जितेंद्र कुमार
दोपहर से सोशल मीडिया पर यह बात काफी चर्चा में है कि तोड़ी गई बाबरी मस्जिद के बदले, जहां नया बाबरी मस्जिद बनाए जाने की जमीन दी गई है वहां मस्जिद न बनाकर एआईआईएमएस-एम्स जैसा अस्पताल बनाया जाएगा.
सबसे पहले तो मुझे यह समझ में नहीं आया कि वह खैराती जमीन ली क्यों गई. खैर आज थोड़ा संतोष हुआ कि वहां अस्पताल बनेगा. लेकिन इसपर ढ़ेर सारे लिबरल सवर्ण हिन्दुओं ने सलाह देनी शुरू कर दी है कि अस्पताल का नाम डॉक्टर कलाम या शहीद हमीद के नाम पर रखा जाना चाहिए.
वैसे मेरा एक सुझाव है (माफी सहित, वैसे मैं इसमें सलाह देने वाला होता कोई हूं- फिर भी). वहां बेहतरीन अस्पताल ही बने. सबका मुफ्त इलाज हो, गरीबों को इलाज में प्राथमिकता दी जाए लेकिन उस अस्पताल का नाम हर हार में बाबरी मस्जिद अस्पताल ही हो.
देश की जनता को यह बार-बार याद दिलाए जाते रहना चाहिए कि जहां राममंदिर का मंदिर बना है उस जगह पर बहुसंख्य अतिवादी हिन्दूओं ने साजिशन कब्जा कर लिया थाः जिसमें सरकार के चारों अंगों ने भूमिका निभाई थी. और सबसे बड़ी भूमिका न्यायपालिका की थी.
वे वही लिबरल सवर्ण या सवर्ण सोच वाले हिन्दू हैं जो यहां मुसलमानों को प्रवचन देते हैं दूसरी तरफ दलितो-पिछड़ों पर हो रहे अत्याचार को तकदीर या नियति कहकर सही ठहराते हैं और एक बार भी दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के उपर हो रहे अत्याचार के लिए मुंह नहीं खोलते हैं. एक बार फिर उन्हें ज्ञान बांचने का अवसर मिल गया है!
अस्पताल का नाम सिर्फ और सिर्फ बाबरी मस्जिद अस्पताल हो!