लोकसभा चुनाव 2019 पर पहली समीक्षा, जानिए- क्या इस बार का चुनाव अलग है?
बहुत दिनों बाद लोकसभा चुनावों में मुसलमानों को खौफ़ नही दिखाया जा रहा और इसीलिए मुसलमान इस बार लगभग बहस से गायब ही हैं।
डॉ. रुद्र प्रताप दुवे (वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक) द्वारा लोकसभा चुनाव 2019 में अब तक के माहौल पर पहली समीक्षा
1. बहुत दिनों बाद ऐसा चुनाव दिख रहा है जहाँ वरिष्ठता, आदर्श, बड़ा नाम सबको दरकिनार करते हुए हर पार्टी ने बड़ी तादात में अनुमानित नामों के टिकट काटे हैं। हर पार्टी इस बार ऐसे ही लोगों को लड़ा रही हैं जिन्होंने या तो पार्टी को आर्थिक सहायता दी/दिलवाई है या जो जीतने वाले कैंडिडेट हो। इनके अलावा इस बार कहीं भी कोई 'एडजेस्ट' नही किया जा रहा।
2. बहुत दिनों बाद लोकसभा चुनावों में मुसलमानों को खौफ़ नही दिखाया जा रहा और इसीलिए मुसलमान इस बार लगभग बहस से गायब ही हैं। 'बीजेपी सत्ता में आ गयी तो ये-वो हो जाएगा' वाला गुब्बारा भी फूट गया। शायद इसी वजह से जामा मस्जिद के इमाम साहब भी बड़े राजनीतिक परिदृश्य से नदारद हैं। कोई भी बड़ा नेता उनसे मीटिंग इसी शर्त पर माँग रहा है जब तस्वीरें और खबरें बाहर ना निकलें।
3. हमेशा की तरह ये चुनाव भी पूरी तरह से झूठ के आधार पर खड़ा है। एक नही सौ उदाहरण हैं -
A. अखिलेश जी ने लगातार दूसरी बार सार्वजिनक तौर पर कहा कि डिम्पल चुनाव नही लड़ेंगी - लेकिन वो लड़ रही हैं।
B. अरविंद केजरीवाल ने कहा कांग्रेस से कभी गठबंधन नही करेंगे - लेकिन वो लगभग दंडवत रहे।
C. बीजेपी ने बोला कि वो अपनी हर योजना में 100 प्रतिशत सफल रही - लेकिन उसने सांसद आदर्श ग्राम के विकास पर कभी बात नही की।
D. BBC के इंटरव्यू में कभी राजनीति में नही आने का वादा करने वाली प्रियंका गाँधी इन चुनाव में कांग्रेस की जनरल सेकेट्री हैं।
4. जिन्हें लगता है कि चुनाव के शुरुआती दौर में ही महिलाओं (सपना चौधरी या हेमा मालिनी) के बारे में अपमानजनक बातें हो रही हैं उन्हें रामपुर के चुनाव पर विशेष निगाह रखनी चाहिए। महिलाओं के बारे में जितनी अभद्र बातें हो सकती हैं, वो सारी आपको रामपुर के चुनाव में पढ़ने/सुनने को मिल जाएगी।
5. चुनाव एक बार फिर से मूल मुद्दे से बहुत दूर है - किसी भी तरह का विकास - स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा, आवास तब तक हर व्यक्ति को नही प्राप्त होगा, जब तक देश मे प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण नही होगा। लेकिन कोई भी सरकार इस विषय में गंभीर नही। जब तक सरकारें इस मूल समस्या को एड्रेस नही करेगी तब तक हर चुनाव यूँ ही गरीब और गरीबी के मुद्दे पर लड़े जाते रहेंगे।
- रुद्र