत करती थीं। यह सिलसिला 20 सालों से चला रहा था। अगर लहठी मिलने में विलंब होता था तो गोवा की राज्यपाल डॉ.मृदुला सिन्हा के माध्यम से खबर भेजती थीं।
जॉर्ज के चुनाव में स्टार प्रचारक रहीं सुषमा वरीय नेताओं व युवाओं की टोली के साथ निकलती थीं। पुरानी याद ताजा करते हुए लघु उद्योग भारती के प्रदेश अध्यक्ष श्याम भीमसेरिया कहते हैं कि एक बार सुबह प्रचार में निकलना था। उस समय नाश्ते में छोटी कल्याणी की जलेबी लाकर एक कार्यकर्ता ने उन्हें दिया। उन्हें यह काफी पसंद आई। वह इसकी चर्चा करती रहीं।
मुजफ्फरपुर के विकास को रहती थी चिंतित
सूबे के नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा कहते हैं कि जॉर्ज के चुनाव प्रचार में कई बार सुषमा स्वराज के साथ रहने का मौका मिला। जब भी दिल्ली में मिलती थीं, यहां के विकास की बात करती थीं। पूछती थीं कि क्या बदलाव आया। उनका जाना भाजपा के साथ देश के लिए क्षति है।
मुज़फ़्फ़रपुर आने का वादा किया था
सांसद अजय निषाद कहते हैं कि 2014 में पहली बार चुनाव लड़ रहे थे। पिता कैप्टन जयनारायण प्रसाद निषाद के माध्यम से सुषमा स्वराज से बातचीत हुई। उन्होंने प्रचार में आने का वादा किया और कटरा में आईं। आशीर्वाद दिया कि तुम्हारा पहला चुनाव है रिकॉर्ड टूटेगा। उनका आशीर्वाद सही साबित हुआ। संसद में बड़ी बहन की तरह बेबाक राय देती थीं। संसद में कैसे सवाल रखा जाए, यह सिखाती रहीं। मुजफ्फरपुर से इतना लगाव था कि कहती थीं, देखो अजय वह तुम्हारी ही नहीं मेरी भी कर्मभूमि है। अजय आगे कहते हैं कि उन्होंने मुज़फ़्फ़रपुर आने का वादा किया था लेकिन भगवान को शायद यह मंजूर नही था और वक आज यह कि जनता को बधाई देने नही आ सकी।