'अथ कौशाम्बी पुन: उवाच' विषय पर वेबिनार का होगा आयोजन,कई इतिहासकार लेंगे हिस्सा
शशांक मिश्रा
कौशाम्बी की बूढ़ी धरती एक बार फिर बोलने लगी है। पचास के दशक में कौशाम्बी का उत्खनन एक युवा पुरावेत्ता जी.आर.शर्मा के द्वारा किया गया। जिन्हें कौशाम्बी के लिए दिशा पुराविद् सर मॉर्टिमर ह्वीलर ने दिया था। जिसने कौशाम्बी के माध्यम से उत्तर भारत में पुरातत्व के दल का गठन किया।एक धूप में तपी हुई 'आर्कियोलॉजिस्ट की टीम'।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय तथा प्राचीन इतिहास,संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग को कौशाम्बी के माध्यम से अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर पहचान मिली। इसी कौशाम्बी ने एक लम्बी विद्वत परंपरा को जन्म दिया।जिसने विरासत प्रदान की पुरातत्व और संस्कृति को साथ-साथ चलने की।कौशाम्बी ने देश-विदेश से पुराविदों तथा इतिहासकारों को आकर्षित किया। यह परंपरा अस्सी के दशक तक चलती रही।साथ ही चलते रहे -विवाद,विमर्श और नूतन आयाम।
2020 में प्राचीन इतिहास,संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के वरिष्ठ आचार्य,कॉलेजों के आचार्य,अतिथि प्रवक्ता तथा शोध छात्रों ने कौशाम्बी पर वेबिनार के माध्यम से जुलाई 13,14,15 को इस पहचान के पुनरावलोकन 'नयी मान्यता','नई खोजों','नये आयामों',के साथ करने का प्रयास किया जा रहा है। इस वेबिनार में पुरानी परंपरा,मान्यताओं से प्रश्न पूछे जायेंगें ,कुछ को स्वीकार किया जायेगा,कुछ से ज़िरह होगी- पुरातन उपलब्धियों में ऐसा क्यों सोचा ?इन तमाम बिंदुओं पर गहन चर्चा होगी