संपादकीय

शिक्षा से रक्षा तक महिलाओं ने फहराए हैं परचम-प्रतिभा चौहान

शिक्षा से रक्षा तक महिलाओं ने फहराए हैं परचम-प्रतिभा चौहान
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पिछले 70 सालों में अपने देश में महिलाएं कहां तक आगे बढ़ीं हैं ? उनकी तरक्की के रास्ते में क्या बाधाएं हैं ?

प्रतिभा चौहान देश की जानी-मानी प्रखर युवा कवयित्री हैं और बिहार में एक न्यायालय में न्यायाधीश भी हैं। उनकी अब तक 4 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इसके अलावा देश भर की प्रमुख साहित्यिक और सांस्कृतिक पत्रिकाओं में आए दिन इनकी रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। प्रतिभा चौहान लक्ष्मी कांत मिश्रा राष्ट्रीय सम्मान सहित राम प्रसाद बिस्मिल और स्वयं सिद्ध सम्मान से सम्मानित की जा चुकी हैं। साहित्य, समाज और खासकर महिलाओं की स्थिति और उनके हित में बने कानूनों के बारे में प्रसून लतांत ने प्रतिभा चौहान से बातचीत की। उसके कुछ अंश यहां प्रस्तुत हैं।.....

प्रसून लंतात का सवाल- पिछले 70 सालों में अपने देश में महिलाएं कहां तक आगे बढ़ीं हैं ? उनकी तरक्की के रास्ते में क्या बाधाएं हैं ?

जवाब- आजादी के बाद का समय यदि हम देखें तो भारतीय महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र में आगे आईं हैं । सुरक्षा से रक्षा तक शिक्षा से स्वास्थ्य तक के क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है । इस विकास की यात्रा ने उन्हें सामाजिक आर्थिक रूप से सशक्त किया है। वर्तमान समय में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां महिलाओं ने अपनी काबिलियत का परचम न लहराया हो।

परंतु इस सफलता के मुकाम पर पहुंचने के बाद भी वे पितृसत्तात्मक समाज में स्वतंत्र और सम्माननीय स्थिति प्राप्त नहीं कर पाईं हैं । भारतीय समाज की महिलाओं का एक बहुत बड़ा हिस्सा आज भी पुरानी रूढ़ियों और अंधविश्वासों का शिकार हो रहा है। वर्तमान में महिलाओं की जो सफलता और कामयाबी हम देखते हैं उसका प्रतिशत बहुत कम है,

हालांकि यह अन्य महिलाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत का कार्य करता है। महिलाओं को सम्मान पूर्वक स्थान दिलाने के लिए शासन प्रशासन स्तर पर इनकी भागीदारी हेतु सकारात्मक प्रतिनिधित्व बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। सामाजिक सहयोग की कमी, जागरूकता की कमी, पिछड़े हुए इलाकों में शिक्षा का अभाव और निम्न आर्थिक स्तर , सामाजिक रूढ़ियां और जड़ता महिलाओं के विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं। आज समाज को मानसिक रूप से समृद्ध होने की आवश्यकता है।

ऐसा नहीं है कि महिलाओं की तरक्की के रास्ते में केवल अनपढ़ और गांव के परिवार ही शामिल हैं बल्कि पढ़े लिखे और धनाढ्य परिवारों में भी इस तरह की की चीजें हो रही हैं। भ्रूण हत्या इसका ज्वलंत उदाहरण है । अभी भी बहुत कुछ किया जाना शेष है , क्योंकि देश के कई क्षेत्रों में जहां शिक्षा एवं आधारभूत संरचना का अभाव है वहां अभी भी महिलाएं पिछड़ी हुई हैं। चाहे बात शहरी समाज की हो अथवा ग्रामीण समाज की दोनों के ही समुचित विकास में महिलाओं के योगदान को कभी कम करके नहीं देखा जा सकता है परंतु यह विडंबना ही है कि आज भी उन्हें बराबरी का दर्जा प्राप्त नहीं है।

सवाल- महिलाएं इंसाफ हासिल करने में कितना सक्षम हुई है इस विषय में क्या कुछ करना अभी बाकी है?

जवाब- मैं इसे दो रूप में देखती हूं न्याय की संकल्पना घर की दहलीज से ही प्रारंभ हो जाती है, एक सामाज द्वारा इंसाफ और दूसरा कानूनी रूप से जिन महिलाओं द्वारा न्यायालय का दरवाजा खटखटाया गया है उनके साथ इंसाफ । न्यायपालिका ने सदैव ही महिलाओं को सामाजिक रूढ़ियों, कुरीतियों कुप्रथाओं, अपराध, अत्याचार, भेदभाव, शोषण से सुरक्षा प्रदान की है। महिलाओं के हितों की सुरक्षा कर गुनहगार को सजा देकर भयमुक्त वातावरण तैयार करने में न्यायपालिका ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

उत्पीड़न से संरक्षण प्रदान करने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी समय-समय पर महत्त्वपूर्ण दिशा निर्देश जारी किए हैं, जिससे महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ा है। शाहबानो केस से लेकर विशाखा तक और निर्भया केस् से लेकर शायरा बानो केस तक कई उदाहरण आपके सामने हैं।

आज आवश्यकता सामाजिक स्तर पर इंसाफ दिलाने की है विशेषतया तब जब महिला अलगाव की प्रक्रिया से गुजर रही है । कोई लैंगिकभेद भाव किया जा रहा है या उसके विरुद्ध अपराध किए जाने पर पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर महिला अलग-थलग या उपेक्षित दिखाई देती है । साथ ही साथ सेफगार्ड्स जो कानून द्वारा समय समय पर लागू किए गए हैं प्रशासन और समाज द्वारा प्रचार प्रसार के साथ-साथ प्राथमिकता के क्रम में और संवेदनाओं के साथ लागू करने की आवश्यकता है ।

सामाजिक मूल्योत्थान आवश्यक है। आवश्यकता इस बात की है कि शिक्षक व शिक्षण संस्थाएं अपने पाठ्यक्रम एवं शिक्षण के माध्यम से ,साहित्यकार साहित्य के माध्यम से नाट्य संग्रह ,काव्य संग्रह, स्क्रिप्ट कथानक, उपन्यास, कहानी संग्रह के विभिन्न शैलियों का मंचन के माध्यम से, प्रिंट मीडिया ,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, फिल्मी दुनिया आदि के माध्यम से सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन लाया जा सकता है।

प्रत्येक व्यक्ति सम्मान और स्वतंत्रता का अधिकारी है चाहे वह स्त्री हो या पुरुष। हर संसाधन पर हर मानव का बराबर का अधिकार है । यह सर्वविदित सत्य है की स्त्रियों को उनके हिस्से की प्रत्येक चीज कम दी गई है । स्त्रियों के प्रति समाज में बदलाव के नजरिए द्वारा ही सामाजिक मूल्यों की पुनर्संरचना की जा सकती है और यही महिलाओं के इंसाफ की बुनियाद है।

सवाल- शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की प्रगति के बारे में बताएं

जवाब- आजादी के समय भारतीय महिलाओं की शिक्षा दर दस प्रतिशत से भी कम थी जबकि यह दर अब पैंसठ प्रतिशत से अधिक है। महत्वपूर्ण बात यह है कि शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति ने सुदृढ़ परिवार और सुदृढ़ समाज की नींव का कार्य किया है आज बच्चों के विकास की बात हो या पेरेंट्स मीटिंग , प्रत्येक बिन्दु तक बच्चों की उपलब्धि को एक मां की उपलब्धि के रूप में देखा जाता है। आज की महिला पढ़ी लिखी है समाज निर्माण में सक्रिय योगदान दे कर देश निर्माण में योगदान दे रही है एवं शिक्षा के क्षेत्र में मिसाल कायम कर रही हैं।

भारतीय प्रशासनिक सेवा हो या अन्य कोई सेवा का क्षेत्र हो महिलाओं का टॉप लिस्ट में होना यह दर्शाता है कि यही उन्हें मौका दिया जाए तो वे कुछ भी कर सकतीं हैं । यदि भारत को सुपर पावर बनना है तो महिलाओं की शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य पर जोर देते हुए लैंगिक असमानता को कम करना होगा। सरकार के द्वारा बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ जैसे महिला शिक्षा अभियान का व्यापक असर देखने को मिला है।

शिक्षा महिलाओं के विकास का एक प्रमुख आधार है तथा महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक आवश्यक उपकरण के रूप में है। परंतु अभी भी बहुत कुछ किया जाना शेष है ग्रामीण क्षेत्रों में एवं पिछड़े इलाकों में अभी भी लड़कियां प्राथमिक स्तर पर ही शिक्षा प्राप्त कर पाती हैं अथवा बीच में ही पढ़ाई छोड़ देती हैं, जिसके बहुत सारे कारण हैं । सरकार एवं समाज दोनों मिलकर इस दिशा में काफी कुछ कर सकते है।

सवाल- महिला के हित में बने कानून कारगर हैं क्या बलात्कार दहेज हत्या घरेलू हिंसा के दोषियों को सजा मिल रही है?

जवाब- निसंदेह। महिलाओं की सुरक्षा हेतु जो भी कानून बनाए गए हैं वे पूर्णतया कारगर है कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से बलात्कार,दहेज हत्या, घरेलू हिंसा इत्यादि वादों में दोषियों को सजा भी मिल रही है। न्यायालय का कार्य केवल अपराधी को सजा देना ही नहीं है बल्कि समाज में एक उदाहरण प्रस्तुत करना है ताकि जहां एक ओर अपराधी व्यक्ति अपराधों को कारित करने से डरें और दूसरी ओर समाज में सभी को भयमुक्त वातावरण उपलब्ध हो सके। इसमें समाज एवं अन्य संस्थाओं के भी योगदान की अपेक्षा होती है। वे अपना सक्रिय योगदान दें और कानून की मदद करें । न्यायालय का कार्य एक टीम वर्क होता है। न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने तक कई विभागों के सक्रिय सहयोग की आवश्यकता होती है। सहयोग जितना जल्दी मिलता है उतनी जल्दी ही न्यायिक प्रक्रिया पूरी होती है।

सवाल -आप न्यायिक सेवा के साथ साहित्य सृजन में भी सक्रिय हैं दोनों क्षेत्रों में किस प्रकार सामंजस्य बिठाती हैं

जवाब - मेरे लिए साहित्य जीवन है और न्यायिक सेवा का क्षेत्र मेरी कर्मभूमि। साहित्य के क्षेत्र में मैंने कविताएं कहानियां, लघु कथाएं, बाल कहानियां, बाल कविताएं यात्रा वृतांत, महिला एवं बच्चों के विषय पर लेख लिखे हैं। इसके अतिरिक्त मैंने मानवाधिकार आयोग हेतु भी कार्य किया है। कई आलेखों का पठन एवं कई लेख भी मानवाधिकार आयोग ने प्रकाशित किए हैं । संतुलन ही जीवन का नाम है । मैंने इन दोनों क्षेत्रों को आपस में कभी एक दूसरे के विरोधी के रूप में नहीं देखा है बल्कि दोनों क्षेत्र दूसरे के पूरक हैं।

जहां न्यायिक क्षेत्र में काम करते हुए मुझे संतुष्टि मिलती है वही साहित्य सृजन मुझे अपने कार्य करने के लिए ऊर्जा देता है और सकारात्मक बनाए रखता है। साहित्य और न्याय दोनों ही समाज सेवा का प्रभावी मंच है। दोनों का उद्देश्य सभ्य समाज की स्थापना करना है। किसी भी कार्य को करने के लिए संतुलन बहुत आवश्यक है और यह संतुलन सकारात्मक सोच से ही संभव है। लेखन मुझे सकारात्मक रखता है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।

सवाल- साहित्य में महिला रचनाकार कितनी समर्थ हुई हैं ?

जवाब -साहित्य में महिला रचनाकारों की उपस्थिति देख कर बहुत प्रसन्नता होती है। मैं बचपन से साहित्य से जुड़ी हुई हूं परंतु अब मैं पाती हूँ कि महिला रचनाकारों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है जिसे देख कर बहुत खुशी होती है। साहित्य की विभिन्न विधाओं में कोई भी क्षेत्र महिला रचनाकारों से अछूता नहीं है महादेवी वर्मा, सरोजिनी, नायडू सुभद्रा कुमारी चौहान से लेकर अमृता प्रीतम, महाश्वेता देवी, मनु भंडारी, प्रतिभा राय, चित्रा मुद्गल, उषा यादव उषा किरण खान, अनामिका, ममता कालिया, मृदुला गर्ग, मैत्री पुष्पा ,मृणाल पाण्डेय, अलका सरावगी तक महिला रचनाकारों ने उत्कृष्ट रचनाएँ रची हैं।

इसके अतिरिक्त मनीषा कुलश्रेष्ठ , गीता श्री ,वंदना राग आकांक्षा पारे , इंदिरा दाँगी, बाबुषा कोहली इत्यादि एवं अन्य कई उत्कृष्ठ महिला रचनाकारों द्वारा साहित्य को प्रत्येक विधा में लिखा गया है जिसकी बहुत लंबी सूची है जो यहाँ देना संभव नहीं है। नारी साहित्य युग परिवर्तन का शुभ संकेत है। देश के कोने कोने में महिला कलमकारों की उपस्थिति है। प्रत्येक क्षेत्र की तरह यह क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा एवं चुनौतियों से भरा हुआ है परंतु फिर भी अपना मार्ग स्वयं ढूंढ कर महिला साहित्यकार अपना स्थान बना रही हैं वर्तमान संस्कृति और परिवेश से जुड़ा हुआ लेखन प्रगति कर रहा है और आगे भी करता रहेगा।

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