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स्वागतयोग्य है कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने किराए की कोख यानि सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021 को मंजूरी दे दी है। इस कानून के मुताबिक अब सिर्फ परोपकारी सरोगेसी को ही अनुमति मिलेगी और कोख के व्यवसायिक कारोबार पर रोक लगेगा। कानून के मुताबिक सिर्फ 23 से 50 साल की उम्र की महिलाएं ही सरोगेसी का रास्ता चुन सकती हैं। लेकिन शर्त यह भी है कि सरोगेसी मां बनने के लिए महिला को विवाहित होना जरुरी होगा। सिर्फ उन भारतीय दंपतियों को ही सरोगेसी से संतान प्राप्त करने की अनुमति होगी जो संतान उत्पन करने में अक्षम हैं। ऐसे दंपति के लिए उनकी निकटवर्ती रिश्तेदार ही सरोगेट मां बन सकेगी। विदेशी जोड़ों के लिए भारतीय महिलाओं की कोख किराए पर लेने को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है। इस कानून में व्यवसायिक सरोगेसी को गैर-कानूनी ठहराया गया है।
इस कानून में किराए की कोख वाली मां के अधिकारों की रक्षा के उपाए किए गए हैं। मसलन इस तरह के बच्चों के अभिभावकों को कानूनी मान्यता देने का प्रावधान है। गौर करें तो देश में कोख खरीदने के बढ़ते व्यापार पर नकेल कसने की अब तक की यह सबसे अहम कोशिश है, जिसकी जरुरत पहले से महसूस की जा रही थी। इस कानून के जरिए सरकार की मंशा देश में सरोगेसी को रेग्यूलेट करने के लिए एक ऐसा ढांचा तैयार करने की है जिससे कि सरोगेसी किसी तरह का कारोबार न बन सके। निःसंदेह ऐसे दंपतियों के लिए सरोगेसी की इजाजत बनी रहेगी जो संतान को जन्म देने में सक्षम नहीं है। यह सच्चाई भी है कि देश में तकरीबन 18 फीसद महिलाएं बांझपन की शिकार हैं और संतान को जन्म देने में सक्षम नहीं है। लेकिन मौजूदा दौर में जिस तरह सरोगेसी अनैतिक कमाई के धंधे में तब्दील हो रहा है ऐसे में सरोगेसी कानून का नियमन किया जाना जरुरी हो गया था।
यह किसी से छिपा नहीं है कि सरोगेसी कुछ महत्वपूर्ण हस्तियों के लिए एक शौक बन चुका है जो संतान होने के बाद भी सरोगेसी के जरिए संतान प्राप्त करने को इच्छुक हैं। सिर्फ इसलिए कि उनकी पत्नियां गर्भधारण करना नहीं चाहती। एक किस्म से इन हस्तियों ने सरोगेसी के जरिए संतान प्राप्त कर समाज में इस प्रवृत्ति को बढ़ावा देने का काम किया है। उदाहरण के तौर पर अभिनेता आमिर खान और उनकी निर्देशक पत्नी किरण राव को सरोगेसी के जरिए संतान सुख प्राप्त हुआ। जबकि इस अभिनेता की पूर्व पत्नी से एक बेटी और एक बेटा पहले से है। मशहुर अभिनेता शाहरुख खान ने भी सरोगेसी के जरिए संतान प्राप्त किया जबकि उनके पास भी संतान पहले से है। निःसंदेह ऐसे उदाहरण समाज के लिए अनुकरणीय नहीं हो सकते। ऐसे में उचित ही है कि सरकार ने ऐसे शौक और अनैतिक व्यापार को रोकने की दिशा में मजबूत कानून गढ़े हैं।
कानून के मुताबिक अब परिवार या नजदीक की रिश्तेदार महिला ही सरोगेट मदर बन सकती है। अगर सरोगेट बच्चा निःशक्त, मंद बुद्धि या लड़की है तो भी स्वीकार करना होगा। इसके अलावा अगर कोई महिला जो अपनी कोख सरोगेसी के लिए देना चाहती है, उसे सिर्फ एक बार अवसर मिलेगा। प्रावधानों के मुताबिक सरोगेट बच्चे को किसी भी बाॅयोलाजिकल या गोद लिए हुए बच्चे की तरह संपत्ति पर बराबर का अधिकार होगा। गौर करें तो किराए के कोख के अनैतिक कारोबार पर लगाम इसलिए भी आवश्यक था कि भारत सरोगेसी के अनैतिक केंद्र के रुप में स्थापित होता जा रहा है। विगत एक दशक में विदेशियों और भारतीय समाज में समृद्ध वर्ग के लोग जो कि संतान पैदा करने में सक्षम हैं, के बावजूद भी सरोगेसी के जरिए बच्चा प्राप्त कर रहे हैं। यह नैतिक दृष्टि से उचित नहीं है।
आज आलम यह है कि भारत में सरोगेसी का बाजार 63 अरब रुपए के पार पहुंच चुका है। हर वर्ष विदेशों से आए दंपतियों के 2000 बच्चे यहां होते हैं और तकरीबन 3000 से अधिक क्लिनिक इस काम में लगे हुए हैं। आज की तारीख में दुग्ध की राजधानी के रुप में मशहूर गुजरात का आणंद शहर सरोगेसी का सबसे बड़ा हब बन चुका है। यहां तकरीबन 200 फर्टिलिटी सेंटर सरोगेसी केंद्र हैं जो सेवाएं दे रहे हैं। देश के अन्य हिस्सों में भी फर्टिलिटी सेंटर तेजी से खुल रहे हैं। इसका सीधा मतलब यह निकलता है कि सरोगेसी कमाई का बहुत बड़ा जरिया बन चुका है। एक अध्ययन के मुताबिक सरोगेसी के मामले दुनिया में सर्वाधिक भारत में ही होते हैं।
यदि पूरी दुनिया में 1000 सरोगेसी के मामले होते हैं तो उसमें 600 भारत में होते हैं। गौर करें तो विदेशियों में सर्वाधिक रुप से अमेरिका, ब्रिटेन, कोरिया, जकार्ता मध्य पूर्व और यूरोपीय देशों के दंपति सरोगेसी के लिए भारत आते हैं। उसका महत्वपूर्ण कारण यह है कि यूरोप के अधिकांश देशों में सरोगेसी गैरकानूनी है। उदाहरण के तौर पर जर्मनी में सख्ती का आलम यह है कि वह अपने नागरिकों को भारत का वीजा लेने से पहले ताकीद करता है कि अगर वह भारत इसलिए जा रहे हैं कि वे किराए की कोख से बच्चा लाएंगे तो याद रखें कि जर्मनी में सरोगेसी पर रोक है। विदेशियों का भारत की ओर रुझान इसलिए है कि दुनिया के अन्य देशों की अपेक्षा यहां सरोगेसी से बच्चा प्राप्त करना सस्ता व सुरक्षित है। 2007 के आईसीएसआई की रिपोर्ट बताती है कि ब्रिटेन में सरोगेसी के लिए किसी महिला को 4 लाख रुपए देना पड़ता है वहीं भारत में महज 60 हजार रुपए में महिलाएं किराए पर कोख उपलब्ध करा देती हैं। इसी तरह अमेरिका और आस्टेªलिया में सरोगेसी के माध्यम से संतान प्राप्त करने का खर्चा तकरीबन 50 से 60 लाख रुपए बैठता है। दूसरी ओर विदेशी भारत की ओर इसलिए भी आकर्षित होते हैं कि यहां की अधिकांश महिलाएं नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करती और शाकाहारी होती हैं लिहाजा उनके गर्भ में पलने वाला बच्चा स्वस्थ व सुरक्षित होता है।
उल्लेखनीय है कि सरोगेसी की प्रक्रिया के तहत बच्चा पैदा करने में असमर्थ महिलाओं के अंडाणु का उनके पति के शुक्राणु से निषेचन कराने के बाद भ्रूण को सरोगेसी के लिए तैयार महिलाओं के गर्भ में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। अंडाणु और शुक्राणु दाता सरोगेट मदर से पैदा होने वाले बच्चे के जैविक माता-पिता होते हैं, जबकि सरोगेट मदर उस बच्चे की अजैविक मां होती है जिसका उस बच्चे पर कोई कानूनन अधिकार नहीं होता है। भारत में गरीबी अधिक है इसलिए कुछ महिलाएं पैसों के लिए अपना कोख किराए पर देने को तैयार हो जाती हैं। आमतौर पर फर्टिलिटी सेंटर सरोगेट के लिए 18 से 35 साल की गरीब महिलाओं को तैयार करते हैं।
महत्वपूर्ण बात यह कि फर्टिलिटी सेंटर बच्चा चाहने वाले दंपति से लाखों रुपए ऐंठते हैं लेकिन उस रकम का दसवां हिस्सा भी कोख बेचने वाली मां को नहीं देते हैं। लिहाजा एक किस्म से उनका शोषण होता है। कई बार तो ऐसी विकट परिस्थितियां उत्पन हो जाती है कि मामला अदालत तक पहुंच जाता है। मसलन कभी-कभी सरोगेट मां भावनात्मक लगाव के कारण बच्चे को देने से इंकार कर देती है। कई बार ऐसा भी होता है जब जन्म लेने वाली संतान विकलांग होती है या अन्य किसी बीमारी से ग्रस्त होती है और इच्छुक दंपति उसे लेने से इंकार कर देते हैं। ऐसे में सरोगेट मदर के उपर बच्चे के पालन-पोषण का बोझ बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति पैदा न हो इसके लिए सरकार ने किराए के कोख के व्यवसायिक इस्तेमाल के विरुद्ध कड़ी शर्तें तय कर एक तरह से मानवीय पहल की है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। गौर करें तो भारत में अभी तक सरोगेसी के अनैतिक दुरुपयोग रोकने के लिए कोई कड़ा कानून नहीं था। लेकिन इस कानून के लागू होने के बाद भारत अब फ्रांस, नीदरलैंड और नार्वे जैसे देशों में शुमार हो जाएगा जहां पहले से व्यवसायिक सरोगेसी की इजाजत नहीं है।