मरने से पहले पढ़ा जा रहा 40वें का फ़ातिहा, बुक हो रही है मनचाही कब्र

Update: 2015-11-24 12:55 GMT



कानपुर : मुस्लिम कब्रिस्तानों में जगह की कमी कहें या पुरखों के बीच दफन होने की इच्छा, कुछ लोगों ने जगह की वसीयत कराई है। मुसलिम समाज के लोग अपने जीते जी पुरखों की कब्र के पास ही कब्रिस्तान में जगह पाने की ख्वाहिश में वसीयत कर रहे हैं। यहां तक कि समाज के कुछ लोग कफन की खरीद के साथ ही इंतकाल के बाद चालीसवें का फातिहा (संस्कार) भी करा चुके हैं। इस दिशा में मुसलिम समाज की सोच के पीछे अलग-अलग कारण बताए जा रहे हैं।

कुछ लोगों ने कब्र में दफन होने के लिए कफन को भी पहले से खरीद कर अपने पास सुरक्षित रख लिया है। जब जायरीन हज यात्रा पर जाते हैं तो वह खरीदा हुआ कफन सऊदी अरब में आब-ए-जमजम (पवित्र जल) से धुलवा लेते हैं और जो हज पर नहीं जा पातें हैं वे लोग भी हज यात्रियों के जरिए कफन आब-ए-जमजम से धुलवा कर मंगवा लेते हैं।

मनचाही कब्र और कफ़न
बांसमंडी के हाजी परवेज अहमद, इफ्तिखाराबाद के हाजी नफीस खां और उनकी पत्नी महनाज ने बताया कि उनके पास आब-ए-जमजम से धुला कफन है। परिजनों को बता दिया गया है कि इंतकाल के बाद इस कपड़े से ही उन्हें दफनाया जाए। चमनगंज पेशकार रोड के हाजी अब्दुल रशीद, बेकनगंज के निसार अहमद ने अवामी कब्रिस्तान में मनचाही जगह पर दफन होने के लिए परिजनों को वसीयत कर दी है।

मरने से पहले करवाया जा रहा है 40वें का फ़ातिहा
कई सुन्नी मुसलमानों ने इंतकाल के पहले ही मौत के चालीसवें दिन होने वाली फातिहा को पहले करा लिया है। गम्मू खां हाता के बुजुर्ग इलियास ने बताया कि उन्हें शंका थी कि शायद उनके परिजन मरने के बाद उनके चालीसवें का फातिहा न कराएं। इसलिए पहले ही फातिहा करा लिया है। अब किसी के फातिहा में खाना नहीं खाते हैं।

क्या कहते हैं काजी
शहरकाजी मौलाना आलम रजा नूरी ने कहा कि फातिहा कराना नेक अमल है। चाहे मरने के पहले कराया जाए या बाद में। अगर इस डर से कि औलादें उनकी चालीसवें का फातिहा नहीं कराएंगी तो वह पहले करा लें, ऐसा कोई शरई मसला नहीं है। अगर लोग करा लेते हैं तो नेक अमल का सवाब मिलेगा। वहीं मुस्लिम इत्तेहाद कब्रिस्तान कमेटी के अध्यक्ष मोईनुद्दीन ने कहा कि शहर के कब्रिस्तानों में लोग मनचाही जगह पर अपने पूर्वजों की कब्रों के पास दफन होने की इच्छा की वसीयत करते हैं। मरने के बाद उनकी कब्र के लिए जगह दी जाती है।

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