कर्जामाफ़ी में इण्टरनेट सर्वर रोड़ा: योगी सरकार में आदेश हड़बड़ी और जल्दबाजी में या फिर अनुभवहीनता या सस्ती लोकप्रियता बटोरने के लिए
Internet server barrier in debt: In order to mobilize the yogi government in haste and hasty or inexperience or inexpensive popularity
अक्सर योगी सरकार में आदेश हड़बड़ी और जल्दबाजी में लिये जाते हैं। ऐसा या तो अनुभवहीनता के कारण होता है या सस्ती लोकप्रियता बटोरने के लिए । यदि यह कहें कि यहाँ दोनों बाते सही हैं तो गलत न होगा। यह बात भी वैसे हुई जैसे कोई किसान बिना जुताई - गुड़ाई किये, बिना किसी तैयारी के खेत में बीज छींट दे, या कोई कुम्भकार बिना मिट्टी रवाँ हुये ही उसे चाक पर चढ़ा दे । पीछे आप देख चुके है। सड़कांे को तीन महीने के भीतर गड्ढा मुक्त कर देने का ऐलान हुआ था। उसका क्या हश्र हुआं ? शहरों को 24 घंटे और गाँवों को 16 घंटे बिजली देने का वादा कितना निभा ? इस समय बिजली की अघोषित कटौती इतनी अधिक हो रही है कि इसके पहलें शायद ही इतनी कभी हुई हो। प्रदेश की राजधानी लखनऊ जहाँ कभी बिजली कटती ही नहीं थी। वहाँ का जब यह हाल है तो छोटे -मोटे शहरों का कौन पुछत्तर ? देखा जाय तो कमोवेश ऐसे ही हालात अन्य महकमो के भी है। इसी क्रम में किसानों की कर्जामाफी की बात भी आती हैं। बल्कि यूँ कहें कि इस सरकार की यह सबसे बड़ी प्रलोभनकारी योजना है। इस योजना की जमीनी हकीकत अत्यन्त विस्मयकारी है। इसके फायदे से ईमानदार और मेहनती किसान वंचित रह गये। सारा फायदा बेईमान और जानबूझकर न देनेे वाले ले रहे। यानी जो जितना बड़ा '' डिफाल्टर '' , वह उतना सही। उतना ही खुश। आगे चलकर यह एक नयी अराजकजा को जन्म देने वाली योजना न बन जाय तो ताज्जुब नही। कर्जमाफी के बाद अनुमानतः जो आँकड़ा सामने आने वाला है वह चौकाने वाला हो सकता है। यह भी हो सकता है कि अनुमानत: 75 फीसदी किसानों को हाथ मल कर रह जाना पड़े। वह खुद को कोसे कि नाहक कर्जा लौटा दिया। पर , सरकार को इस सबसे क्या लेना - देना ? उसे तो कर्जमाफी के ऐलान से मिलने वाले राजनैतिक लाभ से है। पर , देखना यह होगा कि आगामी चुनाव में भाजपा को उससे कितना लाभ होता है ? इस पर कभी विस्तार से लिखा जायेगा।
मौजूदा समस्या किसानों और बैंको दोनों के लिए बड़ी दिक्कततलब है । मुख्यमंत्री ने बैंकों के माध्यम से किसानेंा का जमीन सम्बन्धी आँकड़ा, उनका आधार कार्ड आदि'' पोर्टल '' पर डलवाने की अंतिम तिथि 21 जुलाई तय कर रखी थी। लगभग 86 लाख किसान इस योजना के दायरे में आ रहे हैं जबकि अभी तक 15 लाख किसानों का भी डाटा पोर्टल पर फीड नहीं हो पाया है। बैक के कर्मचारी परेशान हैं और बैक के दूसरे कामकाज छोड कर इसी एक काम में लगे है। इससे बैंक के वो ग्राहक जो सामान्य लेन - देन के लिए बैंक में आाते हैं वह घंटों इन्तजार करते हैं। ग्रामीण इलाके के बैंकों में किसान कार्ड भारी संख्या में बँटे हैं। वहाँ यह समस्या शहरी क्षेत्रों की बैंकों की तुलना में कहीं अधिक है। जब से '' इण्टरनेट बैंकिग '' का दौर चला है तब से बैंको पर सरकार का शिकंजा तेजी से कस उठा है। बैंक जो कभी एक प्रकार सेे स्वायत्त संस्था के रूप् मं काम करती थी। सरकार के कब्जे में है । वह भी काफी सख्त नियऩ्त्रण के साथ। इस समय कर्जमाफी के आँकड़ों को लेकर कुछ ऐसी प्रक्रिया अपनायी जा रही है । पहले बैंक से ऐसे आँकडे माँगे जा रहे हैं जिससे यह मालूम हो सके कि किस किसान ने , किस बैंक से, कितने रूपये का किसान क्रेडिट कार्ड बनवाया हैं । फिर उन आँकड़ों से किसान के भूलेख को जोड़ा जाना है। साथ ही उन किसानों का आधार कार्ड भी उस खाते से जुड़ना है। कितने किसान तो पहले ही मर चुके है जिनका आधार कार्ड भी नहीं । इस नये ''साफटवेयर'' के साथ हर किसान की खसरा - खतौनी भी ' अपलोड' होनी है। यदि खेत के उस गाटें में कई किसान संयुक्त हैं तो पात्र किसान के हिस्से की गणना करनी है । यह अत्यन्त जटिल और अधिक समय लेने वाला कार्य हैं। दूसरी कठिनाई यह है कि यदि तीन- चार साल पहले की खतौनी लगी हो और वहाँ चकबन्दी भी चल रही हो तो उस गाटे का नम्बर भी बदल जाता है । वहाँ नया नम्बर डालना होगा जो कहीं - कहीं अभी उपलब्ध ही नहीं । यानी यह एक बड़ा उलझाऊ कार्य हैं।