बाराबंकी (स्पेशल न्यूज़ कवरेज): पांडवों के यहां आगमन का साक्षी महादेवा, दुर्लभ पुष्पों वाले पारिजात की सरजमीं बाराबंकी जनपद अब महात्मा बुद्ध के शांति अहिंसा के संदेश से जुड़ेगा। यहां के विकास खंड रामनगर के ददौरा में प्राचीन वट वृक्ष को महाबोधि वट वृक्ष का नाम देकर पर्यटन स्थल के रूप में सजाया संवारा जा रहा है। लगभग एक एकड़ इलाके में विशाल बांहे फैलाये वट वृक्ष किसी कलाकृति से कम नही लगता।
गांव की कई पीढ़ियों ने इसे मुग्ध होकर देखा। गांव के अस्सी साल के बुजुर्ग भी इसकी उम्र से वाकिफ नही है। हां वनस्पति विज्ञान के धुरंधर शायद इसकी आयु का पता लगा सकें। लखनऊ से गोंडा—बहराइच जाने वाला मार्ग बौद्ध परिपथ कहलाता है। इसी हाइ—वे से 3 किमी दूर ददौरा में यह वट वृक्ष है। यहां से पारिजात वृक्ष की दूरी 13 किलोमीटर तो महाभारतकालीन शिवलिंग वाले मंदिर महादेवा की दूरी महज 9 किमी है।
गांव में खेतों के बीच दिव्य शांति के साथ विराजमान वट वृक्ष के लंबे चौड़े परिसर में दशकों पूर्व इसकी देखभाल करने वाले बाबा रतन पांडेय की समाधि भी बनी है। हर साल यहां लगने वाले मेले में अपनी मनौतियां लेकर लोग जुटते हैं। इसके पल्लव के दूध का प्रयोग नेत्र विकारों को दूर करने के लिए किया जाता है। फिलहाल यह अभी भी आकार बढ़ा रहा है। इसकी शाखाओं से निकलने वाली बहुआ (बरोह या प्रॉप) जमीन को लटक कर स्पर्श करती हैं। इसी तरह स्तम्भों का रूप लेकर आगे बढ़ती रहती हैं। इसके आंगन में चीटियों की बाम्बी है।
जंगली पौधे लगे है। वही आम, बड़हल के पेड़ लगे हैं। बताते हैं कि रात में कोई भी पक्षी इस पर बसेरा नहीं करता। लोगों की आस्था का केंद्र बने इस वट वृक्ष के संरक्षण के लिए पूर्व प्रधान स्व राम प्रकाश तिवारी ने पहल की थी। उस समय मुख्य विकास अधिकारी ने शासन को पत्र लिखा था। मगर कुछ नहीं हुआ।