Telangana State Election: तेलंगाना राज्य का चुनावी समीकरण
मुस्लिम केंद्रित शहरों की बात करें तो निजामाबाद, आदिलाबाद, महबूबनगर, ग्रेटर हैदराबाद, करीमनगर, जागतियाल, नालगोंडा, खम्मम, मरियलगुड्डा, वारंगल, सिकंदराबाद अहम जगह है जहां पर मुस्लिम आबादी ठीक-ठाक गिनती में रहती है।
अंसार इमरान
दक्षिण भारत का एक अहम राज्य तेलंगाना जो हमेशा अपनी राजधानी हैदराबाद के लिए विश्व प्रसिद्ध रहा है। मुस्लिम आबादी के हिसाब से देखें तो इस राज्य में 12 फीसदी मुस्लिम आबादी है। इस राज्य के हैदराबाद जिले में मुस्लिम बहुलता है वहीं निजामाबाद, संगारेड्डी, निर्मल, रंगा रेड्डी, विकाराबाद, आदिलाबाद, महबूबनगर, वारंगल अर्बन, कमरारेड्डी और करीमनगर इन जगहों पर भी मुसलमान की ठीक-ठाक आबादी रहती है।
मुस्लिम केंद्रित शहरों की बात करें तो निजामाबाद, आदिलाबाद, महबूबनगर, ग्रेटर हैदराबाद, करीमनगर, जागतियाल, नालगोंडा, खम्मम, मरियलगुड्डा, वारंगल, सिकंदराबाद अहम जगह है जहां पर मुस्लिम आबादी ठीक-ठाक गिनती में रहती है।
राजनीतिक तौर पर देखेंगे तो माना जाता है कि 10 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां पर सीधे तौर पर मुसलमान चुनावी नतीजे को प्रभावित करते हैं। इसके अलावा प्रदेश की 119 विधानसभा सीटों में से 40 सीटों पर मुसलमान का राजनीतिक तौर पर प्रभाव रखते है।
मौजूदा समय में AIMIM की तरफ से 7 मुस्लिम विधायक और BRS की तरफ से एक मुस्लिम विधायक विधानसभा में नुमाइंदगी करता है। इसके अलावा हैदराबाद की पूरी राजनीति अक्सर मुस्लिम समुदाय के इर्द-गिर्द ही घूमती है और हैदराबाद लोकसभा सीट से ही AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी लोकसभा सांसद भी हैं।
विधानसभा चुनाव 2018 में जीते हुए मुस्लिम विधायक
1. Bahadurpura - MOHD. MOAZAM KHAN (AIMIM)
2. Bodhan - SHAKIL AAMIR MOHAMMED (TRS)
3. Charminar - MUMTAZ AHMED KHAN (AIMIM)
4. Chandrayangutta - AKBARUDDIN OWAISI (AIMIM)
5. Karwan - KAUSAR MOHIUDDIN (AIMIM)
6. Malakpet - AHMED BALALA (AIMIM)
7. Nampally - JAFFAR HUSSAIN (AIMIM)
8. Yakatpura - SYED AHMED PASHA QUADRI (AIMIM)
यहां ये बात ध्यान रहे कि पूर्व मंत्री और विधान परिषद में विपक्ष के नेता, श्री मोहम्मद अली शब्बीर, जिन्होंने कामा रेड्डी से चुनाव लड़ा था, सीट जीतने में असफल रहे थे। हालाँकि, कांग्रेस, टीडीपी और बीएसपी ने विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों से मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा था, लेकिन कोई भी सफल नहीं हो सका था।
मौजूदा राजनीति
आंध्र प्रदेश से अलग होने के बाद से तेलंगाना की राजनीति पूरी तरीके से बदल चुकी है जो आंध्र प्रदेश कभी कांग्रेस और टीडीपी का गढ़ माना जाता था तेलंगाना के बनने के बाद से वहां पर भारतीय राष्ट्रीय समिति BRS (पूर्व में टीआरएस) उसका एकछत्र राज चल रहा है। AIMIM जो आंध्र प्रदेश के बंटवारे के खिलाफ थी वह तेलंगाना राज्य बनने के बाद से ही BRS की साथी बन चुकी है और दोनों पार्टियों मिलकर हैदराबाद की राजनीति को चल रही है।
पिछले चुनाव के समय असदुद्दीन ओवैसी ने मुस्लिम वोटरों से अपील की थी कि हैदराबाद के अलावा जहां उनकी पार्टी चुनाव नहीं लड़ रही है जैसे कि आसिफाबाद महबूबनगर और मेढक की सीट पर मुसलमान BRS को समर्थन दे दें। कभी कांग्रेस के साथ रहने वाला मुसलमान हालिया समय में AIMIM की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रहा है।
अगर मौजूदा राजनीति की बात करें तो कभी जॉइंट आंध्र प्रदेश के सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस आज तेलंगाना में केवल छह विधायकों के साथ अपोजिशन में बैठी हुई है। इसके अलावा मुस्लिम वोटो पर भी एमआईएम का स्ट्रांग होल्ड है। भाजपा ने भी धीरे-धीरे राज्य में अपनी मजबूत पकड़ बनानी शुरू की है। हालिया लोकसभा चुनाव में भाजपा चार सीटें जीतकर भी आई थी जो वहां पर BRS, कांग्रेस और बाकी पार्टियों के लिए एक खतरे का निशान है।
आगामी चुनाव
अगर चुनावी वादों की बात करें तो प्रदेश का मुसलमान टीआरएस की कार्यशैली से कुछ हद तक संतुष्ट नजर आता है उसकी वजह यह है कि कांग्रेसी राज्य में अक्सर हैदराबाद खासतौर पर ओल्ड हैदराबाद में कर्फ्यू के हालात बने रहते थे मगर BRS ने एमआईएम की मदद से उन चीजों से काफी हद तक पार पाया है।
मगर इसकी जगह दूसरे मामले में जब राज्य का गठन हुआ था तो टीआरएस की तरफ से बार-बार एक बात कही गई थी कि वह 12% मुसलमान के लिए शिक्षा और रोजगार में रिजर्वेशन लागू करेंगे उसका लागू नहीं होना मुसलमानों को नाराज करने के लिए काफी है। इसके अलावा मौजूदा समय में जो मुसलमान को 4% कोटा मिलता है जो कांग्रेस के समय की देन है वह काफी हद तक मौजूदा समय में भी सहायक है। इसकी जगह तो BRS ने चुनावी दौर में 12 फीसदी आरक्षण का वादा किया था उसका पूरा न होना शायद आगामी दिनों में सत्ताधारी पार्टी को चुनावी सतह पर नुकसान पहुंचाएगा।
विपक्ष
अगर राजनीतिक तौर पर देखें तो आप कह सकते हैं कि तेलंगाना में इस वक्त विपक्षी पार्टी की भूमिका में भारतीय जनता पार्टी ही है कांग्रेस शायद उतनी मुखर नहीं है। हालिया उपचुनाव में भी भाजपा का जीतना उसके बढ़ते हुए प्रभाव को दर्शाने के लिए काफी है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को केवल 6% वोट मिले थे मगर वही लोकसभा के समय वोट शेयर 19% हो चुका था और उसके चार कैंडिडेट जीते गए थे। राज्य के मुख्यमंत्री KCR के बराबर वाली सीट दुब्बका जहां पर हालिया समय में उपचुनाव हुआ है वहां पर भाजपा प्रत्याशी का जीतना इन पार्टियों के लिए खतरे की घंटी है।
जातिगत समीकरण
अगर जातिगत समीकरण की बात करूं तो तेलंगाना में दो-तीन कम्युनिटी बड़े पैमाने पर है। मुन्नरकापू और दूसरी बड़ी जाति रेड्डी इन दोनों जातियों का वोट बैंक 40% से अधिक है। इसके अलावा वेलमा जाति का भी प्रभाव नकारा नहीं जा सकता है। मुख्यमंत्री केसीआर की जाति भी यही है। इसके अलावा राज्य में मुस्लिम समुदाय का भी अच्छा खासा प्रभाव है जो राजनीतिक तौर पर कई सीटों को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं। ओबीसी वोट बैंक को देखते हुए भाजपा ने इस राज्य के बड़े नेता के लक्ष्मण को उत्तर प्रदेश के कोटे से राज्यसभा भेजा है।
अब अगर हम पूरे देश में एक बड़ा नाम बन चुके असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM की बात करें तो उनका प्रभाव 7 से 10 विधानसभा और दो लोकसभा सीटों तक ही है और बहुत सारी जगह पर ओवैसी को टारगेट बनाकर भाजपा हिंदू वोट को एकजुट करने की कोशिश करती है। खास तौर पर हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्य नगर करने की चर्चा भाजपा की इसी रणनीति का एक हिस्सा है।
अब राजनीति की एक और गुणा गणित को समझते हैं तेलंगाना को अलग राज्य बनाने का जब आंदोलन चल रहा था तो KCR के राइट हैंड माने जाते थे इटला राजेंद्र और जब से KCR ने अपने बेटे KTR को पार्टी के कमान सौंपी है तब से राजेंद्र खफा चल रहे हैं। उनका ओबीसी समुदाय पर बड़ा प्रभाव है और उन्हें ओबीसी का सबसे बड़ा नेता माना जाता है। यह भी कहा जा रहा है की BRS के जनरल सेक्रेटरी हरीश राव भी इस बात से बेहद नाराज चल रहे हैं और आगामी दिनों में शायद उनकी भाजपा के साथ कोई सेटिंग भी हो सकती है।
भाजपा
अगर मीडिया की नजर से देखेंगे तो आपको लगेगा कि प्रदेश में केवल BRS, एमआईएम और भाजपा ही है। भाजपा को बहुत ज्यादा प्रभावशाली पार्टी के तौर पर प्रदर्शित किया जा रहा है मगर हकीकत यह है कि भाजपा का प्रभाव केवल शहरी इलाकों में है जबकि 119 सीटों वाली विधानसभा में ज्यादातर सीटें ग्रामीण क्षेत्र की है। इसके अलावा एक हकीकत ये भी है कि अभी जो भी वोट भाजपा के साथ है वह असल में कभी टीडीपी पार्टी का वोटर था।
मुस्लिम राजनीति
मुस्लिम राजनीतिक गलियारों में अक्सर विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक पार्टियां एक बात करती हुई आपको सुनाई देगी कि अगर गठबंधन की राजनीति हो तो मुसलमान को कम से कम 10 सीटें मिलनी चाहिए। इसके अलावा हैदराबाद की जो म्युनिसिपल राजनीति है वह भी मुसलमान के हिस्से में आनी चाहिए। इसके अलावा दो लोकसभा सीटें और एमएलसी के तौर पर भी मुसलमान को हिस्सेदारी मिलनी चाहिए।
राज्य के गठन के समय से ही जो 12% आरक्षण की बात मुसलमान समुदाय के लिए की गई थी उसको भी पूरा करना समय की सबसे अहम जरूरत है। इसके अलावा बार-बार कर की तरफ से जो माइनॉरिटी के वेलफेयर के लिए 10000 करोड रुपए के अलॉट करने की बात की जाती है उसको भी अमली जामा पहनाया जाना चाहिए। इसके अलावा उर्दू और मुस्लिम एंपावरमेंट स्कीम के जरिये मुसलमानों के उत्थान के लिए भी सरकारी प्रयास बहुत जरूरी है।
कांग्रेस
अगर कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस मौजूदा समय में केवल 6 विधानसभा सीटें ही जीत पाई है मगर जब आप गहराई से चुनावी अध्यन करेंगे तो आपको समझ में आएगा कि BRS और कांग्रेस के बीच वोटो का फर्क बहुत कम है। चुनावी नतीजे कभी भी पलट सकता है। इसी वजह से अपने हालिया दिनों में जितने भी चुनावी विश्लेषण हुए हैं उसमें कांग्रेस को लीड हासिल करते हुए देखा होगा। एक बड़ी वजह यह भी है कि 2014 से लगातार प्रदेश की सत्ता पर काबिज़ BRS के खिलाफ प्रदेश में सत्ता विरोधी माहौल भी धीरे-धीरे पनप रहा है।