वसीम अकरम त्यागी
उन्नाव : उन्नाव के बांगरमऊ में कोरोना कर्फ्यू के दौरान सब्जी का ठेला लगाना एक युवक को भारी पड़ गया। पुलिस ने सब्जी विक्रेता को कर्फ्यू का उल्लंघन करने पर इतना पीटा कि उसकी मौत हो गई। घटना की जानकारी जब स्थानीय लोगों को हुई तो सैकड़ों की संख्या में लोग सड़क पर उतर आए। लोगों ने उन्नाव-लखनऊ हाईवे पर शव रखकर चक्काजाम कर दिया। पांच घंटे तक चले इस हंगामे के बाद एसपी ने आरोपी पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया।
यूपी के उन्नाव के बांगरमऊ थाने की पुलिस पर आरोप है कि उसने लॉकडाउन के दौरान बांगरमऊ कस्बे में सब्जी बेच रहे फैसल पुत्र इस्लाम को थाने ले जा कर इतना पीटा की उस की मौत हो गई। लॉकडाउन का उल्लंघन करने के आरोप में पुलिस फैसल को पकड़ कर कोतवाली ले गई, जहां उसकी बेरहमी से पिटाई की गई। जब फैसल की हालत बिगड़ी तो उसे नज़दीकी स्वास्थय केंद्र ले जाया गया, जहाँ चिकित्सकों ने फैसल मृत घोषित कर दिया।
इस मामले में बांगरमऊ थाने के एक आरक्षी को निलंबित एंव होमगार्ड को नौकरी से अवमुक्त कर दिया गया है। पुलिस की ज़ेरेहिरासत क़त्ल की यह पहली घटना नहीं है और शायद आख़िरी भी नहीं है। ये घटनाएं इतनी बार दोहराई गईं हैं, कि इनका शुमार 'सामान्य' घटनाओं में होने लगा है।
बीते वर्ष इसी तरह की एक घटना अमेरिका में सामने आई थी जहां पुलिस ने जॉर्ज फ्लॉयड नामी शख्स को कस्टडी में क़त्ल कर दिया था। इस घटना का गुस्सा अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में देखने को मिला। अमेरिकी पुलिस के अफसरों ने घुटनों के बल बैठकर जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के लिये माफी मांगी। सवाल है कि क्या ऐसा भारत में भी हो सकता है? क्या भारतीय नागरिकों के अधिकार सत्ता और पुलिस अफसरों के यहां गिरवी रखे हुए हैं?
बांगरमऊ थाने में पुलिस की पिटाई की वजह से हुई फैसल की मौत भले ही 'सामान्य' घटना लग रही हो लेकिन यह सामान्य घटना नहीं है। यह सीधे-सीधे नागरिक अधिकारों पर पुलिस का क्रूरतापूर्वक हमला है। फैसल अपराधी नहीं था, वह देश का एक ग़रीब मजदूर नागरिक था। लेकिन उसके साथ अपराधियों की तरह व्यवहार किया गया, इसी व्यवहार ने उसकी जान ले ली। पुलिस के ज़ेरेहिरासत होने वाली हत्याओं के ख़िलाफ सख्त क़ानून नहीं बने तो इस देश का लोकतंत्र, पुलिसतंत्र में बदल जाएगा।