Atala Masjid Jaunpur: अटाला मस्जिद का अटल सत्य जानते है आप, नहीं तो जान लीजिए!
अटाला मस्जिद जौनपुर का निर्माण किसने कराया
डॉ मनोज मिश्रा
आजकल अपना जौनपुर भी मीडिया में अटाला मसजिद को लेकर सुर्खियों में है।आन कैमरा - आफ कैमरा,बातें खूब हो रही हैं लेकिन शर्की राजवंश के शासक इब्राहिम शाह शर्की द्वारा 1408 ईस्वी में पूर्ण की गई अटाला मसजिद पर तथ्यात्मक और साक्ष्य आधारित बातें नहीं हो रही हैं। सोशल मीडिया में एक लिस्ट भी तैर रही है, जिनमें 10 मस्जिदों का जिक्र है और दावा किया जा रहा है कि इन मस्जिदों का निर्माण मंदिर तोड़कर किया गया था। इस लिस्ट को कभी शिया वक़्फ बोर्ड के अध्यक्ष रहे जितेंद्र नारायण त्यागी उर्फ सैयद वसीम रिजवी ने तैयार किया था। लिस्ट में जौनपुर की अटाला मस्जिद का भी नाम है।
अटाला मस्जिद की पुरातनता को लेकर कई मित्रों ने मुझसे आग्रह किया इस पर एक तथ्य पूर्ण लेख आप द्वारा प्रस्तुत किया जाए। जहां तक अटाला मसजिद की ऐतिहासिकता को लेकर सवाल है इस पर जौनपुर में सबसे प्रमाणिक पुस्तक जौनपुर के प्रमुख विद्वान लेखक सय्यद एकबाल अहमद जौनपुरी की कृति "शर्की राज्य जौनपुर का इतिहास" है जिसका उर्दू से हिंदी रूपांतरण सन 1968 में हुआ। इस कृति के उर्दू संस्करण की प्रशंसा महामहिम राष्ट्रपति डॉ जाकिर हुसैन जी नें तथा 1966 में उत्तर प्रदेश सरकार नें भी इसके उर्दू संस्करण पर रूपये 500 की इनाम राशि देकर लेखक को सम्मानित किया था । यह पुस्तक निर्विवाद रूप से शर्की राजवंश में जौनपुर की समुन्नत स्थिति का समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत करती है।
मेरा आलेख इस पुस्तक को आधार बनाते हुए कतिपय अन्य संकेतक साक्ष्यों के आधार पर अटाला मस्जिद की पुरातनता को मेरे द्वारा लिपिबद्ध करने का प्रयास किया गया है जो आज दैनिक भास्कर के सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित है।
महाभारत में वर्णित है कि-
इतिहासप्रदीपेन मोहावरणघातिना ।
लोकगर्भगृहं कृत्स्नं यथावत् सम्प्रकाशितम् ॥
(इतिहास एक जाज्वल्यमान दीपक है। यह मोहका अन्धकार मिटाकर लोगोंके अन्तःकरण-रूप सम्पूर्ण अन्तरंग गृह को भलीभाँति ज्ञानालोकसे प्रकाशित कर देता है ॥)
मोह का आवरण सभी समस्याओं की जननी है। इतिहास का भी यही शाब्दिक अर्थ है कि ऐसा ही था । इतिहास संकलन तथ्यों पर आधारित होता है। इतिहास की स्थापना में सदैव साहित्यिक-पुरातात्विक और विदेशी यात्रियों के विवरणों को शामिल किया गया है। बगैर संकेतक साक्ष्यों के इतिहास की स्थापना नही की जा सकती।
अटाला देवी मंदिर को ध्वस्त कर यहां इब्राहिम शाह द्वारा मसजिद बनाए जाने का उल्लेख जौनपुर नामा में मिलता है जिसके लेखक इतिवेत्ता मौलवी खैरुद्दीन जी हैं। यह पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 1833 में हुआ जिसकी भाषा फ़ारसी है।दूसरा साहित्यिक संदर्भ तजल्लिये नूर है जो कि साहित्यकार, इतिवेत्ता मौलवी नूरुद्दीन जैदी,द्वारा लिखित है और उसका प्रकाशन वर्ष 1905 है तथा यह पुस्तक भी फ़ारसी भाषा में लिखी गई है। इस संबंध में तीसरा साक्ष्य भूगोल जौनपुर भाग 1 है जो वर्ष 1872 में प्रकाशित हुआ था।
आज से 54 साल पहले सन 1968 में जौनपुर के प्रमुख विद्वान लेखक सय्यद एकबाल अहमद जौनपुरी ने "शर्की राज्य जौनपुर का इतिहास" नामक ग्रंथ लिखा और शर्की राजवंश में जौनपुर की समुन्नत स्थिति का समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। जौनपुर के अतीत से रूबरू कराती यह एक महत्वपूर्ण कृति है। संदर्भित पुस्तक में भी अटाला मस्जिद के निर्माण के बारे में भी उन्होनें विस्तृत वर्णन किया गया है। सय्यद एकबाल अहमद जौनपुरी ने लिखा है कि अटाला मसजिद का निर्माण 1408 ईस्वी में इब्राहिम शाह शर्की ने कराया परन्तु उसकी नींव फ़िरोज शाह तुगलक ने 1363 ईस्वी या उसके उपरांत डाली थी।मगर ख्वाजा जहां, खानजहां और फतह खान के देश का शासन प्रबंध छिन्न-भिन्न हो गया था,चारो ओर विद्रोह शुरू था इन्ही सब कारणों के चलते फिरोज शाह ने निर्माण कार्य स्थगित कर दिया था।1390 ईस्वी में फिरोज शाह का देहांत हो गया।बाद में तुगलक राजकुमारों के आपसी संघर्ष के चलते यह मसजिद निर्माण नही हो सका और अंततः इस मसजिद का निर्माण इब्राहिम शाह शर्की द्वारा 1408 ईस्वी में पूरा किया गया।
सय्यद एकबाल अहमद जौनपुरी ने अपनी कृति "शर्की राज्य जौनपुर का इतिहास"में इन्हीं पुस्तकों को आधार बना कर विस्तृत विवेचन का प्रयास किया है।इन संदर्भित पुस्तकों में यह लिखा गया है कि प्राचीन काल मे यह(अटाला मसजिद) स्थल मूर्तिगृह था जिसे देवल अटाला कहते थे। यद्यपि अपने निष्कर्ष में सय्यद एकबाल अहमद जौनपुरी ने अपने पूर्ववर्ती विद्वानों की अवधारणा को भ्रामक बताने का प्रयास किया है तथापि बगैर किसी ठोस अन्य संकेतक साक्ष्य के पूर्ववर्ती विद्वानों के अभिमत को खारिज नही किया जा सकता।
ए डिक्शनरी ऑफ इंडियन हिस्ट्री में सच्चिदानंद भट्टाचार्य ने प्रख्यात इतिहासकार ए. फूहरर "शर्की आर्किटेक्चर ऑफ जौनपुर" के हवाले से लिखा है कि अटाला मसजिद को जौनपुर में शर्की राजवंश के इब्राहिम शाह (1402-38ई.) ने 1408 ईस्वी में बनवाई। यह इमारत जौनपुर वास्तुकला का उत्तम नमूना है।इसमें मीनारें नहीं हैं जो सामान्यरूप से मसजिदों में होती हैं।
वृहत हिंदी कोष के अनुसार अटाला का अर्थ होता है महल। पूर्ववर्ती विद्वानों के उद्धरणों से इस बात को बल मिलता है कि इसी महल में देवी की स्थापना हुई थी जिसे अटाला देवी के नाम से जाना गया।
गोस्वामी तुलसी दास जी ने वेदमत के साथ लोकमत को भी उतनी ही महत्ता दी है। यदि जनश्रुति या लोकमत में हम चलें तो जौनपुर जनपद के ही विकासखंड बख्शा में एक गांव है सुजियामऊ । यह गांव जिला मुख्यालय से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर लखनऊ राजमार्ग के समीप स्थित है। बतातें है कि 1408 ईस्वी में अटाला देवी मंदिर के विध्वंस किये जाने पर देवी जी की मूर्ति को पुजारी द्वारा छुपते- छुपाते यहां तक लाया गया था। एकांत स्थल,एक भव्य सरोवर और विशाल बाग देख कर, पुजारी द्वारा या साथ में आए पुराने शहर के बासिंदों द्वारा एक पाकड़ के पेड़ के पास मूर्ति को रख दिया गया जहां कालांतर में विविध धार्मिक अनुष्ठान के साथ अटाला देवी के नाम को छुपाते हुए उस मूर्ति को काली माता के रूप में स्थापना की गई और कालांतर में वहां एक भव्य मंदिर स्थापित किया गया । इस गांव के निवासी यही कहते हैं कि हमारे पूर्वज यही कहते आ रहे हैं कि यही अटाला देवी हैं। इसके प्रमाण में वह बताते हैं कि परंपरागत रूप से सैकड़ों वर्षों से जौनपुर शहर के हनुमानघाट, बुलआ घाट, तड़तला, टिकुली, पानदरीबा, प्रेमराजपुर, शेषपुरा आदि मुहल्लों के वासी परम्परागत रूप से अपनी कुलदेवी के मंदिर में प्रति वर्ष आकर दर्शन करते हैं और सावन माह में परिवार में सुख शांति के लिए कड़ाही चढ़ाते हैं। इस तथ्य की पड़ताल सावन महीने में किसी सोमवार या शुक्रवार को सुजियामऊ आकर कोई भी कर सकता है।
जौनपुर में मलिक सरवर से लेकर शर्की बंधुओं ने 1389 से 1479 ईस्वी तक जौनपुर में स्वतंत्र राज किया। शर्की काल खंड में जौनपुर को सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत उपलब्धि हासिल हुई। इस राजवंश के आश्रय में बहुत सारे विद्वान थे। जिन पर शर्की वंश कि कृपा रही । कीर्तिलता के रचनाकार विद्यापति को भी इसी काल का राज्याश्रित कवि कहा गया है। तत्कालीन समय में अनेक महान ग्रंथों की रचना की गयी।उसी समय में जौनपुर में कला -स्थापत्य में एक नयी मिश्रित शैली का जन्म हुआ जिसे जौनपुर शैली अथवा शर्की शैली कहा गया।जिसे गंगा-यमुनी तहजीब का अनुपम उदाहरण कहा जाता है।कला -स्थापत्य के इस मिश्रित शैली का निदर्शन यहाँ पर आज भी जामा मसजिद और अन्य मस्जिदों में दिखता है । इतिहास का यह भी तथ्य है कि शर्की राजवंश के समय जौनपुर शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र था। इसी समय कई रागों की रचना हुई जिसमें से राग जौनपुरी की सुगंध चहुँओर फैली।यही समय था जब जौनपुर को शिराज़े हिंद कहा गया।शिराज का तात्पर्य श्रेष्ठता से होता है। यह शर्की राजवंश के स्वर्णिम पक्ष हैं। परन्तु कतिपय साक्ष्य इस बात को भी स्पष्ट करते हैं कि इसी राजवंश में इब्राहिम शाह शर्की द्वारा अटाला देवी मंदिर का ध्वंस कर अटाला मसजिद बनाई गई। इतिहासकार डॉ मोतीचंद की पुस्तक काशी का इतिहास में जौनपुर शर्की राजवंश के शासक महमूद शर्की का जिक्र है जिसने 1436 से 1458 तक अपने शासन काल के दौरान बनारस के मंदिरों को ध्वस्त करना शुरू किया था जिसमे काशी विश्वनाथ मंदिर को भी छति पहुचाये जाने की चर्चा की गई है। ऐसे में इन उद्धरणों से स्पष्ट है शर्की राजवंश में धार्मिक सहिष्णुता नही थी।
प्रख्यात इतिहासकार प्रोफेसर आशीर्वादी लाल ने अपनी चर्चित कृति "दिल्ली सल्तनत" में लिखा है कि जौनपुर की मस्जिदें जिनको मंदिर तोड़कर बनाया गया है, उनमें मीनार नहीं है।शर्की निर्माण कला का एक ज्वलंत प्रमाण अटाला देवी मस्जिद है।
तजल्लिये नूर में मौलवी नूरुद्दीन जैदी द्वारा यह लिखा गया है कि जौनपुर किले के निर्माण के समय ही फिरोज शाह की नज़र अटाला मंदिर पर पड़ी और उसे ध्वस्त करने का आदेश दिया जो पूर्णतया इब्राहिम शाह शर्की के समय मे ध्वस्त हुई। इन उद्धरणों से भी स्पष्ट है कि अटाला देवी का मंदिर था,जिसे ध्वस्त किया गया।
प्रख्यात इतिवेत्ता कल्हण ने अपने महान ग्रंथ राजतरंगिणी में लिखा है कि इतिवृत्त के लेखक को राग-द्वेष से परे होकर इतिहास लेखन करना चाहिए।
इसी भाव से को धारण करने वाले प्रख्यात विद्वान मौलवी खैरुद्दीन जी ने अपनी कृति जौनपुर नामा 1833 तथा इतिवेत्ता मौलवी नूरुद्दीन जैदी ने तजल्लिये नूर 1905 में लिखित अपनी कृतियों में इस तथ्य का उल्लेख किया है कि अटाला मंदिर को ध्वस्त कर मसजिद निर्माण किया गया। यह विद्वान लेखक चाहते तो इस तथ्य को अपनी लेखनी से हटा सकते थे।लेकिन इतिवृत्त लेखन को यथावत स्वरूप देकर इन महान लेखकों ने जौनपुर के प्राचीन इतिहास को मरने नही दिया।
शर्की राज्य जौनपुर का इतिहास, लेखक- सय्यद एकबाल अहमद जौनपुरी,वर्ष 1968, पृष्ठ 367-370 में वर्णित है कि-
- प्राचीन काल में यह मूर्ति गृह था। इसके प्रत्येक पत्थर पर मूर्ति बनी थी। यही कारण है कि इसको देवल अटाला कहते हैं। कुछ लोगों का कथन है कि इस देवल को जफराबाद के राजा जयचंद ने संवत 1416 विक्रमी में निर्माण किया था और अटल देवी नामक मूर्ति इसी में रखी थी। इसी कारण से इस देवल का नाम अटाला हुआ । (जौनपुर नामा, मौलवी खैरूद्दीन, 1835 ईस्वी, फारसी द्वितीय संस्करण, पृष्ठ संख्या 42)
--इसका नाम अटल देवी था ,जिसको राजा विजय चंद ने 1159 ईस्वी में निर्माण किया था। जब फिरोज शाह किले का निर्माण करा रहा था तो एक दिन उसने अटल देवी के मंदिर को देखा और उसे तोड़ने का आदेश दिया। उसी समय सहस्त्रों मजदूर तोड़फोड़ में लग गए। जब यह समाचार निकटवर्ती स्थानों के हिंदू निवासियों को ज्ञात हुआ तो वह अधिक संख्या में इधर -उधर से आकर एकत्रित हो गए और ढेलों की वर्षा आरंभ कर दी। तोड़-फोड़ करने वाले विवश होकर जफराबाद फिरोजशाह के पास गए और पूर्ण घटना कह सुनाई। बादशाह की ओर से एक बड़ी सेना उनके दमन हेतु आई जिसने सशस्त्र व्यक्तियों को कत्ल कर दिया।इस पर भी लोग नहीं माने अंत में बादशाह ने कत्ल बंद करने का आदेश दिया और एक लिखित प्रतिज्ञा पत्र भी हिंदुओं को दिया, जिसमें लिखा कि जहां तक मंदिर टूट चुका है उस पर मस्जिद बनेगी और जो शेष है मंदिर ही बना रहेगा। इस पर सब हिंदू मान गए। बादशाह ने ख्वाजा कमाल जहां को मस्जिद के निर्माण का कार्य सौंप दिया, मगर इब्राहिम शाह शर्की के शासनकाल में सिर्फ मंदिर ध्वस्त करके इस मस्जिद का निर्माण किया गया जो 1408 ईस्वी में पूर्णतया निर्मित हुई। (तजल्लिये नूर, मौलवी नूरुद्दीन जैदी,मई 1905 ईस्वी )
-- अटाला मस्जिद किले से उत्तर पूर्व दिशा में स्थित है। यह अटाला देवी के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, जिसका निर्माण कन्नौज के राजा जयचंद ने कराया था। (गजेटियर जौनपुर)
--मौलवी नजीरूद्दीन तारीखे जौनपुर में लिखते हैं कि प्राचीन काल में एक विराट मूर्ति गृह था जिसकी प्रत्येक दीवारों तथा द्वारों पर मूर्तियां निर्मित थी। कुछ प्राचीन व्यक्तियों का कथन है कि इस देवल को जफराबाद के राजा जयचंद ने संवत 1416 विक्रमी में निर्माण किया था,तथा इसी में अटल देवी की मूर्ति रखी। यही कारण है कि इसे अटाला कहते हैं।
--खान बहादुर मौलवी फसीहुद्दीन जिलाधीश ने शर्की मानूमेन्ट 1923 ईस्वी में लिखा है कि जब फिरोज तुगलक तुगलक ने सन 1360 ईस्वी में किला निर्माण कराया तो एक दिन उसकी दृष्टि अटाला देवी के मंदिर पर पड़ी।लोगों का कथन है कि सुल्तान ने कहा कि वह उसे अवश्य ध्वस्त करेगा। उसके दरबारी खान जहां ने तुरंत मस्जिद का निर्माण कार्य प्रारंभ कर दिया। इस मंदिर को सर्वप्रथम कन्नौज के राजा जयचंद ने संवत 1216 विक्रमी अर्थात 1159 में निर्माण कराया था।