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गायब EVM को लेकर RTI का जबाब में चुनाव आयोग ने दी हैरान करने वाली जानकारी
मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से 19 लाख ईवीएम मशीनें गायब हैं।इस मामले को शाहरुख खान की फ़िल्म जवान में भी दिखाया गया है और याद करिए तो यह मामला कर्नाटक विधानसभा में जोरशोर से उठा था जिसे आप गूगल भी कर सकते हैं।
RTI एक्टिविस्ट कुणाल शुक्ला ने बताया, मैनें निर्वाचन आयोग में RTI लगा कर पूछा था वर्ष 2019 से लेकर वर्ष 2023 तक कितनी ईवीएम मशीनें गायब हैं वर्षवार जानकारी उपलब्ध कराएं। कई दिनों तक आवेदन इधर उधर घूमने के बाद आज जवाब -NIL- आया है।तो फिर झूठ कौन बोल रहा है कर्नाटक विधानसभा या फिर निर्वाचन आयोग जो कि भाजपा का ही एक सहयोगी राजनीतिक दल है।
जब गायब एवीएम की खबरें चली थी तो कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने भी चुनाव आयोग से जबाब मांगा था ये गायब हुई एवीएम कहां गई। कांग्रेस नेता शशि थरूर ने ईवीएम अनियमितताओं से जुड़ी शिकायतों पर चुनाव आयोग से जवाब मांगा। दरअसल, हाल ही में कर्नाटक हाईकोर्ट में ईवीएम गायब होने का मुद्दा उठा था. कांग्रेस विधायक ने आरटीआई के हवाले से सदन में कहा था कि 2016 से 2018 तक देश में 19 लाख ईवीएम गायब हुई हैं।
शशि थरूर ने टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट को ट्वीट किया है. खबर के मुताबिक, कर्नाटक में कांग्रेस विधायक एचके पाटिल ने आरटीआई का हवाला देते हुए विधानसभा में बताया कि भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड द्वारा सप्लाई की गईं 9.6 लाख ईवीएम और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा सप्लाई की गईं 9.3 लाख ईवीएम 2016 से 2018 के बीच में गायब हो गईं. लेकिन इस मामले में चुनाव आयोग द्वारा अभी तक कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया। कर्नाटक विधानसभा में स्पीकर विश्वेश्वर हेगड़े कागेरी ने कहा कि वे इस मामले में चुनाव आयोग से उनका पक्ष जानने की कोशिश करेंगे।
थरूर ने कहा- गंभीर प्रतिक्रिया की जरूरत
शशि थरूर ने कहा, आम तौर पर मैं साजिशों से सावधान रहता हूं. लेकिन ईवीएम के संचालन में अनियमितताओं के बारे में बढ़ती चिंताओं पर चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया की जरूरत है. लापता ईवीएम की आधिकारिक पुष्टि सवाल उठाती है कि आखिर ये किसके पास हैं और इनका क्या हो रहा है?
क्या है पूरा मामला
संविधान और कानून के शासन की अवधारणा वाले हमारे देश में यदि संवैधानिक संस्थाएं ही कानून और संविधान का मजाक बनाने पर उतारू हो जाएं तो उच्चतम न्यायालय के अलावा कोई अन्य इसे पटरी पर वापस नहीं ला सकता। एक ओर चुनाव दर चुनाव ईवीएम में धाधली, ईवीएम बदले जाने के आरोप लग रहे हैं और यूपी का हालिया चुनाव इसका सबसे बड़ा उदाहरण है वहीं दूसरी ओर चुनाव आयोग 19 लाख ईवीएम मशीन गायब होने के मुद्दे पर आश्चर्यजनक चुप्पी साधे बैठा है और बाम्बे हाईकोर्ट ने भी याचिका पर कुंडली मार रखी है । 19 लाख ईवीएम गायब होने का मामला इस ब़ार कर्नाटक विधानसभा में उठा है। कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष विश्वेश्वर हेगड़े कागेरी ने मंगलवार को विधानसभा में कहा कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के बारे में विधायकों द्वारा उठाए गए संदेह का जवाब देने के लिए भारत के चुनाव आयोग (ईसी) के अधिकारियों को तलब करेंगे।
विश्वेश्वर हेगड़े कागेरी ने कहा कि वह 19 लाख इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के मुद्दे पर भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) से स्पष्टीकरण मांगने की कोशिश करेंगे और प्राप्त करेंगे जो कथित तौर पर 2016 -18 के बीच गायब हो गए थे।अगर भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) यह दावा कर रहा है कि उसने इतनी संख्या में ईवीएम बनाए हैं, तो चुनाव आयोग को यह स्वीकार करना होगा कि उसे इतनी संख्या में ईवीएम मिली हैं। अगर उन्हें नहीं मिला है, तो यह धोखाधड़ी का मामला है। उन लापता मशीनों का दुरुपयोग हुआ है या नहीं, यह पूरी तरह से अलग मामला है।
विधानसभा अध्यक्ष कागेरी कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री एचके पाटिल की उस मांग का जवाब दे रहे थे, जिसमें कहा गया था कि गायब ईवीएम पर अपना पक्ष रखने के लिए स्पीकर को चुनाव आयोग के प्रतिनिधियों को सदन में तलब करना चाहिए।
चुनाव में कदाचार और अनियमितताओं को रोकने के लिए चुनावी सुधारों की आवश्यकता पर बहस में भाग लेते हुए, पाटिल ने एक आरटीआई जवाब का हवाला देते हुए कहा, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) द्वारा आपूर्ति की गई 9.6 लाख ईवीएम और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) द्वारा 9.3 लाख ईवीएम की आपूर्ति की गई। 2016-18 के बीच ये लापता हो गयी थी। लेकिन चुनाव आयोग ने अभी तक कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है।
इसी तरह भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) ने दावा किया कि उसने 2014 में चुनाव आयोग को 62,183 ईवीएम की आपूर्ति की, लेकिन बाद वाले ने कहा कि उसने उन्हें कभी प्राप्त नहीं किया। कहां गई ये सभी ईवीएम? पाटिल ने कहा। चुनाव आयोग (ईसीआई) इस मुद्दे पर चुप क्यों है? ईसीआई को इस पर सफाई देनी चाहिए। यदि नहीं, तो ईवीएम [टेम्पर प्रूफ होने] के बारे में संदेह केवल बढ़ेगा। पाटिल ने कहा कि अगर चुनाव आयोग ने उनके आरोपों को गलत साबित कर दिया तो वह किसी भी सजा के लिए तैयार हैं।
बहस में शामिल होते हुए, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष केआर रमेश कुमार ने कहा कि अध्यक्ष के पास चुनाव आयोग के अधिकारियों को बुलाने और स्पष्टीकरण प्राप्त करने का अधिकार है। विधानसभा अध्यक्ष कागेरी ने पाटिल से गायब ईवीएम पर दस्तावेज उपलब्ध कराने को कहा और कहा कि वह चुनाव आयोग से स्पष्टीकरण लेने की कोशिश करेंगे। उन्होंने कहा कि मैं आपकी शंकाओं को दूर करने की पूरी कोशिश करूंगा।
2018 में कार्यकर्ता मनोरंजन एस रॉय द्वारा प्राप्त एक आरटीआई प्रतिक्रिया का जिक्र करते हुए पाटिल ने कहा कि भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) से 10.26 लाख ईवीएम गायब हो गए थे, और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) से 9.29 लाख वोटिंग मशीन बनाने वाली एक अन्य फर्म से गायब हो गए थे। .पाटिल ने दावा किया कि संख्या में 62,183 ईवीएम शामिल हैं, जिनके बारे में बीईएल ने 2014 में चुनाव आयोग को भेजे जाने का दावा किया था, लेकिन चुनाव नियामक द्वारा ‘प्राप्त’ के रूप में स्वीकार नहीं किया गया था।
27 मार्च 2018 को, आरटीआई कार्यकर्ता रॉय ने ईवीएम के संबंध में एक आरटीआई प्रश्न पर बीईएल से प्राप्त प्रतिक्रिया के आधार पर बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की।उन्होंने तर्क दिया कि 19 लाख से अधिक ईवीएम गायब थीं क्योंकि वे चुनाव आयोग के कब्जे में नहीं थीं। चुनाव आयोग ने आरटीआई पर आधारित समाचार रिपोर्टों के जवाब में कहा था कि संख्या “अनुमानित और भ्रामक” थी। विधानसभा में पाटिल ने कहा कि लापता ईवीएम की संख्या चौंकाने वाली है।
पाटिल की चिंताओं को पूर्व स्पीकर और कांग्रेस नेता रमेश कुमार और पूर्व आईटी मंत्री प्रियांक खड़गे का समर्थन मिला। खड़गे ने कहा कि मैंने, आईटी मंत्री के रूप में, चुनाव आयोग को दो पत्र लिखे थे, जिसमें राजनीतिक दलों के बजाय विषय विशेषज्ञों द्वारा ईवीएम के एथिकल हैकथॉन की अनुमति दी गई थी, जिनके पास तकनीकी विशेषज्ञता नहीं है, यदि कोई हो, तो कमियों का आकलन करने के लिए।इसे ठुकरा दिया गया।
अरविंद बेलाड सहित भाजपा विधायकों ने चुनाव आयोग का बचाव करने का प्रयास किया, कांग्रेस नेताओं ने जोर देकर कहा कि नियामक को अकेले आरोपों का जवाब देना चाहिए।रमेश कुमार ने कहा कि चुनाव आयोग के अलावा कोई भी ईवीएम के लिए ऑर्डर नहीं दे सकता है। उनके पास ब्योरा होना चाहिए कि कितने आदेश दिए गए हैं, कितना पैसा खर्च किया गया है और कितने प्राप्त हुए हैं ।
विधानसभा अध्यक्ष कागेरी ने कहा कि अगर बीईएल यह दावा कर रहा है कि उसने इतनी संख्या में ईवीएम बनाए हैं, तो चुनाव आयोग को यह स्वीकार करना होगा कि उसे इतनी संख्या में ईवीएम मिली हैं। अगर उन्हें नहीं मिला है, तो यह धोखाधड़ी का मामला है। उन लापता मशीनों का दुरुपयोग हुआ है या नहीं, यह पूरी तरह से अलग मामला है।विधानसभा अध्यक्ष ने इस आश्वासन के साथ चर्चा समाप्त की कि वह सवालों के जवाब के लिए चुनाव आयोग के अधिकारियों को विधानसभा में बुलाने के लिए अपने कार्यालय का उपयोग करेंगे।
इस बीच कांग्रेस नेता शशि थरूर ने ईवीएम अनियमितताओं से जुड़ी शिकायतों पर चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। दरअसल, हाल ही में कर्नाटक हाईकोर्ट में ईवीएम गायब होने का मुद्दा उठा था। कांग्रेस विधायक ने आरटीआई के हवाले से सदन में कहा था कि 2016 से 2018 तक देश में 19 लाख ईवीएम गायब हुई हैं। शशि थरूर ने कर्नाटक विधानसभा में उठे मसले का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि लेकिन इस मामले में चुनाव आयोग द्वारा अभी तक कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया।
शशि थरूर ने कहा, आम तौर पर मैं साजिशों से सावधान रहता हूं। लेकिन ईवीएम के संचालन में अनियमितताओं के बारे में बढ़ती चिंताओं पर चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया की जरूरत है। लापता ईवीएम की आधिकारिक पुष्टि सवाल उठाती है कि आखिर ये किसके पास हैं और इनका क्या हो रहा है?
सूचना के अधिकार के आवेदन के बाद मिले जवाबों से इस बात की आशंका पैदा हो गई है कि क्या 19 लाख EVM कहीं गायब हो गईं? आशंका यह भी जाहिर की जा रही है कि संभव है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की खरीददारी में बड़ी धांधली हुई है।
सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में इवीएम सप्लाई करने वाली दो कंपनियों और चुनाव आयोग के आंकड़ों में बड़ी असमानता सामने आई है। जानकारी के मुताबिक कंपनियों ने जितनी मशीनों की आपूर्ति की है और चुनाव आयोग को जितनी मशीनें मिली हैं, उनमें करीब 19 लाख का अंतर है।
गौरतलब है कि चुनाव आयोग हैदराबाद स्थित इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) और बेंगलुरु स्थित बीईएल से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें खरीदता है। एम एस रॉय द्वारा सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) खरीदी को लेकर दोनों कंपनियों और ईसी के आंकड़ों में बड़ा अंतर सामने आया है। रॉय के अनुसार 1989-1990 से 2014-2015 तक के आंकड़ों पर गौर करें तो चुनाव आयोग का कहना है कि उन्हें बीईएल से 10 लाख 5 हजार 662 ईवीएम प्राप्त हुई हैं। वहीं बीईएल का कहना है कि उसने 19 लाख 69 हजार 932 मशीनों की आपूर्ति की है। दोनों के आंकड़ों में 9 लाख 64 हजार 270 का अंतर है। ठीक यही स्थिति ईसीआईएल के साथ भी है जिसने 1989 से 1990 और 2016 से 2017 के बीच 19 लाख 44 हजार 593 ईवीएम की आपूर्ति की।
लेकिन चुनाव आयोग ने कहा है कि उन्हें केवल 10 लाख 14 हजार 644 मशीनें ही प्राप्त हुईं और यहां भी 9 लाख 29 हजार 949 का अंतर पैदा हो रहा है। इसके साथ ही, इवीएम पर खर्च के आंकड़ों में भी बड़ा अंतर है। पहले की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि चुनाव आयोग के अनुसार, बीईएल से इवीएम की खरीद पर 536.02 करोड़ रुपए का कुल खर्च हुआ है, जबकि बीईएल ने कहा कि उन्हें 652.56 करोड़ रुपए मिले हैं। यहां इवीएम के खर्च में भी बड़ा अंतर है। ईसीआईएल से ईवीएम मंगाने पर चुनाव आयोग के खर्च की जानकारी उपलब्ध नहीं है।
अब इसे क्या कहा जायेगा कि ईसीआईएल का कहना है कि उसने 2013-2017 से 2013-2014 के बीच किसी भी राज्य में एक भी इवीएम की आपूर्ति नहीं की थी। फिर भी ईसीआईएल को चुनाव आयोग के माध्यम से मार्च से अक्टूबर 2012 के बीच महाराष्ट्र सरकार से 50.64 करोड़ रुपए की राशि प्राप्त हुई। गम्भीर और चिंताजनक सवाल यह है कि आखिरकार इवीएम की दो कंपनियों से मिले आंकड़ों में इतना बड़ा अंतर क्यों है? बीईएल और ईसीआईएल द्वारा आपूर्ति की जाने वाली अतिरिक्त मशीनें वास्तव में कहां गईं? यह गड़बड़ी इवीएम पर हुए खर्च में मिली है।
इसके अलावा पुरानी इवीएम नष्ट करने का मामला भी स्पष्ट नहीं है। 21 जुलाई, 2017 को चुनाव आयोग ने कहा कि उसने कोई भी इवीएम रद्दी में नहीं बेची है। वहीं ऐसा माना जाता है कि 1989-1990 की इवीएम को निर्माताओं द्वारा स्वयं नष्ट कर दिया गया था। चुनाव आयोग ने कहा है कि 2000-2005 के बीच उन्हें मिली (पुरानी/ खराब/अपूर्ण) इवीएम को नष्ट करने की प्रक्रिया अभी भी विचाराधीन है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि सभी मशीनें अब भी चुनाव आयोग के कब्जे में हैं।