66 साल की ममता बनर्जी गुरुवार को विधायक पद की शपथ लेने जा रही हैं। उन्होंने भवानीपुर से BJP की प्रियंका टिबरेवाल को 58 हजार से भी ज्यादा वोटों से हराया है। जीतने के बाद बोलीं, 'भवानीपुर में करीब 46% नॉन बंगाली हैं और इन सभी ने मुझे वोट दिए।'
कॉलेज के दिनों से राजनीति में आने वालीं ममता बनर्जी के सामने तमाम चुनौतियां आईं, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। 1990 में उन पर जानलेवा हमला हुआ। 1993 में पुलिस ने उन्हें पीटा, लेकिन वे हर हमले के बाद पहले से ज्यादा मजबूत हुईं। अब उनका सपना BJP को केंद्र की सत्ता से हटाने का है। इसके लिए वे क्या कर रही हैं, अभी तक उन्होंने क्या किया, पढ़ें इस रिपोर्ट में।
BJP को हटाने के लिए दीदी का प्लान क्या है?
पश्चिम बंगाल की राजनीति पर गहरी पकड़ रखने वाले सीनियर जर्नलिस्ट स्निग्धेंदु भट्टाचार्य के मुताबिक, ममता विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा बनना चाहती हैं। BJP को केंद्र से हटाना उनका सबसे बड़ा लक्ष्य है। इसी के चलते उन्होंने अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया है। वे चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
TMC गोवा, नॉर्थ ईस्ट, असम, त्रिपुरा, मेघालय में अपना संगठन बनाना शुरू कर चुकी है। इन राज्यों में चुनाव लड़ने की तैयारी है। कोशिश ये है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले, इन राज्यों में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई जाए, जिससे देश को यह मैसेज मिले कि TMC बंगाल के बाहर भी ताकत रखती है।
ममता अपना फोकस बंगाल पर बनाए रखना चाहती हैं। इसी कारण बाहर का काम अभिषेक को दिया गया है। वे 2024 के लोकसभा चुनाव में बंगाल में BJP को जीरो पर लाना चाहती हैं। अभी BJP के बंगाल में 17 सांसद हैं। भवानीपुर में जीत के बाद ममता ने कहा कि 46% नॉन बंगाली ने उन्हें वोट दिया। इसके जरिए कहीं न कहीं ये मैसेज भी देने की कोशिश है कि बंगाली हों चाहे नॉन बंगाली, सभी उन्हें पसंद करते हैं।
बंगाल के सीनियर जर्नलिस्ट श्यामलेंदु मित्रा कहते हैं, 2024 में TMC का रोल कितना बड़ा होगा, ये 2023 तक स्पष्ट हो जाएगा। जिन राज्यों में TMC चुनाव लड़ने जा रही है, वहां के नतीजे उसका भविष्य काफी हद तक तय करेंगे।
धर्म को बंगाल की राजनीति में लाने वाली ममता ही हैं, 2019 के बाद उन्होंने सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति भी शुरू की
भट्टाचार्य के मुताबिक, धर्म को बंगाल की राजनीति में लाने का काम ममता बनर्जी ने ही किया। 34 साल के वामपंथ शासन में धर्म का बंगाल की राजनीति में कोई रोल नहीं था। 2008-09 में ममता ने पहले मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति शुरू की, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। BJP ने 42 में से 18 सीटें जीत लीं। इसके बाद ममता ने सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति भी शुरू कर दी।
ममता ने धार्मिक स्थानों पर बहुत खर्च किया। फिर चाहें वो मुस्लिमों के हों या हिंदुओं के हों। मंदिरों का जीर्णोद्धार किया गया। दुर्गा पूजा में पहले जहां सिर्फ सेलिब्रिटी शिरकत करते थे वहीं ममता ने इसे पूरी तरह से बदलकर रख दिया। दुर्गा पूजा का सबसे बड़ा हाइलाइट वे खुद बन गईं।
दीदी को मुस्लिम कम्युनिटी का भरपूर समर्थन मिला
सच्चर कमेटी की रिपोर्ट (2006 में आई इस रिपोर्ट में भारत में मुसलमानों की दयनीय स्थिति के बारे में बताया गया था। बंगाल में उन्हें बहुत पिछड़ा बताया गया था।) के बाद बंगाल में सत्तासीन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी CPM से मुस्लिम वोट दूर हो गया।
इसी समय को ममता ने भुनाया। मुस्लिम कम्युनिटी ने भी ममता के विरोध प्रदर्शनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। जमीन अधिगृहण को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन में ममता का समर्थन किया। फिर ममता ने मुस्लिमों को एक कम्युनिटी के तौर पर एड्रेस करना शुरू कर दिया और हिंदुओं को भी एक कम्युनिटी की तरह ही एड्रेस करने लगीं।
2019 के बाद से उन्होंने सॉफ्ट हिंदुत्व को अपनाया। अब वे अल्पसंख्यकों को प्रोटेक्ट भी कर रही हैं और बहुसंख्यक को लुभा भी रही हैं। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि अब ममता सॉफ्ट हिंदुत्व की पॉलिटिक्स कर रही हैं।
हमलों से हमेशा मजबूत हुईं ममता
6 अगस्त 1990 को CPI (M) के गुंडे लालू आलम ने ममता बनर्जी पर जानलेवा हमला किया था। तब वे यूथ कांग्रेस की लीडर थीं। उस घटना के बाद ममता कांग्रेस की फायर ब्रांड नेता के रूप में उभरीं। फिर 1993 में तत्कालीन CM ज्योति बसु के सामने ही ममता को राइटर्स बिल्डिंग के सामने घसीटकर बाहर कर दिया गया था। इससे वो फिर हर जगह चर्चा में आ गईं।
2006-07 में नंदीग्राम-सिंगूर आंदोलन के वक्त भी उन पर हमला करने की कोशिश हुई, नतीजा ये हुआ कि वो 2011 में सरकार में आ गईं। 2021 के चुनाव में उन्होंने दावा किया कि, कुछ लोगों ने उन पर हमला किया। उन्होंने व्हीलचेयर पर प्रचार किया था। TMC ने 294 में से 211 सीटें जीतीं।