हाथरस केस पर स्पेशल रिपोर्ट : सामूहिक बलात्कार एव निर्मम हत्या तो हुई है किन्तु--?

आखिर ऐसा क्या था जो पुलिस छुपाना चाहती थी? और किसके इशारे पर किया गया?

Update: 2020-10-10 03:08 GMT

डॉ0वी0के0सिंह (खोजी पत्रकार)

उत्तर प्रदेश। हाथरस। बहुचर्चित हाथरस सामूहिक बलात्कार एव हत्या मामले में युवती का बलात्कार हुआ है या नहीं हुआ कहना मुश्किल है, यह पूर्णतयः जाँच का विषय है किन्तु, उक्त समूचे प्रकरण में देश के संविधान एव कानून का सामूहिक बलात्कार एव निर्मम हत्या तो जरूर हुई है, और कानून एवं संविधान का बलात्कार करने, एव निर्मम हत्या करने वाले, पीड़ित युवती की हत्या एव सामूहिक बलात्कार के आरोपी चार लड़के नहीं है बल्कि, कानून एवं संविधान के हत्यारे व बलात्कारी हाथरस का स्थानीय जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन रहा है।

अब समूचे प्रकरण में सूत्रों से प्राप्त जानकारी एव प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर तथा मृतक के भाई सतेंद्र के द्वारा थाने में दी गयी लिखित तहरीर से ज्ञात हुआ कि, दिनाँक 14 सितम्बर 20 की सुबह घायलावस्था में (19) वर्षीय किशोरी बाजरा के खेत मे पायी गयी। उक्त प्रकरण में मृतक पीड़ित युवती के भाई सतेंद्र द्वारा दी गयी लिखित तहरीर में कहा गया कि, वह घटना के समय वह खेत से घाँस लेकर घर चला आया था जबकि, उसकी बहन बाजरे के खेत मे घाँस काट रही थी तथा माँ वहीं कुछ दूरी पर घाँस काट रही थी कि, तभी मुख्य आरोपी संदीप ने जान से मारने की नीयत से उसकी बहन का गला दबाया किन्तु, उसकी बहन के चिल्लाने एव प्रतियुत्तर में माँ के आवाज देने पर भाग निकला अर्थात लिखित तहरीर में गैंग रेप जैसी घटना का जिक्र नहीं किया गया फिर उक्त पीड़िता की गर्दन किसने तोड़ी? जीभ किसने काटी?

अगर ये सामूहिक बलात्कार जैसा कुकृत्य आरोपी चार लड़कों ने किया था तो फिर, लिखित तहरीर में जिक्र क्यों नहीं किया गया? बहराल, उक्त समूचे प्रकरण में स्थानीय पुलिस प्रशासन ने त्वरित घटना का संज्ञान लेते हुये समय रहते बलात्कार के मामले का चिकित्सीय परीक्षण क्यों नहीं करवाया? इतना ही नहीं, 29 सितम्बर 20 को युवती की जीवन लीला समाप्त हो जाती है, तथा जीवन के अंतिम क्षणों में पीड़िता बयान देती है कि, उसके साथ दो लड़कों ने बलात्कार किया है, जिसके बाद समूची मीडिया जगत में भूचाल आ जाता है, और राष्ट्रीय मीडिया पीड़ित के गाँव की ओर रुख करती है जबकि, स्थानीय पुलिस प्रशासन आनन फानन में युवती का शव मिट्टी का तेल, डीजल एव पेट्रोल छिड़क कर जला देती है, पीड़ित युवती को पुलिस द्वारा अमानवीय तरीके से, डीजल छिडक कर, परिवार की सहमति के बिना जला देना, मानवीय संवेदनहीनता को ही नहीं दर्शाता है बल्कि, जल्दी में कुछ तो छुपाने का प्रयास किया गया, आखिर ऐसा क्या था जो पुलिस छुपाना चाहती थी? और किसके इशारे पर किया गया?

इतना ही नहीं एडीजी, प्रशान्त कुमार का गैर जिम्मेदाराना बयान तथा बलात्कार की परिभाषा ही बदलने का प्रयास करना, जिलाधिकारी का पीड़ित परिवार को धमकाना, एसआईटी टीम के जाँच के बहाने दो दिनों तक मीडिया को घटना स्थल पर जाने एव पीड़ित परिवार से मिलने से रोकना, वास्तविक तथ्यों एव साक्ष्यों को छुपाने का प्रयास मात्र ही था। सम्पूर्ण घटनाक्रम में पीड़ित परिवार ही नहीं अपितु पुलिस एव स्थानीय जिला प्रशासन की भूमिका संदिग्ध है, बहराल सामूहिक बलात्कार एव हत्या तो जरूर हुई है किन्तु, बलात्कार देश के कानून का हुआ है, बलात्कार देश के संविधान का हुआ है और हत्या भी, हमारे देश का कानून जो, प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा की गारन्टी है, तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 की हत्या कर, पीड़ित युवती से सम्मान के साथ जीने का ही नहीं अपितु मरने का भी अधिकार भी छीन लिया, तथा सरकार को भी कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया।

खैर, ये तो उत्तर प्रदेश पुलिस का चाल चरित्र और चेहरा रहा है, ये तो उत्तर प्रदेश पुलिस की काबलियत रही है, कि स्वयं मुजरिम बनाना एव स्वः उत्त्पत्ति मुजरिम से जब स्वयं का अस्तित्व खतरे में हो तो, स्वः अस्तित्व को बचाने के लिए, संविधान एव कानून की हत्या कर, मुजरिम ही नहीं उससे जुड़े सभी साक्ष्य ही नष्ट कर दो, स्वः निर्मित दुर्दांत अपराधी विकास दुबे प्रकरण में भी, विकास दुबे को टाटा सफारी में बैठाकर टीयूवी 300 पलटाकर, एनकाउन्टर में ढ़ेरकर सारे सबूतों को नष्टकर खाकी एव खादी में छुपे तमाम घिनौने चेहरों को उजागर होने से बचाया गया था, ऐसे में न्यायप्रणाली में निष्पक्ष न्याय की उम्मीद करना बेईमानी ही होगी, बहराल, हाथरस प्रकरण न्यायपालिका की निगरानी चल रही जाँच में दोनों ही पक्षों को न्याय मिलने की सम्भावनाये प्रबल होती नजर आ रहीं है।

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