दलबदलुओं को दगा दे गई किस्मत

किसी उम्मीदवार को पार्टी का सेंबल नही मिलने से वो अपना पाला बदलने मे कोई कोर कसर नही छोड़ी।

Update: 2019-05-24 10:21 GMT

लखनऊ। 17वीं लोकसभा में घोषणा होने से पहले ही राजनीतिक पार्टीयां तैयारी में लग गई थी। हर कोई अपने पर जीत का दावा कर रहे थे तो कोई पार्टी के सेंबल पर अपनी नईयां पार लगाने के जुगत में लगे थे। लेकिन इस बार नेताओं के अंदर एक अलग ही रंग देखने को मिला कि किसी उमीदवार को पार्टी का सेंबल नही मिलने से वो अपना पाला बदलने मे कोई कोर कसर नही छोड़ी,लेकिन पाला बदलने से भी किस्मत नहीं चमकी। अंतिम क्षणों में छोड़कर भाजपा का दामन थामने वाले प्रवीण निषाद ही चुनाव जीत पाये। प्रवीण गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा—बसपा के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में जीते थे । भाजपा ने उन्हें संत कबीर नगर से प्रत्याशी बनाया था । निषाद ने बसपा के भीष्म शंकर को 35, 749 मतों से पराजित किया । उसके बाद कोई भी ऐसा नही रही जो चुनाव जीत सकें।

आपको बतादें कि भाजपा छोडने वाली सावित्री बाई फुले की किस्मत दगा दे गई। वह कांग्रेस में गयीं और बहराइच से उनकी जमानत जब्त हो गयी। कांग्रेस के गढ रायबरेली में संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी का मुकाबला भाजपा के दिनेश प्रताप सिंह से था कांग्रेस छोडकर भाजपा में गये दिनेश की किस्मत ने साथ नहीं दिया। इलाहाबाद से भाजपा सांसद रहे श्यामा चरण गुप्ता ने सपा का दामन थामा और उनको बांदा से प्रत्याशी बनाया गया, लेकिन बांदा से जीत नहीं पाये । सपा-बसपा के गठबंधन में बसपा छोडकर कांग्रेस में आयीं कैसर जहां सीतापुर से चुनाव हार गयीं ।

सपा छोड़कर कांग्रेस में गये राकेश सचान फतेहपुर से हार गये । बसपा छोड़कर कांग्रेस में गये नसीमुददीन सिद्दिकी बिजनौर से हार गये। भाजपा छोडकर कांग्रेस में गये अशोक कुमार दोहरे इटावा से हार गये । मछलीशहर से भाजपा सांसद रहे चरित्र निषाद सपा के साथ गये लेकिन मिर्जापुर से चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा। 

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