ममता जी! आगे गली बंद है!
पीएम बनने की लालसा होना कोई बुरी बात नहीं है. लेकिन वे जिस तरह के अभियान में जुट गई हैं, वो उनकी नीयत पर भी गंभीर सवाल खड़ा कर रहा है.
पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी एक बार फिर खास सुर्ख़ियों में हैं. लेकिन नितांत गलत कारणों से. वे मोदी एंड कंपनी को शिकस्त देने के लिए कॉंग्रेस मुक्त विपक्षी गोल बंदी के लिए निकली हैं. यहां तक कि वे तमाम जमीनी सच्चाइयों को ठेंगा दिखाते हुए बीजेपी की तरह कॉंग्रेस मुक्त भारत का अभियान 2 ही शुरू कर रही हैं. बगैर नतीजे सोचे हुए. बंगाल विजय के बाद 2024 में पीएम कुर्सी के लिए उनकी महत्वाकांक्षाएं जोर मारने लगी हैं!
पीएम बनने की लालसा होना कोई बुरी बात नहीं है. लेकिन वे जिस तरह के अभियान में जुट गई हैं, वो उनकी नीयत पर भी गंभीर सवाल खड़ा कर रहा है.
लंबे समय से ममता अपने जुझारूपन के लिए विख्यात हैं. बंगाल की सत्ता वो बीजेपी को जबरदस्त हार देकर बरकरार रखने में सफल रही हैं. ये विजय पताका नयी नयी है. अवतारी नेता कहे जाने वाले पीएम मोदी के लिए ये बड़ा झटका भी रहा है.
लेकिन जल्दबाज़ और सनकी पन के अपने तेवरों के लिए ममता बदनाम भी रही हैं. इन दिनों शायद इसी मोड़ पर एक फिर खड़ी नज़र आ रही हैं.
वो भी इस नाजुक राजनीतिक वक़्त पर. कुछ महीनों में ही यूपी, पंजाब सहित पांच राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं. चुनावी नगाड़े बज चुके हैं. मोदी सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर है. क्योंकि यह चुनाव, 2024 का सेमी फाइनल भी माना जा रहा है. खासतौर पर यूपी के ऊपर सब की नजरें हैं!
यदि यहां कमल मुर्झा गया तो, 2024 का मोदी गेम बिगड़ सकता है. ऐसे में यहां वापसी के लिए बीजेपी सब कुछ करेगी.
बीजेपी के लिए चुनावी मौसम अच्छा नहीं माना जा रहा. किसान आंदोलन गले की हड्डी बन गया है. विवादित कानून वापस ले लिए गए हैं. इसके बाद भी यूपी में सत्ता डूब के भारी खतरे हैं. इसमें मोदी मंडली के लिए खास चिंता का सबब ये है कि कमजोर कॉंग्रेस को नई ऊर्जा मिलती लग रही है. खास तौर पर प्रियंका गांधी वाड्रा की बढ़ती लोक प्रियता बीजेपी के भविष्य को खतरे में डालने वाली भी बन सकती है. जबकि उसका संकल्प कॉंग्रेस मुक्त भारत का रहा है. कुछ अलग वजहों से अब ममता भी ऐसा सपना देख रही हैं. मौजूदा हालात में कॉंग्रेस के नेतृत्व में ही मिलाजुला विपक्ष ,मोदी का विकल्प बन सकता है. और कोई रास्ता नहीं हो सकता.1996 से शुरू कई ऐसे राजनीतिक प्रयोग बुरी तरह असफल भी हो चुके हैं. इससे सबक ना लेकर फिर वही गलती करना कैसे उचित हो सकता है?
सभी जानते हैं कि मोदी जी के नेतृत्व वाली बीजेपी खासी दमखम वाली है. सारे खेल उसे आते हैं. उसे किसी लोकलाज की परवाह भी नहीं रहती. हिन्दू मुस्लिम खेल के वे चैम्पियन हैं. संघ परिवार का बड़ा कुनबा सब कुछ करने में माहिर है. दशकों पहले गणेश जी को ये लोग पूरे देश में कुछ घंटों में दुध पिलाने का सफल प्रयोग कर चुके थे. तब से गंगा में पानी बहुत बह चुका है. अब मोबाइल जैसा घातक हथियार भी इनके पास है. जो मिनटों में कोई अफवाह, सूचना बम के तौर का काम कर देती है. सालों से बीजेपी के मुकाबले में खड़ी कॉंग्रेस नेतृत्व संकट से गुजर रही है. क्षेत्रीय पार्टियों की अपनी वरीयता रहती है. अधिसंख्य क्षेत्रपाल केंद्रीय एजेंसियों से डरे रहते हैं. इस दौरान कॉंग्रेस के राहुल ने ही पीएम से सीधे सवाल करने का दुस्साहस किया है. कम से कम 200 लोकसभा सीटों पर कॉंग्रेस से ही बीजेपी का सीधा मुकाबला है. ये जमीनी सच्चाई है. जबकि ममता, बंगाल के बाहर कोई खास आधार नहीं रखती हैं. वे कॉंग्रेस से ही बाहर आयी थीं. साम्प्रदायिक राजनीति के मामले मे भी वो एकदम पाक साफ नहीं हैं. अटल जी की सरकार में मंत्री रह चुकी हैं.
कुछ महीने पहले तक वे बीजेपी के लिए सबसे बड़ी खल नायिका थीं.अब ममता की नयी मुहिम से संघ परिवार का कुनबा शेरनी दीदी के प्रति प्यार जताए जा रहा है. क्योंकि उनकी मुहिम बढ़ी, तो 2024 में मोदी की वापसी आसान हो सकती है. सवाल ये है कि ममता आखिर किसको फायदा पहुंचाना चाहती हैं?जिस तरह वे मोदी जी के सबसे चहेते अमीर गौतम अडानी से मुलाकात करती हैं. ये सब बदलाव तो संकेत है कि जाने अनजाने दीदी सेकुलर राजनीति को जोर का झटका देने की जिद में हैं. ये लोकतान्त्रिक मौसम के लिए शुभ संकेत तो नहीं हैं. यदि समय रहते दीदी ने अपनी बेढंगे तौर तरीके नहीं बदले, तो वे अपने को ही बौना जरूर कर लेंगी!