बाराबंकी : लोकगीत आज भी लोगों के दिलों में रचे बसे हैं। लोकगीतों ने ही प्राचीन संस्कृति को नयी पीढ़ी तक पहुंचाने का कार्य किया है। यह बात सुप्रसिद्ध अवधी लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने देवा मेला में प्रस्तुति से पूर्व मिडिया से बातचीत में कही।
फैन ही सबसे बड़ी पूंजी
उन्होंने कहा कि लोकगीत किसी समाज की जान होते हैं। अवधी के लोकगीत भी काफी समृद्ध हैं। कजरी, चैता, सोहर, विवाह जैसे दर्जनों परंपरा के गीत आज भी लोगों के कानों में रस घोलते हैं। उन्होंने कहा कि आज इन गीतों के संरक्षण और संवर्धन की जरुरत है। उन्होंने कहा कि बाबा के दरबार में पिछले कई सालों से हाजिरी का मौका मिल रहा है। जिसे वह बाबा का करम मानती हैं।
मलिनी ने कहा कि देवा मेला की आख़िरी शाम और ऐसी भीड़ आई कि कार्यक्रम के बाद हम लोग डेढ़ घंटे बाद ही बाहर निकल सके। मेरा यही अनुभव है जो आपसे आज कहती हूँ, आगे की कुर्सियों पर तो माननीय और आभिजात्य वर्ग बैठ जाता है, लेकिन असली श्रोता तो घंटो पहले से आकर, दूर बहुत दूर बैठ जाता है। सीट नही मिलती, खड़ा रहता है। बैराकेडिंग के पार, मंच से बहुत दूर..... सिर्फ एक झलक के लिए, या शायद सिर्फ सुनने के लिए घनघोर गर्मी और अव्यवस्था में बैठा रहता है। यही श्रोता वर्ग रौनक़ होते हैं आयोजन की! असली श्रोता!
में प्रायः मंच से उन्हें देख सोचा करती हूं, कि यही श्रोता हैं जो कलाकार को कलाकार बनाते हैं, और त्रासदी, ये, कि ये कभी मंच के पास नही पहुँच पाते।
मुझे यह दूरी कभी से अच्छी नही लगी, इसलिए, मैं उस दूरी को पाटते हुए श्रोताओं तक आती हूँ, बार बार जाती हूँ, अंतिम श्रोता के पास जाकर संवाद करती हूं। कई लोग इस बात की आलोचना कर सकते हैं, विशेष रूप से शुद्धतावादी, लेकिन यह लोकसंस्कृति है, लोक से ही न जुड़ पाई तो काहे की लोककलाकार!!
कल देवा शरीफ की भीड़, "देवा" रे"देवा"
फैन ही सबसे बड़ी पूंजी
देवा : मालिनी अवस्थी का कार्यक्रम सुनने कुशीनगर से आए 76 वर्षीय राम बहादुर ने जब मालिनी को उनका सबसे बड़ा फैन होने के बारे में बताया तो मालिनी उनकी उम्र और लगाव को देखकर मालिनी भावुक हो उठीं। उन्होंने उन्हें हाथ जोड़ कर प्रणाम किया। इसके बाद उन्होंने उनसे गुफ्तगू कर उनकी आवाज में एक गाने को भी मोबाइल में रेकॉर्ड किया।