शशांक मिश्रा
आज इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय स्थित एस एन घोष सभागार में विशिष्ट अतिथि व्याख्यानमाला के तहत 'आदिवासी :परंपरा,विकास और प्रतिरोध' विषय पर केंद्रीय सांस्कृतिक समिति की ओर से व्याख्यान का आयोजन किया गया,जिसकी अध्यक्षता कुलपति प्रो रतनलाल हांगलू ने की और संचालन श्लेष गौतम ने किया ।
मुख्य अतिथि पद्मश्री अशोक भगत ने विकास भारती, विशुनपुर,गुमला,झारखंड के अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि आदिवासियों को पढ़कर नहीं, देख-सुनकर समझा जा सकता है ,क्योंकि आज़ादी के बाद आदिवासियों को लेकर हुए अध्ययन पर विदेशियों का ज्यादा प्रभाव दिखता है।आदिवासी परंपराओं को नष्ट करने का काम अंग्रेजों ने किया और ज्यादती यह हुई कि संस्कृति रक्षा के नाम पर आदिवासियों को संग्रहालय की वस्तु की तरह पेश किया गया।जबकि आदिवासी संस्कृति विश्व की पहली ऐसी संस्कृति है,जिसमें बौद्धिकता,सहजता और आत्मीयता सबसे अधिक है।
विशिष्ट अतिथि स्वामी रामनरेशाचार्य ने कहा कि आदिवासियों को यथोचित गति नहीं मिल पाई ।विकास की सर्वोत्कृष्टता तभी मानी जायेगी जब इन्हें गति मिले।हक़ीक़त यह है कि आदिवासियों ने अब तक का हक़ स्वतः लड़ कर लिया है।आदिवासी ग्रहण करने के लिए नहीं त्यागने के लिए मशहूर रहे हैं। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कुलपति प्रो रतनलाल हांगलू ने कहा कि भौतिक विकास के कारण आदिवासी -परंपरा प्रभावित हुई है ।कुमार सुरेश सिंह और ब्रह्मदत्त शर्मा ने आदिवासियों के बीच काम कर जो पुस्तकें लिखीं हैं,वे आदिवासी विकास,परंपरा और प्रतिरोध की बेहतर समझ पैदा करती हैं ।आदिवासी संस्कृति का मूल स्वभाव ही प्रतिरोध का है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में शॉल और स्मृति चिन्ह भेंट कर कुलपति ने अतिथियों का अभिनंदन किया ।अतिथियों का स्वागत प्राचार्य डॉ आनंद शंकर सिंह ने किया और धन्यवाद ज्ञापन जन सम्पर्क अधिकारी डॉ चितरंजन कुमार ने किया। कुलगीत संगीत विभाग के विद्यार्थियों ने प्रस्तुत किया ।