अंतरिक्ष विज्ञानियों ने 'मिल्की वे' आकाशगंगा के बगल में एक ब्लैक होल का पता लगाया है. वो इसे 'भूसे की ढेर में सुई' खोजने की संज्ञा दे रहे हैं. इस ब्लैक होल को ना सिर्फ निष्क्रिय श्रेणी में डाला गया है बल्कि ऐसा लगता है कि यह किसी तारे की मौत के धमाके के बगैर ही बना था. सोमवार को रिसर्चरों ने बताया कि यह दूसरे ज्ञात ब्लैक होल से इस मामले में अलग है कि "यह एक्स-रे क्वाइट" है यानी ताकतवर एक्स-रे का विकिरण नहीं कर रहा है. रिसर्चरों के मुताबिक यह अपने आसपास की चीजों को अपने शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण से निगल तो रहा है लेकिन यह किसी तारे के धमाके यानी सुपरनोवा के बिना पैदा हुआ है. ब्लैकहोल आमतौर पर असाधारण रूप से सघन होते हैं और इनका गुरुत्वाकर्षण बल इतना ज्यादा होता है कि प्रकाश की भी उनके पार नहीं जा पाता.
इस नये ब्लैक होल का वजन हमारे सूरज की तुलना में कम से कम 9 गुना ज्यादा है. इसकी खोज लार्ज मागेलानिक क्लाउड के तारंतुला नेबुला इलाके में हुई है और यह पृथ्वी से करीब 160,000 प्रकाश वर्ष दूर है. एक प्रकाश वर्ष का मतलब उस दूरी से है जो प्रकाश की किरणें एक साल में तय करती हैं यानी तरीबन 9.5 लाख करोड़ किलोमीटर. इस ब्लैक होल की कक्षा में एक बेहद चमकीला और गर्म नीले रंग का तारा इसकी परिक्रमा कर रहा है. इस तारे का वजन हमारे सूरज की तुलना में करीब 25 गुना ज्यादा है. रिसर्चरों का अनुमान है कि यह तारा एक दिन ब्लैक होल बन जायेगा और फिर इसके साथ मिल भी सकता है. निष्क्रिय ब्लैक होल को दूसरे ब्लैक होल की तुलना में ज्यादा आम समझा जाता है लेकिन इनकी खोज करना मुश्किल होता है.
क्योंकि ये अपने आसपास के वातावरण से बहुत कम संपर्क रखते हैं. इससे पहले कई ऐसे ब्लैक होल के दावे बाद के अध्ययनों में खारिज कर दिए गये. इस ब्लैक होल की खोज करने वाली टीम के साथ भी पहले ऐसा हो चुका है. एम्सटर्डम यूनिवर्सिटी के अंतरिक्ष विज्ञानी तोम शेनार इस ब्लैक होल की रिसर्च रिपोर्ट के प्रमुख लेखक हैं. उनका कहना है, "ऐसे चीजों की खोज करना बड़ी चुनौती है, हमने भूसे के ढेर में से सुई खोजी है." रिसर्च रिपोर्ट के सह लेख करीम अल बादरी का कहना है, "अंतरिक्ष विज्ञानियों ने कई दशकों तक ढूंढने के बाद इस तरह की किसी चीज का पता लगाया है." रिसर्चरों ने चिली की यूरोपीय सदर्न ऑब्जरवेटरी की विशाल दूरबीन के छह साल के पर्यवेक्षणों का इस्तेमाल किया.
ब्लैकहोल की कई श्रेणियां हैं. हाल ही में खोजे इस ब्लैकहोल जैसे बेहद छोटे ब्लैक होल का निर्माण विशाल तारों का जीवन चक्र खत्म होने के नतीजे में होता है. इसके अलावा कुछ इंटरमीडिएट ब्लैक होल और कुछ बहुत विशाल ब्लैक होल भी हैं जो ज्यादातर आकाशगंगाओं के केंद्र में होते हैं. रिसर्च में शामिल यूलिया बोडेंस्टाइनर का कहना है, "ब्लैकहोल मूलभूत रूप से बहुत अंधेरी चीजें हैं. उनसे कोई प्रकाश नहीं निकलता. इसलिए ब्लैकहोल का पता लगाने के लिए आमतौर पर हम बाइनरी सिस्टम का उपयोग करते हैं. इसमें हम देखते हैं कोई चमकीला तारा एक ऐसी चीज के इर्द गिर्द चक्कर लगा रहा है जो दिखाई नहीं दे रही." मोटे तौर पर यह माना जाता है कि किसी बड़े तारे का ब्लैकहोल में मिल जाना ताकतवर सुपरनोवा विस्फोट से जुड़ा है.
इस मामले में हमारे सूरज के आकार से 20 गुना बड़ा कोई तारा मौत के करीब आने पर अपना मटीरियल अंतरिक्ष में उड़ेलता रहता है और फिर कभी खुद को भी बिना किसी विस्फोट के इसके हवाले कर देता है. इस ब्लैकहोल की कक्षा का आकार इस बात का सबूत है कि यहां धमाका नहीं हुआ. शेनार ने बताया, "इसकी कक्षा बिल्कुल गोल है." उनके मुताबिक अगर यहां कोई सुपरनोवा हुआ होता तो विस्फोट के बल से नया बना ब्लैकहोल की कक्षा गोल की बजाय किसी और आकृति में होती. ब्लैक होल अपने गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से आसपास से गुजरने वाली गैसों, धूल और तारों को बड़ी क्रूरता से अपने अंदर समेट लेते हैं.