संपादकीय

भूदान यज्ञ के प्रणेता, मुर्तीमान अहिंसा के प्रतीक आचार्य संत बाबा विनोबा

भूदान यज्ञ के प्रणेता, मुर्तीमान अहिंसा के प्रतीक आचार्य संत बाबा विनोबा
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कौन है ये विनोबा?आज जब विश्व मे अशान्ति ,हिंसा और अराजकता पनप रही है और जिस वेग से हमारे जीवन मुल्यो मे गिरावट आ रही है तब इस देश की नई पीढ़ी को जानना और समजना जरुरी है कि कौन है ये विनोबा l 1940 मे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए महात्मा गांधी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह की जब घोषणा की तब कांग्रेस जनो के मन में यह प्रश्न उपस्थित हुवा था की गांधी के व्यक्तिगत सत्याग्रह के प्रथम सत्याग्रही कौन होगे?

लोगों का विचार था की इस व्यकिगत सत्याग्रह के प्रथम सत्याग्रही कांग्रेस के अध्यक्ष होंगे या अन्य कोई प्रभावशाली नेता l किंतु इस सत्याग्रह का सुत्रपात एक ऐसे व्यक्ति से हुवा जिससे कांग्रेस कार्य समिति के कइ सदस्य परिचित तक नहीं थे l गान्धी जी की पैनी दृष्टि एक ऐसे अद्भुत व्यक्ति को चुनकर उठा लाई थी वे व्यक्ति थे आचार्य, चिन्तक,और संत श्री विनोबा भावे l गांधी के अध्यात्म के उत्तराधिकारी l

उनके सम्बन्ध मे स्वयं गांधी ने लिखा है की विनोबा मुर्तिमान अहिंसा है और उनमे मेरी अपेक्षा काम करने की अधिक दृढता है 1940 मे प्रकाशित हरीजन के एक अंक मे उन्होने विनोबा के बारे में बताया है की उनकी स्मरण शक्ति अद्भुत है, और प्रकृति से वे विध्यार्थी है l आश्रम का हर छोटा बडा काम सुत कताई से लेकर पाखाना मैला साफ करने तक का काम उन्होने किया है, वे संस्कृत के मर्मज्ञ विद्वान है l

संस्कृत का अध्ययन करने जब वे आश्रम से एक वर्ष की छुट्टी लेकर गये तो एक वर्ष समाप्त होने पर बगैर सुचना दिये वे उसी दिन, उसी समय आश्रम में वापस आ गये थे मै तो भुल ही गया था कि उनकी छुट्टी उसी दिन पुरी हो रही थी l अपने स्वयं के सम्बन्ध मे विनोबा ने लिखा है की मेरे पिता वैज्ञानिक थे और माता अध्यात्मिक l विज्ञान मेरा प्रिय विषय था लेकिन इसके साथ ही आध्यात्मिक साहित्य के प्रति भी मेरा आकर्षण था।

जब सन 1942 मे मै गान्धीजी के आव्हान पर मै जेल मे था तब स्वतंत्रता के सम्बन्ध मे मैने गहराई से चिन्तन किया इस चिन्तन के परीणाम स्वरुप मैने अनुभव किया की पहले मै को बन्धन मुक्त करना होगा और यह काम है अध्यात्म का l मेरी मान्यता है की विज्ञान और आत्मज्ञान का मेल हो तो धरती पर स्वर्ग लाया जा सकता है lविज्ञान को प्रगति करना है तो उसे ठिक मार्गदर्शन मिलना चाहिए और वह मार्ग दर्शन आत्म ज्ञान ही दे सकता हैl आग का अविष्कार विज्ञान कर सकता है लेकिन आग कहा जलाना इस का ज्ञान तो आत्मज्ञान ही दे सकता है l

गांधी शताब्धी के अवसर पर उनके द्वारा सम्पादित पुस्तक " तीसरी शक्ति " उनके तत्व विवेचन की प्रसिद्ध कृति है l जय प्रकाश नारायण ने इस पुस्तक की भूमिका में लिखा है तीन गुण, तीन दोष, तीन मुर्ति आदि की कल्पना भारतीय समाज ने प्राचीन काल से कर रखी है विनोबा ने तीसरी शक्ति की एक नई कल्पना की है l उन्होने लिखा है कि मानव समाज में परिवर्तन और पुननिर्माण के लिए इतिहास में केवल दो शक्ति का ही जिक्र आता है हिंसा शक्ति और दंड शक्ति ल

प्रेम शक्ति का भी उल्लेख है परंतु वह परिवार के सिमित दायरे के बाहर काम करती हुई नहीं दिखाई देती l दिन, इसाई, बुद्ध, जैन आदि धर्म प्रेम, करुणा और अहिंसा के बुनियादी पर स्थापित तो हुये लेकिन अप्रत्यक्ष हिंसा से वे भी अछुते नहीं रहे l स्वीकार करना होगा की शोषण, उत्पीडन, विषमता व अन्य प्रकार के सामाजिक और आर्थिक अन्याय ,हिंसा ही तो है ? विनोबा के साथ जय प्रकाश की भी यही मान्यता रही है की गांधी विनोबा की समन्वित तीसरी शक्ति सर्वोदय ही विश्व शान्ति का एक मात्र आधार है l

अपनी तीसरी शक्ति पुस्तक के एक अध्याय मे "आने वाला जमाना मेरा है "के शिर्षक के अंतर्गत विनोबा ने लिखा है की आप देख रहे हैं कि हर सुबे मे निर्माण का बहुत बड़ा काम हो रहा है लेकिन क्या नया समाज बन रहा है? क्या पुराने दिमाग वाले इंसान मे कुछ फर्क पड रहा है? क्या कुछ नये मुल्य बन रहे हैं ?.....आज भी पुराने झगड़े तन्गदिलि, और छोटे छोटे जज्बात है तो,,,, आखीर क्या होगा? दिल और दिमाग मे फर्क नहीं पड़ने से इंसान कि जिंदगी में इन्कलाब नहीं आ सकता, इन्कलाब तब होता है जब प्यार से दिल बदलता है, ह्र्दय परिवर्तन होता है।

सरकार की तरफ से जो काम किया जाता है उससे दुनिया बनती है लेकिन नया इंसान नहीं बनता, नया इंसान बनाने का काम वे करते है जो रुहानी ताकत को पहिचानते है l माली हालत बदलने की बात बाहर कि चीज है अंदर कि चीज बदलनी हो तो रुहानी ताकत चाहिए l जोडने वाली तरकिब मजहब या सियासत नहीं है वह रुहानियत ही हो सकती है l मजहब पचास हो सकते हैं लेकिन रुहानियत एक ही है l मजहब, सियासत, भाषाये चंद लोगों को इकट्ठा करती है और चंद लोगों को अलग करती है लेकिन रुहानियत कुल इन्सानो को एक बनायेगी l

बाबा विनोबा ने जीवन भर भूदान यज्ञ की अपनी निरंतर पद यात्राओ मे दिलो को जोडने का काम किया l उनके विचार और वाणी लोगों के ह्रदय को छुती थी और ह्रदय परिवर्तन का काम करती थी l आज जब जमिन के जरा से टुकडे के लिए लोग हिंसा पर उतारु हो जाते हैं तब उनके आव्हान पर तथा उनके विचार से प्रेरीत हो कर हजारो लोगों ने उन्हे लाखों एकड भुमी भूदान यज्ञ में दी थी ल

भुमिहिनो के लिए उनके द्वारा चलाया गया उनका भूदान यज्ञ अपने आप में अद्भुत और दुर्लभ था l इसे वे ईश्वर की प्रेरणा मानते थे उनकी ईश्वर मे असिम श्रद्धा थी l गीता पर लिखी गई उनकी टीका गीताई कालजयी और प्रसिध्द कृति है l आज जब विश्व में अशान्ती और हिंसा का माहौल है ऐसे अवसर पर उनका जय जगत का मंत्र और गांधी विचार से प्रेरित तीसरी शक्ति मे निहित उनकी सर्वोदयी भावना और विचार विश्व शान्ति के लिए एक रचनात्मक संदेश है l

दिलिप तायडे, गांधी विचारक

अभिषेक श्रीवास्तव

अभिषेक श्रीवास्तव

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