पठानकोट के नाम से ही क्यों डर जाता है पाकिस्तान, ये है बड़ी वजह

कारगिल युद्ध के दौरान पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन ने पाकिस्तान की कमर तोड़ी थी

Update: 2019-09-04 07:20 GMT

नई दिल्ली।  भारत और पाक की जंग की कहानी बहुत ही पुरानी है, और हमेशा से पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन पाकिस्तान को अखरता रहा है। क्योंकि यह एयरबेस पाकिस्तानी सीमा से लगभग 150 किलोमिटर की दूरी पर है। वहीं दिल्ली से इसकी दूरी लगभग 450 किलोमीटर है।  यह एयरफोर्स स्टेशन भारत की सुरक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। युद्ध के दौरान भी यही एयरफोर्स स्टेशन हमेशा से पाकिस्तान के लिए बड़ी सिरदर्दी का सबब बना है। यही वजह है कि दो जनवरी 2016 की मध्यरात्रि को पाक समर्थित आतंकी संगठनों ने पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन को ही अपना निशाना बनाया था। उन्हें खत्म करने के लिए दिल्ली से एनएसजी कमांडो बुलाने पड़े थे।

यही नहीं 1965 और 1971 की लड़ाई में भी पठानकोट एयरबेस पर हमला हुआ था। पाकिस्तान ने इस एयरबेस की वजह से सियालकोट में टैंक भी तैनात किए हैं। लेकिन अब इस एयरफोर्स स्टेशन को अपाचे की स्क्वॉड्रन मिलने के बाद से सामरिक रूप से इसकी महत्ता और बढ़ गई है। भारत-पाक के बीच हुई दो लड़ाइयों के दौरान इसी एयरफोर्स को निशाना बनाते हुए पाकिस्तान एयरफोर्स ने एयर स्ट्राइक की थी। इस एयरफोर्स स्टेशन पर अभी मिग-21, मिग-29, एमआई-35 हेलीकॉप्टर व फाइटर जेट्स विमान मौजूद हैं। एयरफोर्स के कुल 18 विंग है। बॉर्डर के नजदीक होने की वजह से उत्तर भारत में वायुसेना की हर जरूरत को इसी एयरफोर्स स्टेशन से पूरा किया जाता है।

यहां से पाकिस्तान के साथ-साथ चीन सीमा की निगरानी भी संभव है। कारगिल युद्ध के दौरान पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन ने पाकिस्तान की कमर तोड़ी थी। स्टेशन के सामरिक महत्व को देखते हुए हुई वायुसेना ने यहां पर अपाचे जैसे घातक हेलीकॉप्टर तैनात किए हैं। पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन हमेशा पाक की जासूसी की जद में भी रहा है। पाकिस्तान इस स्टेशन की महत्ता को बखूबी जानता है, इसलिए पाक सेना के अफसर इस स्टेशन पर होने वाली हर हरकत और यहां होने वाली अफसरों की हर तैनाती की जानकारी लेने को बेताब रहते हैं। जासूसी के आरोप में यहां संदिग्ध पकड़े भी जा चुके हैं।

 

 

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