बख्शिश का महीना है रमज़ान- शहर क़ाज़ी

Update: 2021-04-15 12:34 GMT

कौशाम्बी शहर क़ाज़ी हज़रत मुफ़्ती खुशनूद आलम एहसानी ने कंजुल उम्माल किताबुस सौम हदीस नम्बर 23802 भाग 8 पृष्ठ संख्या 219 के हवाले से बताया कि रसूलुल्लाह सलल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया की जब रमज़ान की पहली रात होती है अल्लाह पाक अपनी मख़लूक़ (दुनिया)की तरफ नज़र फरमाता है और जब अल्लाह तआला किसी बन्दा की तरफ नज़र फरमाए तो उसे कभी अज़ाब न देगा और हर दिन दस लाख को जहन्नम से आज़ाद करता है और जब 29वीं रात होती है तो महीने में जितने आज़ाद किये उन सब के बराबर उस रात में आज़ाद करता है फिर जब ईद उल फितर की रात आती है मलाइका फरिश्ते खुशी करते हैं और अल्लाह पाक अपने नूर की खास तजल्ली फरमाता है और फरिश्तों से फरमाता है ऐ फरिश्तों उस मज़दूर का क्या बदला है जिसने काम पूरा कर लिया फरिश्ते अर्ज़ करते हैं उसको पूरा अजर सवाब दिया जाए अल्लह पाक फरमाता है मैं तुम्हे गवाह करता हूँ कि मैंने उन सब को बख्स दिया!

शहर काजी ने बताया कि जमीन और आसमान और उसकी सारी चीजें रोजादार के लिए मगफिरत की दुआएं करती हैं।रमजान का महीना आने पर हर मुसलमान आकिल बालिग पर उसके रोजे रखना फर्ज है । कुरआन मे है. ''तुम में जो व्यक्ति इस महीने को पाए तो चाहिए कि उसके रोजे रखे ।इस आयत में रोजे की फजीलत (महत्व)का बयान है मगर इस जगह कुछ बातें गौर करने की हैं रमजान शरीफ क्यों आता है ?इसलिए कि मुसलमानों को गुनाहों से पाक करे इसीलिए उसको रमजान कहते हैं जिसका अर्थ है करम कृपा करने वाला और जलाने वाला इसलिए कि रमज़ान गुनाहों को जला दिया करता है इसीलिए इसको रमज़ान कहते हैं ।

एक बार हजरत जिब्रील(फरिश्तो के सरदार) हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के पास आए और जिस वक्त हुजूर ने अपना कदम मिम्बर की पहली सीढ़ी पर रखा तो फरमाया आमीन दूसरी सीढ़ी पर रखा तो फरमाया आमीन इसी तरह तीसरी सीढ़ी पर फरमाया आमीन साहाबा(मोहम्मद साहब के मानने वालों) ने कहा ऐ अल्लाह के पैगम्बर आपने आमीन किस बात पर कहा तो आपने कहा कि हज़रत जिब्रील ने 3 दुआएं फरमाइं १,जो हुजूर का नाम पाक सुने और दुरुद ना पढ़े वह हिलाक हो जाए २, जो वालेदैन (मां बाप)का बुढ़ापा पाए और जन्नत ना हासिल करे(यानी उनकी सेवा न करे) वह हिलाक हो जाए ३, और जो रमजान को पाए और जन्नत न ख़रीदे (यानी रोज़ा न रखे) वह हिलाक हो जाए साहब कहते हैं हम ने भी कहा आमीन ।

ध्यान देने की बात यहां पर ये है :

हजरत जिब्रील दुआ करने के लिए सिदरा (आसमानी दुनिया)छोड़कर यहां (ज़मीन पर)क्यों आए ? और हुजूर से आमीन क्यों कहलवाया ? वह इसलिए कि वह मदीना मुनव्वरा (मोहम्मद साहब के शहर)को सिदरा से अफजल(बड़ा) जानते थे और उनका अकीदा(विश्वास) है कि दुआ वहीं कुबूल है जिस पर आमीन मोहम्मद साहब कह दें।रोजा क्यों फर्ज (ज़रूरी)किया गया ?इसमें अनेक फायदे हैं पहला तो हर चीज की जकात है तंदुरुस्ती की जकात बीमारी है माल की जकात सदका(दान करना) है और ज़कात से हर चीज में बरकत होती है इसीलिए रमजान में रिज्क(रोज़ी) में बरकत होती है और रोजा बहुत से शिकमी अमराज़ (पेट की बीमारियों)का इलाज है और भूके कि कदर वही जानता है जिसको कभी भूखा रहना पड़ा हो । इसलिए मुसलमानों पर रोजा फर्ज किया गया कि अगर किसी भूखे को देखें तो अपनी रोजे वाली भूख याद करके उसकी इमदाद करें ।

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