देशभर में रामलीला का मंचन हो रहा है. बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक के रूप में दशहरे के दिन रावण का वध किया जाता है. मगर, पीलीभीत के बीसलपुर की रामलीला में रावण दशहरे के दिन नहीं मरता है. रावण का वध दशहरे के अलगे दिन किया जाता है. इसमें भी खास बात यह है कि अगले दिन यदि शनिवार पड़ेगा, तो रावण का वध एक और दिन के लिए टाल दिया जाएगा.
ऐसा करने के पीछे लंबी कहानी है. बीसलपुर की रामलीला को सच्ची रामलीला के नाम से भी जाना जाता है. दरअसल, यहां रामलीला के कार्यक्रम के दौरान रावण का किरदार निभाने वाले गंगा विष्णु उर्फ कल्लू मल, अक्षय कुमार और गणेश कुमार की मृत्यु राम और रावण के युद्ध के दौरान हुई थी.
तभी से यह परंपरा बन गई कि यहां रावण का वध विजय दशमी के दिन नहीं किया जाएगा. इस रामलीला की एक और खास बात यह है कि यहां रामलीला मंच पर नहीं, खुले ग्राउंड पर होती है. इसलिए इसे सच्ची रामलीला भी कहते हैं.
बीसलपुर के रहने वाले गंगा उर्फ कल्लू मल ने साल 1941 में पहली बार रावण की भूमिका निभाई थी. कल्लू मल की रामलीला के दौरान रावण के वध के समय राम का तीर लगने से मौत हो गई थी. यहां की रामलीला में ऐसा इत्तेफाक तीन बार हो चुका है. कल्लू मल की मौत के बाद से रामलीला ग्राउंड में ही दशानन की एक बड़ी मूर्ति लगा दी गई है. इस पर लिखा गया कि राम के तीर से कल्लू मल बने रावण को मोक्ष प्राप्त हुआ है. कल्लू मल की मृत्यु होने के बाद इसी ग्राउंड पर उनका अंतिम संस्कार किया था. उनकी चिता जलाने के बाद कल्लू मल की अस्थियां और राख लोग उठाकर भाग गए थे. परिवार के लोगों को कल्लू मल की अस्थियां, राख तक नहीं मिल पाई थी.
इस घटना के 46 साल बाद 1987 में दशहरे के दिन रावण वध लीला का मंचन हो रहा था. मैदान दर्शकों से खचाखच भरा हुआ था. डीएम और एसपी भी वहां मौजूद थे. लीला मंचन के दौरान रावण वध के लिए भगवान राम का किरदार निभा रहे पात्र ने रावण वेशधारी गंगा विष्णु पर बाण चलाया. बाण लगते ही गंगा विष्णु जमीन पर गिर पड़े. इसके बाद खड़े नहीं हो सके. काफी देर तक तो लोग यही समझते रहे कि गंगा विष्णु अभिनय कर रहे हैं. जब काफी देर तक वह नहीं उठे, तो उन्हें उठाकर डॉक्टर को दिखाया गया. डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था. तब से ही यह रामलीला सच्ची लीला के नाम से मशहूर हो गई.