आइये आज फ़ातिमा शेख़, भारत की प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षक के जन्मदिन पर इस देश की अमूल्य साझा विरासत की रक्षा करें। कट्टरपन्थ, अंधविश्वास, नफरत के खिलाफ शिक्षा, संस्कृति और भाईचारे की उस पाठशाला के विद्यार्थी बनें जिसकी नींव ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले और फ़ातिमा शेख़ ने रखी थी।
आओ आज हम गले लग जाएँ
नाबालिग़ सुल्ताना
तीन दिन से बैठी है भूख हड़ताल पर !
नहीं करना उसे निकाह
चाहती है अभी और पढ़ना !
भँवरी देवी
कमर कस कर हो गयी है तैयार
कुछ भी हो जाए
जो हुआ मेरे साथ
नहीं होगा बेटी के साथ
नहीं होगा मेरी बेटी का बाल विवाह !
एक और माँ
फ़ातिमा बीबी
सड़क पर मुट्ठी बाँधे
लड़ रही है इंसाफ़ की लड़ाई !
एक मुरुगनाथम ! जिसे
लोग पागल या समझते कि
पड़ा है इसपर भूत-प्रेत का साया
चुपचाप, सारे ख़तरे उठाकर
कर रहा है मौन क्रांति कि
लड़कियाँ जा सकें स्कूल
इसलिये बना रहा है सस्ते सैनेटरी नैपकिन !
सउदी अरब की औरतें
पहली बार मना रही हैं
नारी दिवस !
कर रहीं हैं माँग, कि
उनको ड्राइविंग लाइसेंस दिया जाय !
ओ सुल्ताना ! ओ भँवरी देवी !
ओ फ़ातिमा बीबी ! ओ मुरुगनाथम !
ओ सउदी अरब की मेरी बहनों !
आओ ! आज हम गले लग जाएँ !
आओ आज जोर से गाएँ मुक्ति-राग, कि
नहीं, हम नहीं हैं कोई वस्तु या गाड़ी
जिसे घर के अंदर करके सुरक्षित पार्क
तुम खेलो बाहर रंग-गुलाल !
- सरला माहेश्वरी