संपादकीय

हिंदी पत्रकारिता दिवस की सभी पत्रकारों को बधाई, जानिए हिंदी पत्रकारिता के 194 साल के संघर्ष वाले सफर को

Shiv Kumar Mishra
30 May 2020 11:05 AM IST
हिंदी पत्रकारिता दिवस की सभी पत्रकारों को बधाई, जानिए हिंदी पत्रकारिता के 194 साल के संघर्ष वाले सफर को
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पैसों की तंगी की वजह से 'उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन बहुत दिनों तक नहीं हो सका और आखिरकार 4 दिसम्बर 1826 को इसका प्रकाशन बंद कर दिया गया।

आज हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जा रहा है, क्योंकि 194 साल पहले आज ही के दिन उदन्त मार्तण्ड के नाम से हिंदी भाषा में पहला समाचार पत्र निकला था। इस दिन समाजसेवी पुनीत जी ने सभी पत्रकारों को बधाई दी है और कहा है कि आज समाज में जो भी बुराई प्रवेश करती है उसे पत्रकारिता की दम पर ही मिटाया जा सकता है। उन्होंने कहा है कि इस दिवस की दोहरी बधाई इसलिए भी है जिस तरह कोरोना जैसी भयंकर महामारी में भी पत्रकारों का सहयोग अविस्मर्णीय है।

जानिए हिंदी पत्रकारिता के 194 साल के संघर्ष वाले सफर को

30 मई 1826 को पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने इसे कलकत्ता से एक साप्ताहिक समाचार पत्र के तौर पर शुरू किया था। इसके प्रकाशक और संपादक भी वे खुद थे। जुगल किशोर शुक्ल वकील भी थे और कानपुर के रहने वाले थे, लेकिन उस समय औपनिवेशिक ब्रिटिश भारत में उन्होंने कलकत्ता को अपनी कर्मस्थली बनाया। उन्होंने कलकत्ता के बड़ा बाजार इलाके में अमर तल्ला लेन, कोलूटोला से साप्ताहिक 'उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन शुरू किया।

'उदन्त मार्तण्ड' एक साहसिक प्रयोग था, लेकिन पैसों के अभाव में यह एक साल भी नहीं प्रकाशित हो पाया। इस साप्ताहिक समाचार पत्र के पहले अंक की 500 प्रतियां छपी। हिंदी भाषी पाठकों की कमी की वजह से उसे ज्यादा पाठक नहीं मिल सके। दूसरी बात की हिंदी भाषी राज्यों से दूर होने के कारण उन्हें समाचार पत्र डाक द्वारा भेजना पड़ता था। डाक दरें बहुत ज्यादा होने की वजह से इसे हिंदी भाषी राज्यों में भेजना भी आर्थिक रूप से महंगा सौदा हो गया था। पंडित जुगल किशोर ने सरकार ने काफी आग्रह किया कि वे डाक दरों में कुछ रियायत दें, जिससे हिंदी भाषी प्रदेशों में पाठकों तक समाचार पत्र भेजा जा सके, लेकिन ब्रिटिश सरकार इसके लिए राजी नहीं हुई। पैसों की तंगी की वजह से 'उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन बहुत दिनों तक नहीं हो सका और आखिरकार 4 दिसम्बर 1826 को इसका प्रकाशन बंद कर दिया गया।

इसके बाद धीरे-धीरे समय बदला और हिंदी पत्रकारिता फिर से तेवर में आयी। समय के साथ पत्रकारिता में बहुत ज्यादा आर्थिक निवेश हुआ है और इसे उद्योग का दर्जा हासिल हो चुका है। धीरे-धीरे हिंदी के पाठकों की संख्या बढ़ी, लेकिन हिंदी पत्रकारिता के सामने चुनौतियां कम नहीं हुई। कई बार उतार-चढ़ाव आते रहे। कई समाचरपत्र आये और चले गये। इसी में कुछ समाचरपत्रों ने लोगों के अपनी खास पहचान बनाई और हिंदी पत्रकारिता को नया आयाम दिया, लेकिन फिर संक्रमण काल आया और हिंदी पत्रकारिता पर पाश्चात्य कल्चर हावी होने लगा। हिंदी के अखबारों में अंग्रेजी की घुसपैठ शुरू हो गई। धीरे-धीरे यह प्रचलन सभी अखबारों में शुरू हो गया।

मौजूदा समय की ही बात करें तो आज अधिकतर मीडिया संस्थान नौकरी विज्ञापन में बड़े-बड़े अक्षरों में अंग्रेजी भाषा में महारथ हासिल की बात लिखते है। कई पत्रकार हिंदी में अच्छा लिखते हुए भी बहुत पीछे नजर आते है क्योंकि उनका अंग्रेजी सेक्शन वीक है, शायद ये मजबूत होता तो वो भी हिंदी की जगह अंग्रेजी पत्रकारिता का हिस्सा होते। कई मीडिया कंपनी तो ये भी कहती नजर आती है कि आपको बस अंग्रेजी अनुवाद और टाइपिंग आना चाहिए बस फिर आपकी नौकरी पक्की। क्या इसे सुनने के बाद आपको वाकई लगता है हिंदी पत्रकारिता का भविष्य उज्जवल है। लेखनी से ज्यादा अंग्रेजी अनुवाद पर निर्भरता आखिर हिंदी पत्रकारिता में कब तक सांस भर सकती है।

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