ऋषिकेश में लक्ष्मण झूले पर आवागमन पर क्यों लगी रोक
पुरातन कथनानुसार भगवान श्रीराम के अनुज भाई लक्ष्मण ने इसी स्थान पर जूट की रस्सियों के सहारे नदी को पार किया था ।
देहरादून। ऋषिकेश से 5 किलोमीटर आगे एक झूला है, इस झूले को लक्ष्मण झूले के नाम से जाना जाता है। लोहे के मज़बूत रस्सों, एंगलों, चद्दरों आदि में बंधा व कसा हुआ लक्ष्मण झूला (पुल) गंगा के प्रवाह से 70 फुट ऊँचा स्थित है। लेकिन अब इस लक्ष्मण झूला सेतु से आवागमन शुक्रवार से बन्द कर दिया गया है। क्योंकि यह पुल काफी पुराना हो गया था। और अब ये एक ओर झुका हुआ नजर आ रहा है।अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने बताया कि यह पुल वर्ष 1924 में निर्मित हुआ था जो वर्तमान में तत्समय के सापेक्ष अप्रत्याशित यातायात वृद्धि के कारण सेतु काफी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। एवं एक ओर को झुका हुआ प्रतीत हो रहा हैं। यातायात घनत्व और अधिक होने के कारण भविष्य में सेतु के क्षतिग्रस्त होने की सम्भावना है। जिसके फलस्वरूप जनहानि की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
डिजाइन टैक स्ट्रक्चरल कन्सलटैंट की आबजर्वेशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि ''हमने देखा कि अधिकांश पुल के पुर्जे और अन्य सामान खराब हो गए हैं और ढहने की स्थिति में हैं। इस पुल को अब से पैदल यात्रियों के आवागमन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। यह अत्यधिक अनुशंसा की जाती है कि इस पुल को तत्काल प्रभाव से बंद किया जाना चाहिए, अन्यथा किसी भी समय कोई भी बड़ा हादसा हो सकता है। अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने कहा इसके फलस्वरूप जनहानि एवं दुर्घटना न हो इस बात को दृष्टिगत रखते हुए लक्ष्मण झूला सेतु को आवागमन के लिए बंद कर दिया गया है।
बतादें कि पुरातन कथनानुसार भगवान श्रीराम के अनुज लक्ष्मण ने इसी स्थान पर जूट की रस्सियों के सहारे नदी को पार किया था। स्वामी विशुदानंद की प्रेरणा से कलकत्ता के सेठ सूरजमल झुहानूबला ने यह पुल सन् 1889 में लोहे के मजबूत तारों से बनवाया, इससे पूर्व जूट की रस्सियों का ही पुल था। एवं रस्सों के इस पुल पर लोगों को छींके में बिठाकर खींचा जाता था। लेकिन लोहे के तारों से बना यह पुल भी 1924 की बाढ़ में बह गया। इसके बाद मजबूत एवं आकर्षक पुल बनाया गया।